2018 के स्वाधीनता दिवस का संकल्प

भारत के 72वें स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर राष्ट्र के नाम एक लम्बा भाषण दे डाला. इस बार उन्होंने रिकार्ड 82 मिनट लम्बा भाषण दिया - जो पिछले साल के भाषण से 25 मिनट लम्बा था मगर 2016 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिये गये उनके सबसे लम्बे 94 मिनट के भाषण से 12 मिनट छोटा था. उन्होंने सोशल मीडिया पर लोगों से सुझाव मांगे थे कि उनको अपने भाषण में किन बिंदुओं पर बोलना चाहिये, और यकीनन उनको हर कोने से ढेरों सुझाव मिले थे जो उन तमाम किस्म के मुद्दों से सम्बंधित थे जो कि आजकल लोगों के दिमाग में सबसे मुख्य चिंता का विषय बने हुए हैं. लेकिन एक बार फिर उनका भाषण केवल वही उनकी ‘मन की बात’ बना रह गया, जो चुनाव पूर्व कहे जाने वाले जुमलों और लफ्फाजी से भरपूर था, लेकिन जिसमें देश और जनता के लिये भारी बेचैनी का विषय बन चुके किसी भी संदर्भ से जुड़े सवालों का लगभग कोई जिक्र ही नहीं था.

मोदी ने नीलगिरि क्षेत्र में हर बारह वर्ष में एक बार फलने वाले और आजकल पूरी तरह प्रस्फुटित हो चुके नीलाकुरिंजी फूल के वर्णन से अपनी बात शुरू की, मगर आप यदि ऐसी उम्मीद कर रहे हों कि वे सम्पूर्ण केरल और कर्नाटक के कूर्ग जिले में आयी प्रलयंकारी बाढ़ का जिक्र करेंगे, तो आपको बुरी तरह से नाउम्मीदी हासिल होगी. मोदी ने "हमारी बेटियों" को बधाई दी जो "सातों समुद्रों का चक्कर लगाकर वापस आई हैं", मगर भारत की उन बेटियों के बारे में प्रधानमंत्री अपने स्वाधीनता दिवस के भाषण में एक शब्द भी नहीं बोले, जो बदतरीन किस्म के यौन शोषण का शिकार बनी हैं, चाहे वह कठुआ और उन्नाव के पूजा स्थलों में हो या फिर मुजफ्फरपुर और देवरिया में सरकार द्वारा वित्त-पोषित आश्रय स्थलों (शेल्टर होम) में. उन्होंने इसका जिक्र ही नहीं किया, उन्हें न्याय दिलाने का आश्वासन देना तो दूर की बात है. मोदी ने किसानों के बारे में जरूर बात की, मगर इस मामले में उन्होंने अपने झूठे दावे को ही दुहराया कि उन्होंने किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग पूरी कर दी है और 2022 तक किसानों की आमदनी दुगने करने का गोलमोल वादा किया, जबकि उन्होंने किसानों पर कर्ज के बोझ जैसे सबसे बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला, जो किसानों को आत्महत्या के लिये बाध्य कर रहा है, और जिसके परिणामस्वरूप किसान इतने लम्बे अरसे से कर्जमाफी की मांग उठा रहे हैं.

पांच वर्ष पहले मोदी और उनके सहयोगी रुपये के मूल्य में गिरावट पर अंकुश लगाने में नाकामी के चलते मनमोहन सरकार के खिलाफ पिल पड़े थे. भगवा खेमे ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री बनकर मोदी रुपये को शक्तिशाली बना देंगे, श्री श्री रविशंकर समेत कुछ लोगों ने तो यहां तक भविष्यवाणी की थी कि रुपये और डॉलर के बीच का समीकरण उठकर 40ः1 तक पहुंच जायेगा. 72वें स्वाधीनता दिवस से एक दिन पहले रुपया अपने मूल्य के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर जा गिरा था - सत्तर रुपये में एक डॉलर, मगर प्रधानमंत्री अपने भाषण में इस विषय पर पूरी चुप्पी साध गये. 2014 में मोदी के आक्रामक प्रचार अभियान में भ्रष्टाचार और काले धन के सवाल को सबसे बढ़चढ़ कर इस्तेमाल किया गया था. आज घोटालों पर घोटाले सरकार के गले में शोहरत की माला बनकर झूल रहे हैं - नोटबंदी से शुरू करके भारतीय बैंकों की माल्या-मोदी द्वारा की गई डकैती, और राफेल सौदे से लेकर जियो विश्वविद्यालय तक, घोटाला और पिठ्ठू पूंजीवाद रोजमर्रे की बात बन चुके हैं. स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा ठिकाने लगाई गई रकम 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुकी है और 2017 में 70 अरब रुपये पर पहुंच गई है. अब मोदी सरकार, जो इस काले धन को विदेशी बैंकों से स्वदेश वापस लाने का वादा करके सत्ता में आई थी, अब हमें यह समझाने की कोशिश कर रही है कि यह तो पूरा का पूरा सफेद धन है!

पेट्रोल और डीजल की कीमतें 2014 में मोदी के प्रचार अभियान की एक और प्रमुख खुराक थीं. बाबा रामदेव और कई अन्य लोगों ने वादा किया था कि अगर मोदी सत्ता में आये तो पेट्रोल प्रति लीटर 50 रुपये से कम कीमत पर बिकेगा. आज पेट्रोल 80 रुपये प्रति लीटर की सीमा पार कर चुका है, और मोदी के शब्दकोष से पेट्रोल शब्द गायब ही हो चुका है. मोदी हमें यह याद दिलाना नहीं भूले कि आज हर तीन में से दो भारतीय 35 वर्ष से कम उम्र के हैं. मगर उन्हें यह याद नहीं रहा कि उन्होंने भारत के युवाओं से 2 करोड़ रोजगार के अवसर प्रति वर्ष देने का वादा किया था, जिसकी वजह से उन्होंने करोड़ों युवाओं के वोट बटोरे थे. आज वे कहते हैं कि बेरोजगारी तो वास्तव में आंकड़े जुटाने की समस्या है और सरकार की मुद्रा स्कीम ने रोजगार मांगने वालों को रोजगार देने वाले में तब्दील कर दिया है! मुद्रा स्कीम के अंतर्गत जिन लोगों को कर्ज मिला है, उनमें से विशाल बहुसंख्यक लोगों को 50,000 रुपये से भी कम का कर्ज मिला है. अगर इतनी तुच्छ धनराशि का कर्ज लेकर कोई नौजवान मुनाफे वाला कारोबार चलाने लग जाय, तो यह किसी चमत्कार से कम न होगा, मगर मोदी के अर्थशास्त्र (मोदीनॉमिक्स) में ऐसे मिथक और चमत्कार भरे पड़े हैं.

अगर भारत की जनता को 72वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री से किसी एक आश्वासन की सबसे तीव्र आकांक्षा थी तो वह था हत्यारे गिरोहों को बिल्कुल न बर्दाश्त करने का आश्वासन. इन हत्यारे गिरोहों ने सर्वप्रथम गौरक्षकों के रूप में सिर उठाया, मगर अब तो शायद ही किसी हत्यारे गिरोह को किसी बहाने की जरूरत पड़ती हो. उनके लिये कोई भी बहाना चलेगा क्योंकि उनको पूरा भरोसा है कि सत्ता तो हाथ में है फिर दंड-भय क्या. अगर मोदी सरकार ने भारतीय लोगों के किसी हिस्से में सचमुच विश्वास जगाया है तो वह हिस्सा है हत्यारे गिरोहों का समूह जो सड़कों पर शासन करता है, और पिठठू पूंजीपति, जिन्हें सरकारी खजाने पर नियंत्रण हासिल है. कुछ दिन पहले की बात है कि अठहत्तर वर्षीय स्वामी अग्निवेश को मोदी की पार्टी के शासन में चल रहे राज्य में मोदी की ही पार्टी के लोगों ने सड़क पर बुरी तरह से पीटा. स्वाधीनता दिवस की पूर्वसंध्या को दिल्ली में अत्यंत सघन पुलिस व सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद संसद से जरा सी दूरी पर जेएनयू के शोध छात्र उमर खालिद की हत्या करने का प्रयास हुआ. एक अन्य ग्रुप का दुस्साहस देखिये कि उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों को मिल रहे आरक्षण का विरोध करने के नाम पर संसद मार्ग पर संविधान को जला दिया. तब तो समूचा राष्ट्र व्यर्थ ही प्रधानमंत्री से यह उम्मीद कर रहा था कि वे कानून के शासन और असहमति का सम्मान, जो आधुनिक भारत के आधारभूत उसूल हैं, के साथ स्पष्ट शब्दों में प्रतिबद्धता जाहिर करेंगे और नफरत फैलाने वाले तत्वों एवं हत्यारे गिरोहों के खिलाफ सख्त चेतावनी जारी करेंगे.

लाल किले के परकोटे से स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री के भाषण के अगले दिन ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान की खबर आई. पहली बार हमने देखा कि किसी पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने के लिये जाने वाले लोगों के साथ शासक पार्टी के लोगों ने दुर्व्यवहार किया. साथ ही सोशल मीडिया पर होने वाली ट्रॉलिंग जमीन पर उतर आई और शारीरिक हिंसा में बदल गई. जहां दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने जाते वक्त स्वामी अग्निवेश के साथ दुर्व्यवहार किया गया, वहीं मोतिहारी में महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय कुमार पर एबीवीपी और भाजपा के गुंडों ने बर्बरतापूर्ण हमला किया क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया पर श्री वाजपेयी के शासनकाल के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां लिखीं थीं.

गुजरात के जनसंहार के बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री ने जगजाहिर तौर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को "राजधर्म" निभाने की सलाह दी थी, तो मोदी ने उसकी हंसी उड़ाते हुए कहा था कि वे ऐसा ही तो कर रहे हैं. सोलह वर्ष बाद, केन्द्र की सत्ता में चार वर्ष रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अब किसी को उनकी "राजधर्म" की धारणा के बारे में संदेह रहने ही नहीं दिया है - यह ‘बांटो और राज करो’ की औपनिवेशिक नीति और लोकतंत्र के हर मूल सिद्धांत और कानून के शासन को पैरों तले रौंदने वाले सर्वोच्च नेता के फासीवादी मॉडल का सम्मिश्रण है. अतः भारत के लोकतंत्र पसंद लोगों के लिये 72वां स्वाधीनता दिवस अपने इस संकल्प को और मजबूत करने का अवसर है कि वे अपनी एकता और शक्ति की दावेदारी पेश करेंगे और इस विनाशकारी सरकार को राजसत्ता से बेदखल करेंगे.