आज मोदी ने वल्‍लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊंची मूर्ति 'स्‍टैचू ऑफ यूनिटी' का अनावरण किया. पटेल कांग्रेसी नेता थे फिर भी मोदी और आरएसएस उन्‍हें पचाने की कोशिश में हैं. इससे बड़ी विडंबना क्‍या होगी कि जो पटेल आरएसएस के धुर विरोधी थे और जिन्‍होंने गांधी जी की हत्‍या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था आज वही उन्‍हें पूजने का नाटक कर रहे हैं. पटेल की आरएसएस के बारे में बहुत साफ समझदारी थी.   

पटेल गांधी जी की हत्‍या के लिए सीधे तौर पर उस जहरीले माहौल को जिम्‍मेदार माना जिसे आरएसएस ने बनाया था. उन्‍होंने आरएसएस के सरसंघचालक गोलवलकर को लिखा कि ''उनके (आरएसएस के लोगों के) भाषण सांप्रदायिकता के जहर में डूबे हुए थे. हिंदुओं को उत्‍तेजित करने और उनकी रक्षा के नाम पर उन्‍हें गोलबंद करने के लिए जहर फैलाना जरूरी था. इसी जहर के चलते देश को गांधी जी के अमूल्‍य जीवन से हाथ धोना पड़ा... आरएसएस के लोगों ने गांधी जी की मृत्‍यु के बाद खुशियां मनायी और मिठाइयां बांटीं. इन हालात में आरएसएस के खिलाफ कार्यवाही करना सरकार के लिए जरूरी हो जाता है. (11 सितंबर 1948 को सरदार पटेल की गोलवलकर को चिठ्ठी)

मोदी और संघ परिवार बड़ी बेचैनी से सरदार पटेल को अपने में शामिल कर लेने और हजम कर लेने की कोशिश में लगे हुए हैं, क्‍योंकि देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वालों में इनका कोई भी नेता दिया लेकर ढ़ूंढ़ने से भी नही मिलता. इसी बेचैनी में ये पटेल के पीछे पड़े हुए हैं. यह यही है कि वे अपेक्षाकृत विचारों के थे लेकिन आरएसएस के असली चरित्र में बारे में उन्‍हें जरा भी संदेह न था.

कितनी बड़ी विडंबना है कि सांप्रदायिक घृणा फैलाने, मॉब लिंचिंग की घटनाओं को अंजाम देने और दलितों पर हमला करने जैसी घटनाओं के जरिये हमारे समाज के धर्म निरपेक्ष ताने बाने को नुकसान पहुंचाने के बाद, यानी सारी तोड़-फोड़ करने के बाद पटेल की मूर्ति का नाम 'स्‍टैचू ऑफ यूनिटी' रखा गया है.

पटेल की मूर्ति सरदार सरोवर बांध के पास बनायी गई है लेकिन बांध बनाने के दौरान जिनकी जमीनें डूब गईं उन्‍हें आज तक मुआवजा नही दिया गया है. आस-पास के लोगों ने अपने प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ लगातार विरोध किया है. सरदार सरोवर बांध के आस पास के 22 गांवों के मुखियाओं ने मोदी को खुली चिठ्ठी लिखकर कहा कि 'स्‍टैचू ऑफ यूनिटी' के अनावरण कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री का विरोध करेंगे. स्‍थानीय आदिवासी नेताओं ने भी स्‍मारक के चलते प्राकृतिक संसाधनों के विनाश का विरोध करते हुए मूर्ति अनावरण के कार्यक्रम का बहिष्‍कार करने की घोषणा की. अपनी चिठ्ठी में उन्‍होंने साफ-साफ कहा कि एक मूर्ति बनाने के लिए अरबों रुपये खर्च किये गये लेकिन उसके आस-पास के गांवों में स्‍कूल, अस्‍पताल और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

भाकपा(माले)