18 फरवरी 1946 के नेवी विद्रोह के शहीदों को सलाम!

भारत की आजादी की लड़ाई के कई प्रसंग बेहद कम चर्चित हैं. 1946 का नेवी विद्रोह भी हमारे स्वाधीनता संग्राम का एक कम चर्चित लेकिन गौरवशाली अध्याय है. यह देश की अवाम यहां तक कि अंग्रेजों की रक्षा के लिए बनी सेनाओं के भीतर मुक्ति का विस्फोटक प्रकटीकरण था. यह तो सभी जानते हैं कि अंग्रेजी राज में सेनाओं में हिन्दुस्तानियों के साथ जबरदस्त भेदभाव होता था. लेकिन वह 1857 रहा हो या 1946 जब भी सेनाओं के अन्दर से विद्रोह की चिंगारी फूटी, वह सिर्फ सिपाहियों या नाविकों के साथ भेदभाव पर ही सीमित नहीं रही, बल्कि जनता की मुक्ति का व्यापक सवाल भी इन विद्रोहों ने सामने रखा.

काला धन के नये खुलासे

काला धन - छह साल पहले यह शब्द वर्तमान सत्ता के सिरमौर से लेकर निचले पायों तक, मंत्र की तरह जपा जाता था. देश के हर आदमी की जेब में इसी काले धन को सफेद करके डालने के बड़े-बड़े दावे और वादे भी किए गए थे. लेकिन बीतते वक्त के साथ ‘अच्छे दिनों’ के तमाम रंग-बिरंगे सपनों की तरह इस शब्द को भी जैसे सेंसर कर दिया गया है. अब यह भूल से भी सत्ताधीशों के मुंह से नहीं सुनाई देता.

एक हृदयहीन और निर्मम बहाना

इस बात की काफी चर्चा है कि संसद में मोदी सरकार ने कहा कि उसे लाॅकडाउन के चलते मरने वाले मजदूरों की संख्या की जानकारी नहीं है. मोदी सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय में स्वतंत्रा प्रभार राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 14 सितंबर को लोकसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में कहा कि लाॅकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. श्रम और रोजगार मंत्री ने यह भी कहा कि चूंकि मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा नहीं रखा गया, इसलिए उनके मरने पर मुआवजा देने का प्रश्न ही नहीं उठता.

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवा के निजीकरण की राह पर

8 जुलाई 2020 को उत्तराखंड में रामनगर का रामदत्त जोशी राजकीय संयुक्त चिकित्सालय, पी.पी.पी. (सार्वजनिक-निजी साझीदारी) मोड के नाम पर संचालन हेतु एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया. अकेला सिर्फ रामनगर का ही अस्पताल निजी हाथों में नहीं सौंपा जा रहा है. बल्कि इसके साथ अल्मोड़ा जिले का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भिकियासैंण और पौड़ी जिले का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बीरोंखाल भी पी.पी.पी. मोड के नाम पर संचालन हेतु निजी हाथों में दिया जा रहा है.

रोजगार वर्ष में रोजगार कैसे-कैसे !

उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2019-20 को रोजगार वर्ष घोषित किया था. रोजगार वर्ष की अवधि मार्च 2019 से शुरू हुई. इस तरह इस मार्च के महीने के समाप्त होने के साथ रोजगार वर्ष भी निपट जाएगा. कितने नेक इरादे थे सरकार के! एक पूरे साल को कह दिया – जा तू रोजगार का साल है. पड़ोसी राज्य वाले यदि शहरों का नाम बदल कर सुर्खियां बटोर रहे हैं तो उन्नीस हमारे वाले भी नहीं हैं. वे शहरों के नाम बदलने वालों से चार हाथ आगे बढ़ गए और एक पूरे साल का ही नामकरण कर डाला – रोजगार वर्ष.

प्रमोशन में आरक्षण का खात्मा : उच्चतम न्यायालय के फैसले से उठते सवाल

प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर उच्चतम न्यायालय ने जो फैसला दिया, वह सामाजिक न्याय के प्रति सत्ताधारियों और अदालत के रुख को लेकर नए सिरे से सवाल खड़े करता है. उच्चतम नयायालय के फैसले की जो पंक्तियां चर्चा में हैं, हेडलाइन बन रही हैं, वे हैं – प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. लेकिन फैसले को देखें तो बात इतनी भर नहीं है, बल्कि इससे बढ़कर है. इस मामले में केंद्र और उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने जो रुख अपनाया है, वह अपने कृत्य पर झूठ का आवरण ओढ़ाने की कोशिश है.

झुके सारे नियम कानून सत्ता के सामने

वैदिक हिंसा, हिंसा न भवति. दुराचार-भ्रष्टाचार यदि भाजपा या उसके समर्थकों का हो, तो वह भी दुराचार-भ्रष्टाचार न भवति. यह इस देश में नयी परिपाटी स्थापित की जा रही है. शायद यही वो न्यू इंडिया हो, जिसका नारा गाहे-बगाहे खूब उछाला जाता है. ताजातरीन उदाहरण सिक्किम का है. सिक्किम में इसी वर्ष अप्रैल में विधानसभा के चुनाव हुए थे. इस चुनाव में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने जीत हासिल की. इस जीत के बाद प्रेम सिंह तमांग मुख्यमंत्री चुने गए.

आयुर्वेद पढ़ने वालों के अभिभावकों की जेबें काटने और छात्र-छात्राओं को पुलिसिया लात-घूसों से पिटवा कर बनेगा आयुष प्रदेश?

19 अक्टूबर की शाम को देहारादून के परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल पर पुलिस ने एकाएक धावा बोल दिया. वहाँ बीते कई दिनों से विभिन्न आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं का धरना और आमरण अनशन चल रहा था. पुलिस का निशाना इन्हीं छात्र-छात्राओं का तम्बू था. घोषित तौर पर उद्देश्य था लगभग 7-8 दिन से आमरण अनशन पर बैठे एक छात्र को उठाना. लेकिन छात्र-छात्राओं का कहना है कि पुलिस ने उन पर लात-घूंसों से प्रहार किया.

उत्तराखंड में किराया माफ आध्यादेश

उत्तराखंड सरकार पूर्व मुख्यमंत्रियों को दिये गए सरकारी आवासों का किराया माफ करने के लिए अध्यादेश लायी है. इस अध्यादेश के जरिये पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब वो लाखों रुपये नहीं चुकाने होंगे, जो कि आबंटित आवासों हेतु उन्हें चुकाने थे. दरअसल उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल ने उन सभी नेताओं से किराया वसूलने का आदेश दिया, जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री होने की हैसियत से सरकारी आवास निशुल्क आवंटित थे.