अन्याय के खिलाफ लड़ने का नाम है - भोजपुर

न्यायिक संहार की कड़ी में एक और बर्बर संहार !

हत्या के एक कथित 9 साल पुराने मामले में दलित समाज से आने वाले तेजतर्रार व जनता के लोकप्रिय नेता, भोजपुर के अगिआंव से भाकपा-माले विधायक मनोज मंजिल और उनके अन्य 22 साथियों - गुड्डु चौधरी, चिन्ना राम, भरत राम, प्रभु चौधरी, रामाधार चौधरी, गब्बर चौधरी, जयकुमार यादव, नंदू यादव, चनरधन राय, नंद कुमार चौधरी, मनोज चौधरी, टनमन चौधरी, सर्वेश चौधरी, रोहित चौधरी, रविन्द्र चौधरी, शिवबाली चौधरी, रामबाली चौधरी, पवन चौधरी, प्रेम राम, त्रिलोकी राम और बबन चौधरी को आरा व्यवहार न्यायालय द्वारा सश्रम आजीवन कारावास की स

नीतीश कुमार का पलटासन, भाजपा की तिकड़म और बिहार का संघर्ष

इस बार हवा ने भी अपना रूख बदला और पलटासन कुमार के चेहरे की कुटिल मुस्कान ही गायब कर दी. लेकिन पटना में तेजी से बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम से पलटासन कुमार से भी ज्यादा बेचैनी दिल्ली में बैठे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को थी. यह अब बच्चा-बच्चा जानता है कि मोदी-शाह बिहार की सत्ता हड़पने को क्यों बेचैन थे? राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा को तमाम संवैधानिक प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ाकर एक राजनीतिक समारोह में बदल देने के बावजूद उनके 400 पार के बड़बोले दावे में बिहार ही सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ा था. भाजपा को अच्छे से पता है कि वह बिहार में अकेले दम पर लोकसभा चुनाव में कोई हैसियत नहीं रखती.

कर्पूरी जी के विजन और विचारों का भाजपा ने कब सम्मान किया?

तीन दशकों के लंबे इंतजार के बाद अंततः कर्पूरी जी को भारत रत्न का सम्मान हासिल हुआ. राष्ट्रपति द्वारा इसकी घोषणा के तुरत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया कि उनकी सरकार की नीतियों में कर्पूरी जी का ही विजन है. गरीबों की शिक्षा और कमजोर वर्गों के उत्थान की प्रेरणा उन्हें कर्पूरी जी से ही मिलती है. पूरा संघ गिरोह मोदी को ऐसे पेश करने लगा मानो कर्पूरी जी के असली वारिस और सामाजिक न्याय के असली योद्धा मोदी ही हैं. जाहिर सी बात है कि विरासत हड़पने की ही राजनीति करने वाली भाजपा कर्पूरी जी को हड़पने की कोशिश क्यों नहीं करेगी? वह भी ऐसे वक्त में जब लोकसभा का चुनाव हमारे सामने है.

जब गांधी ने कहा: मुसलमानों के दिलों में विश्वास पैदा करने में बिहार की कामयाबी पूरी दुनिया में असर करेगी

महात्मा गांधी के जीवन के अंतिम दो वर्ष उनके जीवन के सबसे अर्थपूर्ण समय साबित हुए. वे 1947 में विभाजन की दिशा में बढ़ते दबाव और उससे जुड़ी सांप्रदायिक हिंसा से वे स्तब्ध और हतप्रभ थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बंगाल और बिहार के गांव-गांव का दौरा किया. यही वजह रही कि इन इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा उस पैमाने पर नहीं फैल सकी जैसा कि पंजाब में हुआ. सितंबर 1947 तक उनके दिल्ली पहुंचते-पहुंचते पंजाब की परिस्थिति बहुत विकराल हो चुकी थी.

सरकार को समर्थन जारी रखते हुए जन सवालों पर पहलकदमियां तेज करनी होगी

बिहार में सत्ता सेे भाजपाइयों की बेदखली के बाद महागठबंधन सरकार में विगत 13 से 19 दिसंबर तक बिहार विधानसभा का पहला विधिवत शीतकालीन सत्र था. विदित हो कि इस सत्ता परिवर्तन का स्वागत करते हुए भाकपा(माले) नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. नीतीश कुमार की ओर से भाकपा(माले) को मंत्रिमंडल में शामिल होने का भी आमंत्रण था लेकिन उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह सत्ता में भागीदार बनने की बजाए जनता के आंदोलनों व मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने और उनके बीच एक सार्थक संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का काम करेगी.

औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का झूठ और भारत को हिंदू राष्ट्र बताने का षड्यंत्र

आरएसएस के प्रमुख सिद्धांतकार व भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने अपने हाल के एक लेख ‘डिकोलोनाइजिंग द इंडियन माइंडसेट’ में लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री औपनिवेशिक उत्पीड़न के संस्थाओं व प्रतीकों के पूरी तरह से उन्मूलन के अपने विचारों के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं. भारतीय मानस के वि-औपनिवेशिकरण का उनका यह प्रोजेक्ट स्पष्ट और खास लक्ष्यों को केंद्रित है. फिर अपने चरित्र के मुताबिक राकेश सिन्हा नेहरू पर हमलावर होते हैं.

युद्धोन्माद के खिलाफ और शेल्टर होम मामले में न्याय के लिए बिहार में ‘महिला हड़ताल’

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की लड़कियों को न्याय दिलाने तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग को लेकर आयोजित 8 मार्च की महिला हड़ताल में हजारों की तादाद में महिलाएं, छात्राएं आज पूरे बिहार में सड़क पर उतरीं.

13-प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ भारत बंद

बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत कई राज्यों में उतरे माले कार्यकर्ता

रेल-सड़क यातायात भी हुआ बाधित

खेग्रामस भी अपनी मांगों पर बंद में शामिल

13-प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ भारत बंद

13 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली को वापस लेने, 200 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली पर अध्यादेश लाने, गैर संवैधानिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को रद्द करने, आदिवासियों के विस्थापन पर रोक तथा गरीबों-गृहविहीनों के राजिस्टर बनाने की मांग पर 5 मार्च 2019 को भारत बंद के समर्थन में भाकपा(माले) कार्यकर्ताओं ने बिहार के विभिन्न इलाकों में रेलवे के परिचालन को बाधित किया,

हमें सत्ता के समक्ष सच बोलने का जोखिम उठाना होगा

’बिहार प्रोविंशियल किसान सभा 1929-1942, (ए स्टडी ऑफ इंडियन पीजेंट मूवमेंट)’

लोकार्पण समारोह में का. दीपंकर ने कहा

हमें सत्ता के समक्ष सच बोलने का जोखिम उठाना होगा

पार्टी महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने विगत 2 मार्च को पटना के तारामंडल सभागार में वाल्टर हाउजर द्वारा लिखित ‘बिहार प्रोविंशियल किसान सभा 1929-1942, (ए स्टडी ऑफ इंडियन पीजेंट मूवमेंट) नामक किताब के लोकार्पण समारोह को संबोधित किया. यह समारोह चिंताहरण सोशल डेवलपमेंट ट्रस्ट द्वारा आयोजित था. लोकार्पण समारोह में शहर के बुद्धिजीवी बड़ी संख्या में मौजूद थे.