अभी हाल ही में रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने रिज़र्व बैंक जैसी नियामक संस्थाओं की स्वायत्तता में सरकार के हस्तक्षेप से पैदा होने वाले ख़तरों पर तीखी चेतावनी जारी की है। आम जनता के सामने रिज़र्व बैंक का एक बड़ा अफ़सर सरकार की ऐसी आलोचना कर, ऐसा कभी नहीं हुआ। निश्चित ही इस अफ़सर की बात को रिज़र्व बैंक के दूसरे पदाधिकारियों का भी समर्थन होगा ही। इस घटना से उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों द्वारा की गयी उस अभूतपूर्व प्रेस कान्फ्रेंस की याद ताज़ा हो गयी जिसमें उच्चतम न्यायालय में मोदी सरकार की दख़लन्दाज़ी की आलोचना की गयी थी।  

मोदी सरकार हरचंद कोशिश कर इस मुल्क की बहुतेरी संस्थाओं की स्वायत्तता को यों तबाह और बर्बाद कर रही है कि उनका ठीक किया जाना मुश्किल हो जाएगा। नोटबंदी की आपदा रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता पर सीधे प्रधानमंत्री द्वारा किया गया भीषण हमला ही थी। मोदी सरकार सीबीआई को तोड़ने-मरोड़ने और अपने क़ब्ज़े में रखने की लगातार कोशिश कर रही है ताकि भ्रष्टाचार के मामलों की छानबीन की सम्भावना से भी से सरकार को बचाए रखा जा सके।

मुल्क की तमाम नियामक और जाँच-परख करने वाली संस्थाओं की स्वायत्तता की रक्षा के लिए देश की अवाम को एकताबद्ध होकर 2019 के चुनावों में मोदी- मुसीबत को उखाड़ फेंकना होगा।

CPI(ML)