आधुनिक भारत के लिए तर्कवादी योद्धा राममोहन राय की स्मृति में

22 मई 2022 को, जब हमारा देश आधुनिक भारत के लिए एक सबसे पुराने और सबसे महान प्रयाणकर्ता रामामेहन राय की 250वीं जयंती मना रहा है, हम इतिहास की एक क्रूरतम विडंबना का सामना कर रहे हैं.

महान नक्सलबाड़ी उभार की 55वीं वर्षगांठ पर

धुनिक भारतीय इतिहास बहुत सारे लोकप्रिय जनउभारों का साक्षी रहा है. भारतीय स्वतंत्रता के लंबे संघर्ष को उत्पीड़ित भारतीयों के विभिन्न तबकों के उभारों ने ऊर्जा प्रदान की, वे उत्पीड़ित जो सिर्फ बाहरी औपनिवेशिक सत्ता से ही उत्पीड़ित नहीं थे बल्कि उस सामाजिक ढांचे से भी उत्पीड़ित थे जो भारतीयों पर भीतर से हावी था, जैसे जाति व्यवस्था, पितृसत्ता, सामंती शक्ति, स्थानीय रजवाड़े और राजशाही. 

कोविड-19 और मोदी का लॉकडाउन : चारों ओर अफरा-तफरी, प्‍लानिंग कहीं नहीं

- दीपंकर भट्टाचार्य,  महासचिव, भाकपा (माले)

लगभग तीन हफ्ते पहले जब विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया तब से ही इस हत्‍यारे वायरस का प्रकोप दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है. इस महामारी का शुरुआती केन्‍द्र चीन था लेकिन अब चीन ने इस पर नियंत्रण हासिल कर लिया है. लेकिन अब भारी तबाही का दायरा यूरोप और अमेरिका में पहुंच गया है. इटली और स्‍पेन जैसे देशों में इस वायरस से मरने वालों की तादाद अनियंत्रित ढंग से बढ़ रही है. अब भारत और पाकिस्‍तान में भी चिंताजनक ढंग से मामले बढ़ रहे हैं.

भारत में मोदी राज में ‘फासीवाद कैसे काम करता है’ का अध्ययन

(तीसरी किश्त)

8. यौन-विषयक बेचैनी

फासीवादी राजनीति “अन्य” को यौनिक खतरे के स्रोत के बतौर कैसे पेश करती है, इसका विस्तार से वर्णन करते हुए स्टैनली इस बात को विशेष रूप से चिन्हित करते हैं कि नाजियों के यहूरी-विरोध, अमरीका में गोरी चमड़ी वालों की श्रेष्ठता और म्यांमार एवं भारत में इस्लाम विरोध के बीच सम्पर्क-सूत्र क्या हैं. स्टैनली लक्ष्य करते हैं कि फ्पफासीवादी प्रचार” किस प्रकार “अन्य से होने वाले खतरे” का यौनिकीकरण करता है.

भारत में मोदी राज में ‘फासीवाद कैसे काम करता है’ का अध्ययन

दूसरी किश्त

3. बौद्धिकता-विरोधी

संघ के तूफानी दस्तों और पुलिस द्वारा जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू), जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पर हमले पारम्परिक फासीवादी कार्यप्रणाली की तर्ज पर ही हो रहे हैं.

भारत में मोदी राज में ‘फासीवाद कैसे काम करता है’ का अध्ययन

हम जानते हैं कि किसी सर्वसत्तावादी राज्य से फासीवाद इस बात में भिन्न होता है कि फासीवाद एक आंदोलन है, जिसे जनता के एक उल्लेखनीय हिस्से का समर्थन प्राप्त होता है और इसमें उनकी भागीदारी भी रहती है. ‘हाउ फासिज्म वक्र्स: द पाॅलिटिक्स ऑफ अस एंड देम’ (फासीवाद कैसे काम करता है: ‘हम’ और ‘वे’ की राजनीति), जो प्रोफेसर जैसन स्टेनली द्वारा 2018 में लिखी एक किताब है, फासीवादियों द्वारा यह जन-समर्थन हासिल करने के लिये जो दस प्रमुख तरीके अपनाये जाते हैं, उनको सुदक्ष रूप से चिन्हित करती है.

18 दिसंबर 2019 के लिए संकल्प पत्र: जनता के साथ सघन रिश्ता बनाओ, संघ-भाजपा के फासीवादी हमले को शिकस्त दो

साल 2019 खत्म होने वाला है. पिछले 6 सालों से मोदी सरकार सत्ता में है लेकिन यह साल सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण साल रहा है. पुलवामा और बालाकोट हमलों के बाद अंधराष्ट्रवादी उन्माद की लहर पर सवार होकर यह सरकार मई में दोबारा सत्ता में आ गई. इसके बाद से सरकार और संघ परिवार ने देश के लोकतंत्र और संघीयता को नष्ट करके आरएसएस की विचारधारा के अनुरूप देश को ढालने का अपना आक्रामक फासीवादी अभियान और भी तेज कर दिया है.

जादवपुर ने लोहा लिया: फासिस्ट उत्पात के खिलाफ शक्तिशाली छात्र प्रतिरोध

विश्वविद्यालयों, छात्रों और शैक्षिक समुदायों पर संघ-भाजपा के हमले बेरोकटोक जारी हैं. जेएनयू छात्र संघ के चुनावों में वहां के छात्रों को एक बार फिर वामपंथ के हक में जोरदार जनादेश देने से तो वे नहीं रोक सके, लेकिन इसके बाद संघ ब्रिगेड ने देश के एक अन्य प्रमुख वामपंथी कैंपस – कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय – को फिर से अपना निशाना बनाया. किंतु इस प्रक्रिया में उसने पुनः अपना छात्र-विरोधी शिक्षा-विरोधी चेहरा बेनकाब कर दिया है.

हिंदी लादने की कोशिशों को नकार दें

मोदी शासन ने बारंबार ‘हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान’ अथवा ‘एक राष्ट्र एक भाषा’ के अपने संघी एजेंडा को घुसाने की कोशिश की है. 2014 में मोदी शासन ने अपनी पहली पारी में सबसे पहले जो काम किये उनमें से एक था यह कि उसने तमाम केंद्रीय मंत्रियों,  विभागों, निगमों या बैंकों से अपने-अपने सोशल मीडिया अकाउंट में हिंदी को प्राथमिकता देने का निर्देश दे डाला. इसके बाद इस सरकार ने मंत्रियों, राज्यपालों और अन्य विशिष्ट लोगों को अपना भाषण हिंदी में देने को कहा. भाजपा नेता और तत्कालीन मंत्री वेंकैया नायडू – जो तेलुगू भाषी हैं – ने हिंदी में कहा था, “हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है”.