सरकार को समर्थन जारी रखते हुए जन सवालों पर पहलकदमियां तेज करनी होगी

बिहार में सत्ता सेे भाजपाइयों की बेदखली के बाद महागठबंधन सरकार में विगत 13 से 19 दिसंबर तक बिहार विधानसभा का पहला विधिवत शीतकालीन सत्र था. विदित हो कि इस सत्ता परिवर्तन का स्वागत करते हुए भाकपा(माले) नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. नीतीश कुमार की ओर से भाकपा(माले) को मंत्रिमंडल में शामिल होने का भी आमंत्रण था लेकिन उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह सत्ता में भागीदार बनने की बजाए जनता के आंदोलनों व मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने और उनके बीच एक सार्थक संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का काम करेगी.

तेज हुईं भाकपा(माले) के 11वें पार्टी महाधिवेशन की तैयारियां

विगत 1-3 दिसंबर, 2022 को मुजफ्फरपुर (बिहार) में भाकपा(माले) केन्द्रीय कमेटी की बैठक संपन्न होने तथा  4 दिसंबर व 5 दिसंबर को क्रमशः पटना में बिहार राज्यस्तरीय और कोडरमा में झारखंड राज्यस्तरीय कैडर्र कन्वेंशनों के संपन्न होने के साथ ही इन राज्यों में भाकपा(माले) के 11वें राष्ट्रीय महाधिवेश की तैयारियां तेज हो चुकी हैं. यहां प्रस्तुत हैं इस सिलसिले में प्राप्त कुछेक गतिविधियों की एक संक्षिप्त रिपोर्ट:

बिहार

कार्यकर्ता कन्वेंशन

संविधान को सिर के बल खड़ा करने की संघ-भाजपा मुहिम को शिकस्त दें!

संविधान दिवस, 2022 ने एक बार फिर संविधान की भावना और मूल्यों की रक्षा करने की बड़ी चुनौती को जल्द ही स्वीकार करने की जरूरत को सतह पर ला खड़ा किया है. इधर हमें दो अच्छे संकमेत मिले हैं, हमने देखा कि प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े जेल में करीबन एक हजार दिन बिताने के बाद जमानत पर बाहर निकल आए हैं और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपनी जमानत के आदेश पर स्थगन हासिल करने के एनआइए के प्रयासों को धूल चटा दिया दिया; दूसरी ओर, हमने देश भर में किसानों को सड़कों पर मार्च करते देखा जो अपनी सभी फसलों के लिये उचित मूल्य प्राप्त करने के अधिकार तथा कृषि की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध थे.

मजदूर तबके पर फासीवादी हमला

-- क्लिफ्टन डी. रोजारियो

आप फासीवाद के खिलाफ सम्मेलन में इसलिये नही जाते कि फासीवाद की पक्की परिभाषा तय करें, बल्कि यह समझने जाते हैं कि विभिन्न तबकों के लिए इसके क्या मायने हैं, उनके अस्तित्व पर फासीवाद का क्या असर पड़ा है, और कितने कारगर तरीके से वे इसका मुकाबला कर रहे हैं. – के. बालगोपाल [1]

[ह्यूमन राइट्स फोरम (एचआरएफ) द्वारा 9 अक्टूबर 2022 को हैदराबाद में आयोजित 13वीं बालगोपाल मेमोरियल मीटिंग में दिए गए भाषण से]

भारतीय फासीवाद की शुरूआती यूरोपियन कड़ियां

- आकाश भट्टाचार्य

फासीवाद का स्थानिक भूगोल

बेनिटो मुसोलिनी और उनकी नेशनल फासिस्ट पार्टी (पीएनएफ) ने अक्टूबर 1922 में रोम में एक मार्च निकाला था. इस मार्च के जरिये मुसोलिनी ने इटली की सत्ता पर काबिज होकर दुनिया की पहली स्व-घोषित फासीवादी सरकार का आगाज किया था जिसके दूरगामी परिणाम हुए. इतालवी फासीवाद ने एडॉल्फ हिटलर के हौसले को बढ़ाया और दोनों फासीवादी लीडरों ने दुनिया में तबाही मचा दी, जंग छेड़ा और खासतौर से यहूदियों और कम्युनिस्टों को निशाना बनाया.

सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करो !

[विगत 28 सितंबर 2022 को, शहीदे आजम भगत सिंह की 115वीं जयंती के मौके पर, आइलाज ‘ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस’ ने मोदी राज के दौरान अलग-अलग झूठे मुकदमों में देश के विभिन्न जेलों में बंद सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की मांग पर राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस का पालन किया. राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस के लिए आइलाज ने यह पर्चा जारी किया था.]