मोदी शासन द्वारा थोपी गई बेलगाम इमर्जेंसी का प्रतिरोध करें

त्रिपुरा में किसी तरह सत्ता बचा लेने के बाद मोदी सरकार ने अब सड़क की ताकत, प्रचार और राज्य सत्ता की मिलीजुली शक्तियों के सहारे विपक्ष के खिलाफ चौतरफा आक्रमण छेड़ दिया है, और यह इस फासिस्ट शासन का प्रतीक-चिन्ह बन गया है. त्रिपुरा में सापेक्षिक रूप से शांतिपूर्ण चुनावों के बाद संघ ब्रिगेड ने उस राज्य में अब आतंक, बदले की कार्रवाई और हिंसा की नई मुहिम छेड़ दी है और वह विपक्षी पार्टियों, उनके मतदाताओं और यहां तक कि वामपंथी व कांग्रेसी सांसदों व विधायकों के जांच दल को भी अपना निशाना बना रहा है जो उस आतंक-प्रभावित राज्य में दौरा करने गया था.

जोशीमठ और बनफूलपुरा : लापरवाह सरकार और कॉरपोरेट लोभ से उत्तराखंड को बचाओ!

जोशीमठ, उत्तराखंड की सीमाओं पर स्थित अंतिम शहर, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. पूरे शहर में हर दिन सड़कों और घरों में नई दरारें उभर रही हैं जिससे वह जगह पूरी तरह असुरक्षित और निवास के लिए अयोग्य बनती जा रही है. चेतावनी की हर घंटी तथा संकेत को सुनने से इनकार करने वाला लापरवाह प्रशासन अब हैरान-परेशान होकर उन घरों और होटलों की निशानदेही कर रहा है जिन्हें तुरंत खाली कराना जरूरी हो गया है.

असमानता जानलेवा है : अमीरों पर टैक्स लगाओ, गरीबों पर नहीं

ऑक्सफैम द्वारा 16 जनवरी, 2023 को जारी वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2022 का शीर्षक “सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट” है.  ‘वर्ल्ड इकनोमिक फोरम’ में दुनियाभर के रईसों और ताकतवर लोगों के होने वाले सालाना जलसे के समय आयी यह रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है कि रईसों की बढ़ती आय और लोगों के बीच धन की असमानता कोविड-19 महामारी के दौरान खतरनाक रूप से बढ़ी है. नवउदारवादी जमाने की प्रतिगामी टैक्सों के जरिये ऐसे हालात कायम कर दिए गए हैं कि जहां गरीबों पर भारी टैक्स का बोझ डाल दिया गया है, वहीं अमीरों से बहुत कम टैक्स वसूला जा रहा है.

2023: एकताबद्ध और शक्तिशाली फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध की ओर बढ़ें !

नए साल की शुरूआत आम तौर पर नए लक्ष्य निर्धारित करने और नए संकल्प ग्रहण करने का वक्त होता है. मोदी सरकार के लिए यकीनन इसका मतलब है पुराने वादों को रद्दी की टोकरी में डालना और नए लक्ष्यों के साथ नए विमर्श रचना.

मोदी मीडिया के बाद क्या सरकार अब मोदी न्यायपालिका भी चाहती है

हाल के अतीत में हमने सर्वोच्च न्यायालय पर मोदी सरकार के कई संगठित हमले देखे हैं. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड और केंद्रीय विधि मंत्री किरन रिजिजू को बारी-बारी से सार्वजनिक तौर पवर जजों की नियुक्ति की काॅलेजियम प्रणाली की भत्र्सना करते सुना गया है, तबकि उपराष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय को इस बात के लिये बुरा-भला कहा कि उसने 2015 में पारित ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम’ को निरस्त कर दिया. उपराष्ट्रपति ने इस फैसले को ‘जनता के जनादेश’ का अपमान बताया है. इसके जवाब में, सर्वोच्च न्यायालय ने इसपर अपनी नाराजगी जताई और महाधिवक्ता आर.

हिमाचल, दिल्ली और गुजरात चुनावों से मिले संकेत और सबक

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों और दिल्ली में नगर निगम चुनाव के नतीजे आशानुरूप दिशा में ही आए हैं; अलबत्ता, गुजरात में भाजपा को जितने भारी पैमाने पर जीत मिली है वह निश्चय ही गहरी छानबीन का विषय है. इन तीनों चुनावों में भाजपा ही सत्तासीन पार्टी थी, और अब वह इनमें से दो में सत्ता खो चुकी है. इस लिहाज से भाजपा को ही नुकसान हुआ है, किंतु गुजरात में वोट शेयर (52 प्रतिशत से ज्यादा) और सीट शेयर (85 प्रतिशत से ज्यादा) दोनों लिहाज से भाजपा को मिली भारी जीत के तले उसका यह नुकसान दब-सा गया है.

भाजपा के उद्दंड और नफरत से भरे चुनावी विमर्श को शिकस्त दें!

हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधान सभा तथा दिल्ली नगर निगम चुनावों के परिणाम आ रहे हैं (चुनाव परिणाम आ चुके हैं – सं.), तो आइये, हम इन चुनावों में भाजपा द्वारा चलाई गयी मुहिम पर एक करीबी नजर डाल लेते हैं.

बाबरी मस्जिद विध्वंस के तीस साल: भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र पर संघ ब्रिगेड का बढ़ता युद्ध

6 दिसंबर 2022 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के तीस साल पूरे हो जायेंगे. भारत की आजादी के लगभग दो साल बाद 22-23 दिसंबर 1949 की रात में उस मस्जिद के अंदर चोरी-छिपे मूर्तियां रखकर जो टाइम बम स्थापित किया गया था, वह 6 दिसंबर 1992 की दोपहर में फूट पड़ा, जब खुशियां मनाते शीर्ष भाजपा नेताओं की उपस्थिति में एक भीड़ ने उस मस्जिद को ढहा दिया. अगर भविष्य में इतिहासकार आज के भारत में सांप्रदायिक फासीवाद के उत्थान के किसी विशिष्ट क्षण को चिन्हित करने की कोशिश करेंगे, तो यकीनन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस ही वह क्षण होगा.

मोदी पूजा को धूल चटायें और भाजपा कुशासन को खत्म करें

हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और गुजरात की जनता के लिए एक बार फिर चुनावी मौसम आया है. हिमाचल प्रदेश के लोगों ने तो अगली विधानसभा और नई सरकार के लिए मतदान कर भी दिया है; जबकि दिल्ली के लोग 4 दिसंबर को पुनर्गठित नगर निगम के चुनाव के लिए वोट डालेंगे तथा गुजतात की जनता दो चरणों में, 1 और 5 दिसंबर को मतदान में भाग लेंगे. पूरी तरह साख खो चुके और नकारा शासन को बचाने की हताश कोशिश में भाजपा एक बार फिर अति-नाटकीय मोदी अभियान पर भरोसा कर रही है, जबकि खुद मोदी लोगों का ध्यान बंटाने वाली अपनी मुहिम को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने के लिए अपने निष्ठावान गोदी मीडिया पर निर्भर हैं.

ईडब्लूएस आरक्षण संविधान और इसकी भावना का मखौल उड़ाता है

ऊंची जातियों को आरक्षण देने के मकसद से उन जातियों के आर्थिक रूप से गरीब तबकों (ईडब्लूएस) के लिए 10 प्रतिशत कोटा निर्धारित करने के मोदी सरकार के फैसले को बरकरार रखने वाला सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय भारतीय संविधान की मूल भावना में निहित आरक्षण के उद्देश्य और मकसद का स्पष्ट उल्लंघन है. यह निर्णय वंचित तबकों के खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय को मजबूत ही बनाता है. यही बात न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट ने भी दुहराई थी, जब उन्होंने ईडब्लूएस आरक्षण फैसले के संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के साथ मिलकर असहमतिपूर्ण फैसला दिया था. उन्होंने कहा कि, “...