वर्ष - 28
अंक - 32
27-07-2019

19 जुलाई को पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में एक ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त भुर्तिया बंदूकधारियों को साथ लेकर कई ट्रैक्टरों में भरकर उम्भा गांव पहुंचा और उसने अपनी जमीन जोत रहे गोंड आदिवासियों पर गोली चलाना शुरू किया. इस जनसंहार में 10 आदिवासी मारे गये.

सोनभद्र का जनसंहार एक बार फिर इस तथ्य को रेखांकित करता है कि योगी आदित्यनाथ के राज में उत्तर प्रदेश न्याय और मानवीय अधिकारों की कब्रगाह बन चुका है जहां दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी और महिलाएं हमलावरों के रहमोकरम पर जी रहे हैं और आये दिन जनसंहारों तथा गैर-न्यायिक हत्याओं के शिकार बन रहे हैं.

उल्लेखनीय बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार अथवा राज्य प्रशासन का कोई भी आदमी जनसंहार के शिकार परिवारों और पीड़ितों से मिलने को नहीं आया. इसके बजाय, विपक्ष के नेतागण – जिनमें उत्तर प्रदेश के पार्टी राज्य सचिव के नेतृत्व में एक जांच टीम भी शामिल है – ही सबसे पहले उम्भा गांव पहुंचे. पुलिसवालों ने भाकपा(माले) की जांच टीम को, जो घटनास्थल पर जांच करने पहुंच गई थी, डराने-धमकाने की बहुत कोशिशें कीं. उत्तर प्रदेश सरकार ने अत्यंत गैर-संवैधानिक तरीका अख्तियार करते हुए कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी को, जो गांव वालों से मिलने की कोशिश कर रही थीं, जबर्दस्ती रोक दिया.

जब विपक्षी पार्टियों ने इस जनसंहार को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना लिया तो अंततः आदित्यनाथ ने उस गांव का दौरा किया और जनसंहार पीड़ितों के परिवारों को कुछ क्षतिपूर्ति देने का ऐलान किया. लेकिन उन्होंने इस अवसर का इस्तेमाल करके भूमि हड़प और उसके चलते हुए जनसंहार का सारा दोष कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी पार्टियों के मत्थे मढ़ देने की कोशिश भी की.

इस बात का पक्का सबूत है कि जनवरी 2019 में ही सोनभद्र जिले के दुद्धी विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी विधायक ने खुद मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उम्भा में भू-माफियाओं द्वारा आदिवासियों की जमीन हड़पने की कोशिशों के बारे में सतर्क किया था और साथ में न्याय और सुरक्षा की मांग करते हुए उम्भा के ग्रामवासियों के हस्ताक्षर समेत एक आवेदन को नत्थी किया था. इसके अलावा, उम्भा के 22 ग्रामीणों ने उत्तर प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडेय को, जो आजकल केन्द्र सरकार में दक्षता विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय के मंत्री हैं, एक पत्र लिखकर अपील की थी कि वे “भू-माफिया से उनके प्राणों की रक्षा” के लिये अविलम्ब हस्तक्षेप करें. प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा अध्यक्ष ने ग्रामीणों की इस पुकार को अनसुना कर दिया, जबकि स्थानीय पुलिस ने उम्भा के ग्रामीणों को हैरान-परेशान करना शुरू किया और यज्ञ दत्त एवं उसके चट्टे-बट्टों को ग्रामीणों के खिलाफ, जो अपनी ही जमीन जोत रहे थे, मुकदमा दर्ज कराने की इजाजत दे दी. अगर मुख्यमंत्री और शासक पार्टी भाजपा के नेताओं ने जनवरी में ही कदम उठा लिया होता तो जुलाई माह में हुए इस जनसंहार को बिल्कुल रोका जा सकता था.

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इस जनसंहार के पीड़ितों ने यह भी कहा है कि स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने उनसे उस जमीन पर, जिसे हड़पा जा रहा है, अपने दावों को लेकर “समझौता” करने को कहा था, और उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर वे समझौता नहीं कर सके तो ऐसी हालत में फ्अगर कुछ घटित हो जाता हैय् तो वे प्रशासन को दोष नहीं दे सकते. इससे बिल्कुल स्पष्ट होता है कि पुलिस को निकट भविष्य में होने वाले हमले के बारे में पहले से पता था. यह तो जनसंहार में पुलिस की आपराधिक सांठगांठ का एक सबूत है.

सोनभद्र का भूमि विवाद कई दशकों पुराना है. वर्ष 1955 में यह जमीन ग्राम सभा के अधीन थी और गांव के गोंड इस पर खेती करते थे. इसको गैर-कानूनी तरीके से एक निजी “कोऑपरेटिव सोसाइटी” के हाथों सौंप दिया गया. बाद में इस सोसाइटी ने गैर-कानूनी तरीके से हथियाई हुई इस जमीन के बड़े हिस्से को एक और निजी व्यक्ति को बेच दिया, जिसने फिर उस जमीन को यज्ञ दत्त भुर्तिया को बेच दिया, जो इस जनसंहार का मुख्य आरोपी है. 2017 में भुर्तिया ने इस जमीन को अपने नाम हस्तांतरित (म्यूटेशन) करने का आवेदन दाखिल कर दिया, और तब से इस झगड़े ने तीखा रूप धारण कर लिया. जनवरी 2018 में यज्ञ दत्त के नाम जमीन के हस्तांतरण (म्यूटेशन) का काम पूरा हो गया. ग्रामीणों ने दीवानी अदालत (सिविल कोर्ट) में इस हस्तांतरण के खिलाफ आवेदन दायर कर दिया. 6 जुलाई 2019 को, जनसंहार के दो हफ्ते पहले, जिला प्रशासन ने हस्तांतरण के खिलाफ ग्रामवासियों की एक अपील को ठुकरा दिया था.

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भूमि हड़प और जनसंहार के समूचे मामले में अपनी, अपनी पुलिस और प्रशासन की प्रत्यक्ष संलिप्तता पर पर्दा डालने की कोशिश में सारे मामले का दोषी कांग्रेस को ठहराया है, जिसकी सरकार उत्तर प्रदेश में 1985 से लेकर 1989 तक कायम थी! निस्संदेह, भूमि हड़प उन्हीं दशकों में शुरू हो चुका था. लेकिन मौजूदा सरकार इस तथ्य से इन्कार नहीं कर सकती कि उसके अपने प्रशासन ने ही यज्ञ दत्त के नाम भूमि हस्तांतरण के काम को पूरा किया और हस्तांतरण के खिलाफ आवेदनों को खारिज कर दिया; कि उनकी अपनी पुलिस की सांठगांठ से और उनकी जानकारी में इस जनसंहार को अंजाम दिया गया; और सर्वोपरि यह तथ्य कि खुद मुख्यमंत्री ने गोंड आदिवासियों से न्याय की प्रत्यक्ष अपील को अनदेखा कर दिया था.

आदित्यनाथ और भाजपा के हाथ सोनभद्र के आदिवासियों के खून से रंगे हैं. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार साम्प्रदायिक नफरत को, गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्या को और गैर-न्यायिक हत्याओं को बढ़ावा देने में लगी हुई है, जिससे राज्य में सामंती दलित-विरोधी और आदिवासी-विरोधी शक्तियों का मन बढ़ रहा है. खुद मुख्य मंत्री से लेकर जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक तक, उत्तर प्रदेश सरकार, पुलिस और प्रशासन को इसके लिये जवाबदेह ठहराना होगा और उन्हें सोनभद्र जनसंहार, जो उत्तर प्रदेश के इतिहास में आदिवासियों के बदतरीन जनसंहारों में एक गिना जायेगा, के लिये उपयुक्त सजा भोगनी होगी.