वर्ष - 28
अंक - 36
24-08-2019

एआइपीएफ बैठक के बाद “बदलते भारत में संविधान और जन अधिकारों पर हमला – हमारा हस्तक्षेप और विकल्प” विषय पर जन कन्वेंशन हुआ. तीर्थराज सभागार में आयोजित इस जन कन्वेन्शन में पफोरम के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधियों के अलावा छत्तीसगढ़ के कई वरिष्ठ बुद्धिजीवियों, सामाजिक जन संगठनों, ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों और नागरिक समाज के वरिष्ठ जनों के अलावा भिलाई स्टील के मजदूर शामिल हुए.

कन्वेंशन को संबोधित करते हुए फोरम की वरिष्ठ नेता कविता कृष्णन ने वर्तमान समय में देश के हर नागरिकों को सतर्क रहने की अपील करते हुए कहा कि केंद्र की वर्तमान सरकार जनादेश का गलत इस्तेमाल कर इस देश के संविधान को ही तहस-नहस करके केवल नफरत-उन्माद फैला रही है. लोगों का ध्यान भटकाकर देश लूटनेवाले कारपोरेटों को दोस्त बता रही है और सवाल उठानेवालों को देशविरोधी करार दे रही है. यहाँ तक कि संसद में इनके गृहमंत्री खुला ऐलान करते हैं : मैं जो कहूँगा वही सही है और वही सुनना होगा.

उन्होंने कश्मीर दौरे का दर्दनाक हाल बताते हुए कहा कि ये कैसी आजादी है जिसमें राज्य के विशेषाधिकारों को छीनकर और पूरे देश के सामने दुश्मन बताकर वहां के मूल निवासियों को सैन्य बलों व कटीले तारों के घेरे में कैद कर दिया गया है. तमाम संचार माध्यमों को ठप्पकर पूरी दुनिया से काट कर कारपोरेट नियंत्रित मीडिया से केवल दुष्प्रचार पफैलाकर वहां की जमीनें कारपोरेटों के हवाले करने की ही तैयारी है.

दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता जाॅन दयाल ने कहा कि देश के संविधान ने जो हमारे नागरिक अधिकारों का अश्वासन हमें दिया है, वर्तमान सरकार ने उसे पूरी निर्ममता से तोड़ दिया है. काश्मीर इसी का ताज़ा उदाहरण है कि जो करार उनके साथ वर्षों पूर्व हुआ था, एक झटके से तोड़कर उन्हें ही खलनायक बताया जा रहा है. एनआरसी के नाम पर परिवारों तक को तोड़कर जेलों में डाला जा रहा है. सारे अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला बोलकर उन्हें अपने ही देश में दुश्मन बताया जा रहा है.

जाने माने आंदोलनकारी व फोरम के राष्ट्रीय नेता सुनीलम ने कहा कि यह प्रचंड बहुमत की नहीं बल्कि ईवीएम की सरकार है. इसीलिए यह पूरे सुनियोजित ढंग से देश के संविधान-लोकतंत्र को खत्म करने पर तुली हुई है. जो हाल काश्मीर का किया है अब वही हाल बस्तर-छत्तीसगढ़ का भी करेगी. ऐसे में देश जनता को एक नए और वास्तविक विकल्प की तैयारी करनी होगी. सत्ता के हमलों और विभाजनकारी साजिशों के खिलाफ एक-दूसरे पर विश्वास को मजबूत करना होगा.

ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव ने कहा कि मोदी जी का फास्ट ट्रैक विकास केवल मंदी और विनाश ला रहा है. इनके नेताओं की ओछी मानसिकता कश्मीरी बच्चियों को लेकर दिये जा रहे घृणित बयानों में दीखती है और मोदी 15 अगस्त को लाल किले से महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने केंद्र की सरकार पर लोकतंत्र को खत्म कर मिलिटराइजेशन राज थोपने का आरोप लगाते हुए कहा कि जहां-जहां राष्ट्रीयताओं का आंदोलन चल रहा है उसे देश विरोधी करार देकर कुचला जा रहा है. बस्तर के संगीन हालात इसी के उदाहरण हैं.

हिंदुस्तान स्टील इंपलाइज यूनियन (सीटू) के मजदूर नेता डीबीएस रेड्डी ने कहा कि ऐसे अजीबोगरीब डरावने हालात पैदा किए जा रहे हैं जिसमें संसद तक की भाषा बदल गई है. गृहमंत्री सदन में दादागिरी के अंदाज में बात करते हैं. लोगों का ध्यान इसपर नहीं जाये इसके लिए तरह तरह से भटकाया जा रहा है. ऐसे में वाम-जनवादी व लोकतंत्र पसंद ताकतों को छोडकर कोई भरोसेमंद विकल्प नहीं हो सकता.

जन कन्वेन्शन को छत्तीसगढ़ नागरिक सहयोग समिति के अखिलेश एडगर, छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के आई के वर्मा, हिन्द मजदूर सभा के वज़ी अहमद तथा आप पार्टी की अरसिया आलम समेत कई अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया. कन्वेन्शन का संचालन फोरम के बृजेन्द्र तिवारी ने किया. जन संस्कृति मंच के अनिल अंशुमन ने जनगीत पेश किए.

convention AIPF

 

कश्मीरियों ने किया धारा 370 हटाने का विरोध

धारा 370 हटाए जाने के फैसले से नाराज जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले कश्मीरी पंडित, डोगरा और सिख समुदाय के लोगों ने एक पेटीशन साइन किया है. इस पेटीशन पर साइन करने वाले लोगों का मानना है कि सरकार ने ये कदम उठाकर जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ धोखा किया है. इस पेटीशन के मुताबिक सरकार का ये कदम गैर लोकतांत्रिक, एकतरफा और संविधान के खिलाफ है.

पेटीशन में मांग की गई है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों का बाहरी दुनिया के साथ कटा हुआ संपर्क जल्द से जल्द वापस लाया जाए. सभी राजनीतिक प्रतिनिधियों को रिहा किया जाए. जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से सेना की संख्या को बढ़ाकर एक तरह की घेराबंदी की गई है उसे भी हटाया जाए. पेटीशन पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रोफेसर, थिएटर कलाकार, पत्रकार, डाक्टर, वायुसेना के रिटायर्ड अधिकारी, छात्र और रिसर्च स्काॅलर शामिल हैं. उन्होंने लिखा है -

“हम राज्यविहीन लोग, जो पहले जम्मू-कश्मीर में रहते थे, साफ तौर पर आर्टिकल 370 के हटाए जाने की निंदा करते हैं. हम भारत के लोगों को बता देना चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत के साथ इसके लोकतांत्रिक और सेकुलर होने की वजह से आया था. केवल जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य था जिसने 1949 में भारत की संविधान सभा की कार्यवाही के दौरान भारत में मिलने के लिए कुछ शर्तें तय की थी. इसी के बाद आर्टिकल 370 अपने वजूद में आया था.

ऐसे में हम मानते हैं कि आर्टिकल 370 हटाने का फैसला ताकत के दम पर लिया गया है. साथ ही इस कदम से जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किए गए वादों को तोड़ा गया है और ये असंवैधानिक है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा की राय और मंजूरी लिए बगैर भारत सरकार ने ये फैसला चुपके से लिया है.

हम इस तथ्य को फिर से बताना चाहते हैं कि हमसे कोई बात नहीं की गई और हमारे भविष्य पर हमारी मंजूरी के बगैर लिया गया कोई भी फैसला वैध नहीं हो सकता. हम इस एकतरफा, अलोकतांत्रिक और गैर-संवैधानिक थोपे गए फैसले की निंदा करते हैं. हम जम्मू-कश्मीर पर लिए गए इस फैसले को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग करते हैं. जो जम्मू-कश्मीर के लोगों पर कम्यूनिकेशन गैग लगाया गया है उसे भी हटाया जाए. कैद किए गए सभी राजनीतिक प्रतिनिधियों को रिहा किया जाए.

हम अपने गृहराज्य के बंटवारे को लेकर भी दुखी हैं और हम इस इम्तेहान की घड़ी में एकजुट होकर खड़े रहने की मांग करते हैं. हम हर उस फैसले का विरोध करेंगे जो हमें धार्मिक या सांस्कृतिक तौर पर बांटने की कोशिश करेगा.”