Statement of UP State Committee

 

10 मार्च, लखनऊ, भाकपा (माले) की राज्य इकाई

दंगा पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित किया जाए, मामले की न्यायिक जांच हो

लखनऊ, 10 मार्च. भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने 2013 के कुख्यात मुजफ्फरनगर दंगे में सरधना के बीजेपी विधायक संगीत सोम के खिलाफ दर्ज मामले में पुलिस एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को एक विशेष न्यायालय द्वारा स्वीकार लेने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है.

भाकपा (माले) ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि पहले तो मुख्यमंत्री योगी ने आते ही अपने खिलाफ पूर्व में दर्ज आपराधिक मामलों को खुद ही जज बन वापस करा लिया था. अब वह दंगे के अभियुक्त भाजपा नेताओं के खिलाफ भी मामले अपनी पुलिस से वापस करा रहे हैं. एक ऐसी सरकार में, जो मुद्दई भी खुद हो और मुंसिफ भी खुद, पीड़ित जनता को न्याय आखिर कौन दिलाएगा?

पार्टी ने कहा कि योगी सरकार अपने अधिकारों का संविधान और कानून के खिलाफ जाकर दुरुपयोग कर रही है. एक तरफ वह जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों में कटौती कर रही है, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले कर रही है, डॉ. कफील जैसे निर्दोषों, सीएए-विरोधी आंदोलनकारियों और सरकार से असहमत लोगों के खिलाफ झूठे मुकदमे लगा रही है, वहीं अपनी पार्टी के नामजद अभियुक्तों पर से बिना उचित जांच कराए मुकदमे हटा रही है. यह भला कौन सा जनहित है?

पार्टी ने कहा कि विशेष अदालत में एसआईटी की उक्त क्लोजर रिपोर्ट का विरोध इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि यह काम भी सरकार को ही करना था. जिस पुलिस अधिकारी (मुजफ्फरनगर कोतवाली में तैनात तत्कालीन एसआई सुबोध कुमार) ने संगीत सोम व अन्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, उनकी बाद में बुलंदशहर जिले की स्याना कोतवाली में प्रभारी निरीक्षक पद पर रहने के दौरान 2018 में गोकशी का मामला बनाकर भगवा संगठन से जुड़े दंगाइयों द्वारा हत्या कर दी या करा दी गई थी.

माले ने कहा मुजफ्फरनगर दंगा कोई मामूली घटना नहीं थी. इसमें पांच दर्जन से ऊपर लोगों की हत्या हुई थी और हजारों परिवारों को पलायन करना पड़ा था. संगीत सोम समेत भाजपा से जुड़े लोगों द्वारा 2013 में झूठा वीडियो वायरल करने, गैरकानूनी महापंचायत कर लोगों को दंगे के लिए उकसाने जैसा घृणित व आपराधिक कृत्य किया गया था, जिसकी पुष्टि कराने में पुलिस जांच एजेंसी द्वारा न तो रुचि दिखाई गई न ही विश्वसनीय जांच की गई. अन्ततः योगी सरकार के इशारे पर एसआईटी ने क्लोजर रिपोर्ट लगा दी और विशेष अदालत ने सोमवार को आदेश जारी कर इसे स्वीकृति प्रदान कर दी. ऐसे में दंगा-पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामले को 'क्लोज' करने के बजाय इसकी न्यायिक जांच कराई जाए. पीड़ितों के अभिभावक के बतौर यह जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही है. या फिर उच्च न्यायपालिका इसका स्वस्तः संज्ञान लेकर पीड़ितों के आंसू पोछे.

- UP State Committee, CPIML