farm laws

कृषि क़ानूनों के बाद अन्य दमनकारी व विभेदकारी क़ानूनों की वापसी तथा लेबर कोड व परिसंपत्तियों की बिक्री जैसे कॉरपोरेट परस्त कदमों को निरस्त  करवाने के लिए कदम बढ़ाए जाएँ मोदी सरकार द्वारा थोपे गए काले कृषि क़ानूनों की वापसी के लिए साल भर चले किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष की जीत पर भाकपा(माले) किसानों को गर्मजोशी भरी बधाई देती है. इस जीता का स्पष्ट संदेश है कि जनांदोलनों की ताकत से बेहद अहंकारी और निरंकुश सत्ताओं को भी शिकस्त दी जा सकती है. 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद गरिमाहीन तरीके से कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा की. उन्होंने “राष्ट्र” से कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए माफी मांगी. पर उन्होंने किसानों को देशद्रोही कहने और उन पर दमन ढाहने के लिए माफी नहीं मांगी. पिछले एक साल में भाजपा प्रायोजित पुलिस दमन और दिल्ली के बार्डरों की कठोर परिस्थितियों के चलते 700 से अधिक किसान प्राण गंवा बैठे.


किसान कृषि क़ानूनों को पीछे धकेलने में कामयाब हो गए हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी), किसान नेताओं पर दर्ज झूठे मुकदमों की वापसी और आंदोलनकारी किसानों के विरुद्ध घृणा और हिंसा को उकसाने वाले मंत्री अजय मिश्रा जैसों के इस्तीफे के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा. 
कृषि क़ानूनों को वापस करवाने में मिली इस जीत को , सीएए और यूएपीए जैसे दमनकारी,विभेदकारी क़ानूनों, लेबर कोड व सार्वजनिक परिसंपत्तियों की बिक्री जैसी  कॉरपोरेट परस्त नीतियों तथा भारत के संविधान व उसकी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व संघीय बुनियाद पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ चल रहे संघर्षों को तेज करने के हौसले को दृढ़ करने के काम आना चाहिए. 


दीपंकर भट्टाचार्य 
महासचिव 
भाकपा(माले)