वर्ष - 28
अंक - 38
07-09-2019

बिमल जालान के नेतृत्व वाली समिति की अनुशंसाओं के मुताबिक सरकार को अपने आरक्षित कोष से 1.76 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित करने के रिजर्व बैंक के फैसले, और सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों का आपस में विलय करने के मोदी सरकार के निर्णय के ठीक बाद एक सार्वजनिक बहस संगठित की गई जिसका विषय था – रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष का हस्तांतरण और बैंकों का विलय: लूट या ‘बूस्ट’ (प्रोत्साहन)? ‘फायनेंशियल अकाउंटबिलिटी नेटवर्क इंडिया’ की ओर से यह बहस संगठित की गई थी.

इस मौके पर बोलते हुए ‘सेंटर फाॅर इकाॅनोमिक स्टडीज एंड प्लानिंग, जेएनयू’ की प्रो. जयती घोष ने कहा, “नवंबर 2016 में रिजर्व बैंक की स्वायत्तता खत्म हो गई, जब सरकार ने नोटबंदी की घोषणा की थी. मौजूदा सरकार ऐसी है जिसकी कोई जवाबदेही नहीं है. भारत जिस आर्थिक अस्तव्यस्तता में उलझ गया है वह इसी का नतीजा है.”

विशाल धन राशि हस्तांतरण करने के बारे में उन्होंने कहा, “सरकार सार्वजनिक वित्त के साथ खिलवाड़ कर रही है. रिजर्व बैंक की यह राशि नोटबंदी और हड़बड़ी में लागू किए गए जीएसटी द्वारा उत्पन्न छिद्रों को भरने के लिए लगाई जाएगी.”

इस बहस में भाकपा महासचिव सीताराम येचुरी, प्रो. जयती घोष, सेंटर फाॅर इकाॅनोमिक स्टडीज एंड प्लानिंग (जेएनयू) के प्रो. सीपी चंद्रशेखर, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक परंजय गुहा ठाकुर्ता, अखिल भारतीय बैंक अधिकारी महासंघ के पूर्व महासचिव डा. थाॅमस फ्रैंको, केंद्रीय पीएसयू के अधिकारी संघों के राष्ट्रीय महासंघ के सेक्रेटरी जेनरल वीके तोमर और भाकपा(माले) के का. पुरुषोत्तम शर्मा ने शिरकत की.

वीके तोमर ने कहा कि सरकार अब सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों से अपना पल्ला झाड़ लेना चाहती है. ब्रिटिश इंडिया काॅरपोरेशन (जिसने पिछले 24 महीनों से वेतन का भुगतान नहीं किया है) का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अनेक पीएसयू में यही स्थिति पैदा हो गई है.

डा. थाॅमस फ्रैंको ने कहा, “बैंकों का विलय बैंकिंग कंपनीज (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) ऐक्ट, 1970 का उल्लंघन है. इस ऐक्ट में कहा गया है कि विलय के लिये बोर्ड और शेयर धारकों की सहमति अनिवार्य है.” उन्होंने आरोप लगाया कि इस राशि का इस्तेमाल लड़खड़ाते-जूझते काॅरपोरेटों की मदद में किया जाएगा.

भाकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, “सरकार को रिजर्व बैंक की आरक्षित राशि के हस्तांतरण से आरबीआइ में अस्थिरता उत्पन्न होगी, इससे भारत वर्तमान वैश्विक और घरेलू मंदी के सामने कमजोर पड़ जाएगा. काॅरपोरेटों के इशारे पर ही बैंकों का विलय किया गया है, क्योंकि वे ट्टण के लिए बैंकों के समूह के बजाय एक बैंक के साथ सौदेबाजी करने की मांग कर रहे थे.”

बैंक-विलय को बैंक हत्या बताते हुए भाकपा(माले) नेता पुरुषोत्तम शर्मा ने आरोप लगाया कि सरकार इस कदम के जरिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की व्यापक लूट पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, “आर्थिक लूट मोदी सरकार का मुख्य धंधा बन गया है; और वह बार-बार नोटबंदी, अंधाधुंध खनन तथा काॅरपोरेटों को हवाई अड्डों, रेलवे व बीएसएनएल के हस्तांतरण जैसे काले कदम उठाकर जनता की लड़ाकू क्षमता का  इम्तिहान ले रही है.”