वर्ष - 29
अंक - 25
13-06-2020

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमिलनाडु में ‘नीट’ पोस्ट ग्रेजुएशन मामले में रिजर्वेशन को लेकर की गई टिप्पणी संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण कोई बुनियादी अधिकार नहीं है. भाकपा(माले) राज्य सचिव कुणाल ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी करार देते हुए कहा कि आरक्षण की परिकल्पना सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए की गई है, यह कोई भीख में दी गई चीज नहीं है.

उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस का सबसे बड़ा हमला आरक्षण पर ही है और ये ताकतें लगातार उसे खत्म करने की कोशिश में लगी रहती हैं. ये संविधान को बदलकर मनुस्मृति का शासन देश पर थोप देना चाहते हैं. लेकिन बिहार विधान सभा चुनाव को देखते हुए भाजपाइयों ने आरक्षण पर नया भ्रम फैलाना आरंभ कर दिया है और ऐसा लग रहा है कि वही आरक्षण बचाने के लिए प्रतिबद्ध है.

रामविलास जी कहते हैं कि आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाला जाना चाहिए. उनको यह मांग तो भाजपा और अपनी सरकार से करनी चाहिए. यदि रामविलास जी इस मसले पर सभी पार्टियों की एकता चाहते हैं, तो उन्हें दलितों-पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देने पर आमादा संविधान व लोकतंत्र विरोधी भाजपा से नाता तोड़ना होगा.

बिहार में भाजपा-जदयू ने इस बार एक नई चाल चली हैदलितों-पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने वाले ये लोग आज आरक्षण बचाने के नाम पर सभी राजनीतिक दलों के अनुसूचित जाति व जनजाति के विधायकों को एक मंच पर आने की बात कह रहे हैं. यह मोर्चा अपने आप में दलितों-पिछड़ों की आंखों में धोखा देने के सिवा कुछ नहीं है.

भाकपा(माले) का भाजपा-जदयू के नेतृत्व वाले इस प्रकार के मोर्चे से कोई लेना-देना नहीं है; बल्कि इन ताकतों के खिलाफ लड़कर ही आरक्षण को बचाया जा सकता है. भाकपा(माले) विधायक सत्यदेव राम का नाम बिना उनकी सहमति के इस तथाकथित मोर्चे में डाल दिया गया था. हमारी पार्टी भाजपा के आरक्षण विरोधी चरित्र का पर्दाफाश करती रहेगी और भाजपा-जदयू द्वारा आरक्षण पर लगातार हो रहे हमले के खिलाफ हम आरक्षण बचाने वाली ताकतों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ते रहेंगे.