वर्ष - 29
अंक - 39
19-09-2020

देश की कई नामचीन हस्तियों जिनमें फिल्मकार सईद मिर्जा, योजना आयोग की पूर्व सदस्य साइदा हमीद, लेखिका अरुंधति राॅय, कलाकार टीएम कृष्णा, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण व एनडी पंचोली, लेखक व पत्रकार पी. साईनाथ, महिला नेता बृंदा करात व कविता कृष्णन, सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवाणी व हर्ष मंदर, आदि शामिल हैं, एक बयान जारी कर देश के संवैधानिक मूल्यों के लिए आवाज बुलंद करने वाले सबसे साहसिक युवाओं में से एक उमर खालिद की गिरफ्तारी की भर्त्सना, उनकी तत्काल रिहाई और दिल्ली पुलिस द्वारा ऐसी धरपकड़ को रोकने की मांग की है.

बयान जारी करनेवालों में मिहिर देसाई (वरिष्ठ अधिवक्ता), आकार पटेल (पत्रकार और एक्टिविस्ट), बिरज पटनायक (पब्लिक पाॅलिसी विशेषज्ञ), दराब फारुकी, (लेखक और गीतकार), फराह नकवी, गीता हरिहरन, कविता श्रीवास्तव व जयराम वेंकटेशन (लेखक/सामाजिक कार्यकर्ता), नवशरण सिंह व प्रवीर पुरकायस्थ (स्वतंत्र शोधकर्ता), रवि करिण जैन व वी. सुरेश (पीयूसीएल) तथा चर्चित प्राध्यापकों - प्रो. अतुल सूद, प्रो. सुरजीत मजुमदार, प्रो. आयशा किदवई, प्रो. जयति घोष, प्रो. डीके लोबियाल (सभी जेएनयू), प्रो. नंदिनी सुंदर, प्रो. अपूर्वानंद (सभी डीयू), प्रो. मैरी जाॅन, प्रो. प्रभात पटनायक, प्रो. सतीश देशपांडे के नाम भी शामिल हैं.

बयान में कहा गया है कि ‘संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध नागरिक के बतौर हम उमर खालिद की गिरफ्तारी की भर्त्सना करते हैं. खालिद को सीएए विरोधी प्रतिवादकारियों को निशाना बनाकर चलाई जा रही दुर्भावनापूर्ण पूछताछ का शिकार बनाया गया. उनपर यूएपीए, राजद्रोह और हत्या की साजिश रचने जैसे कई आरोप लगाकर उनको गिरफ्तार किया गया. गहरे क्षोभ के साथ हम निस्संदेह यह कह रहे हैं कि फरवरी 2020 में दिल्ली हिंसा को लेकर नहीं, बल्कि असंवैधानिक सीएए के खिलाफ देश भर में चले शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक प्रतिवादों को लेकर यह पूछताछ की गई थी.’

‘उमर खालिद उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं जिन्होंने इन सीएए विरोधी प्रतिवादों के दौरान पूरे देश में संविधान के हक में आवाज बुलंद की थी और हमेशा ही शांतिपूर्ण, अहिंसक व लोकतांत्रिक तरीकों के इस्तेमाल की वकालत की थी. उमर खालिद संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में भारतीय युवाओं की एक सशक्त आवाज के बतौर उभरे थे. दिल्ली हिंसा के लिए साजिश रचने के अनेकानेक मनगढ़ंत आरोपों में उन्हें पफंसाने की दिल्ली पुलिस की बारंबार कोशिशें विरोध की आवाज को दबाने के खुले प्रयासों का ही अंग हैं. यह कापफी महत्वपूर्ण है कि 20 में से 19 गिरफ्तार लोग 31 वर्ष से कम उम्र के हैं, जिनमें से 17 के खिलाफ काले यूएपीए कानून के तहत आरोप लगाया गया है और उन्हें दिल्ली हिंसा के लिए साजिश रचने के आरोप में जेल भेजा गया है; जबकि जिन लोगों ने वास्तव में उस हिंसा को भड़काया था और उसमें शामिल रहे थे उन्हें छुआ तक नहीं गया. जेल भेजे गए लोगों में 5 तो महिलाएं हैं और एक को छोड़कर शेष सभी छात्र हैं.’

‘हमारे लोकतंत्रा की बुनियाद हमारे विवेक की आजादी है और किसी भी देश की शक्ति उसके युवाओं के विचार होते हैं. हम उमर खालिद और अन्य तमाम नौजवान एक्टिविस्टों को निशाना बनाये जाने की घोर भर्त्सना करते हैं.

‘जीवन के अधिकार का मतलब सिर्फ खाने, जिंदा रहने और सांस लेने की इजाजत नहीं होता है; इसका तात्पर्य होता है किसी भय के बिना सम्मान, और विरोध समेत अभिव्यक्ति की आजादी के साथ जीने का अधिकार. पूछताछ की प्रकृति मूलतः लोकतांत्रिक आवाज का गला घोंटने और भय पैदा करने की रही है, और इस धरपकड़ का असली मकसद भी यही था.’

‘कन्हैया कुमार के मामले में कोर्ट परिसर में शारीरिक आक्रमण और 2018 में सबके सामने बंदूकधारियों द्वारा उमर पर कातिलाना हमला के दृष्टांत को देखते हुए यह जरूरी है कि जबतक वे राज्य और पुलिस के हाथ में हैं, तबतक उनके जीवन पर किसी भी खतरे को दूर करने के उपाय लिए जाएं.’

‘कोर्ट ने यह भी देखा है कि भरपूर मीडिया ट्रायल चलाने और न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए मीडिया द्वारा झूठी खबरें फैलाने और चुनिंदा आधार पर सूचनाएं जाहिर करने की भी कोशिशें हो रही हैं. इस पर फौरन रोक लगाई जानी चाहिए. अगर न्याय को अपने रास्ते चलने दिया जाता है तो हमें विश्वास है कि न्याय की जीत होगी.’