वर्ष - 29
अंक - 52
26-12-2020

 

– एडवोकेट बलकरण सिंह बल्ली

मौजूदा किसान आंदोलन के जाने-माने नेता रुल्दू सिंह मानसा नौजवानी में ही किसान संघर्ष में कूद पड़े थे.

मानसा से आने वाले प्रख्यात किसान नेता रुल्दू सिंह मानसा पिछले चार दशकों से पंजाब के सभी प्रमुख किसान आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं. अभी वे मोदी सरकार द्वारा पारित किये गये किसान विरोधी कृषि कानूनों को रद्द करने के लिये चल रहे देशव्यापी किसान आंदोलन में केन्द्रीय भूमिका निभा रहे हैं.

68 वर्षीय रुल्दू सिंह ने 27 वर्ष की उम्र में ही किसान संघर्ष का परचम हाथों में उठा लिया था. 6 मार्च 1979 को, जब पंजाब में दूध की चर्बी का रेट बढ़ाने के लिये आंदोलन शुरू हुआ, तब पहली बार वे इस आंदोलन में शामिल हुए. उस समय तक डेयरी बोर्ड का गठन किये 14 साल बीत चुके थे, मगर दूध में चर्बी का रेट केवल 36 पैसे प्रति पाइंट था. इस रेट को बढ़ाने के लिये पंजाब में एक बड़ा किसान आंदोलन फूट पड़ा, जिसमें किसानों ने यह तय किया कि वे शहरों को दूध की आपूर्ति को रोक देंगे. जिन लोगों ने इस निर्णय का उल्लंघन किया, कई स्थानों पर तैनात किसान कार्यकर्ताओं ने उनका दूध छीन लिया और कुछेक जगहों पर तो गुस्साए किसानों ने उनके दूध का कनिस्तर ही फोड़ डाला. इसके जवाब में पुलिस ने कई किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया, जिनमें रुल्दू सिंह मानसा को 36 दिनों तक भटिंडा जेल में कैद रखा गया. मगर आंदोलन के दबाव में सरकार को दूध में चर्बी की दर को 36 पैसे से बढ़ाकर 54 पैसे प्रति पाइंट करना पड़ा.

इसके बाद ही किसानों से चौकीदारा टैक्स की वसूली के खिलाफ प्रतिवाद में आंदोलन शुरू हुआ जिसमें रुल्दू सिंह को दो महीने जेल की कैद काटनी पड़ी. जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के मौके पर पूरे पंजाब में लगे कर्फू के खिलाफ किसानों ने तहसील स्तर पर धरना दिया. उसी मौके पर किसान यूनियन ने भटिंडा जिले की फूल तहसील के सामने आयोजित धरने का नेतृत्व रुल्दू सिंह को सौंप दिया. इस दौरान गिरफ्तारियां हुईं और रुल्दू सिंह को अपने ग्रुप के साथ तीन महीने भटिंडा जेल में रहनर पड़ा.

संगठन के प्रति युवा रुल्दू सिंह के समर्पण भाव को देखते हुए किसान यूनियन द्वारा उनको भटिंडा जिले के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष का पदभार सौंपा गया. रुल्दू सिंह ने कई किसान आंदोलनों का नेतृत्व करते हुए उनको संघर्ष में जीत दिलाई. उन्होंने लखोवाल के नेतृत्व वाली भारतीय किसान यूनियन में 15 वर्षों तक काम किया, और इस अवधि में उन्होंने ग्राम कमेटी के सदस्य से शुरू करके यूनियन के जिला अध्यक्ष एवं राज्य स्तर के प्रचार सचिव की भूमिका निभाई. जब लखोवाल से उनका विचारधारात्मक मतभेद तीखा हो गया तो भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के निर्माण में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई. भाकियू (सद्धूपुर) में उन्हें वरिष्ठ राज्य उपाध्यक्ष की जिम्मेवादी सौंपी गई.

रुल्दू सिंह ने संगठन में बारम्बार किसानों पर चढ़े कर्ज का मुद्दा उठाया, मगर नेतृत्व के बाकी हिस्से द्वारा उन्हें किनारे कर दिया गया. अंततः उन्होंने खुद अपने हाथों पहलकदमी ली और कई महीने तक जोशीली तैयारियां और प्रचार करने के बाद 8 सितम्बर 2000 को यूनियन की मानसा जिला कमेटी के बैनर तले मानसा की दाना मंडी में एक विशाल ‘किसान कर्जा मुक्ति रैली’ संगठित की गई. इस रैली में अन्य राज्यों के किसान नेताओं ने भी भाग लिया. इस दौर में रुल्दू सिंह ने कई सवालों पर भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के नेतृत्व के गलत कामों की आलोचना भी की. इन्हीं दिनों, सन 2004 में, तापा मंडी में प्रतिवाद कर रहे किसानों पर कई लठ्ठमार आढ़तियों द्वारा किये गये हमले के खिलाफ मालवा क्षेत्र में हुए तापा संघर्ष का भी रुल्दू सिंह ने नेतृत्व किया. उस समय भी पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही सरकार चल रही थी. मुख्यमंत्री अमरिंदर ने 10 जून को तापा मंडी में यूनियन द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय रैली पर प्रतिबंध लगा दिया. प्रतिबंध के बावजूद रैलियां किये जाने के चलते सैकड़ों किसान कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.उस समय भी रुल्दू सिंह लम्बे अरसे तक जेल में रहे. लेकिन नेतृत्व के अधिकांश नेताओं ने रुल्दू सिंह की तारीफ करने के बजाय उन पर आरोप लगाया कि वे राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं और नेतृत्व की आलोचना कर रहे हैं, और उनको संगठन से बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया.

तब अंततः रुल्दू सिंह ने अपने जैसे विचार वाले किसान नेताओं को लेकर 2006 में “पंजाब किसान यूनियन” की स्थापना की. इन किसान नेताओं के दिल में किसानों की तकलीफों के प्रति अथाह चिंता है और वे कर्ज के चलते आत्महत्या करने वाले किसानों के मामले में बेहद गंभीर व फिक्रमंद हैं. रुल्दू सिंह ने किसानों की आत्महत्या को रोकने और किसानों द्वारा सरकारी एवं गैर-सरकारी स्रोतों से लिये गये कर्ज को माफ कराने की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने 2017 के पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले मानसा में कर्जा मुक्ति मोर्चा की शुरूआत की, जो लगभग 11 महीनों तक चला. इस आंदोलन के कारण पंजाब राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियों को किसानों को कर्ज से राहत दिलाने का मुद्दा अपने चुनावी घोषणापत्रों में शामिल करना पड़ा तथा अपने चुनाव प्रचार अभियान का एक हिस्सा बनाना पड़ा. चुनाव से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को शपथ लेनी पड़ी कि वे किसानों का सारा कर्जा माफ कर देंगे. हालांकि कैप्टन अमरिंदर ने अपना वादा पूरा नहीं किया कि वे किसानों के सारे कर्जे माफ कर देंगे, मगर रुल्दू सिंह मानसा के नेतृत्व में पंजाब किसान यूनियन द्वारा छेड़े गये आंदोलन के चलते किसानों द्वारा लिये गये दो लाख रुपये तक की राशि के कर्ज को माफ कर दिया गया.

रुल्दू सिंह मानसा को मई 2010 में पटना में आयोजित अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. उसके बाद भी वर्ष 2013 और 2017 में आयोजित अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय सम्मेलनों में उनको ही सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष के बतौर पुनर्निवाचित किया गया. किसान आंदोलन का नेतृत्व करते हुए वे 24 बार जेल गये हैं और उन्होंने कुल मिलाकर लगभग दो साल की अवधि जेल में काटी है, जबकि उन्हें पुलिस ने दो दर्जन मुकदमों में फंसाया है. इनमें से एक मुकदमे में उनको 13 अन्य किसान नेताओं एवं कार्यकर्ताओं समेत तीन वर्ष की सजा भी सुनाई गई है, और इस सजा के खिलाफ अपील पर मुकदमा अभी भी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में लम्बित पड़ा है.

जून 2020 में जब से मोदी सरकार ने देश भर के लिये तीन कृषि-विरोधी और किसान-विरोधी कानूनों को पारित किया है, तभी से रुल्दू सिंह इन तीन कानूनों के खिलाफ संघर्ष की अगली कतार में हैं. उन्होंने लोगों को आगाह करने के लिये कि इन तीन कानूनों का कृषि और किसानों पर क्या बुरा असर पड़ेगा, अनर्थक प्रयास किया है. उन्होंने इस आंदोलन को आज शिखर तक पहुंचा देने में नेतृत्वकारी भूमिका अदा की है. किसान आंदोलन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिये रुल्दू सिंह हमेशा किसान संगठनों की एकता के पक्षधर रहे हैं और उन्होंने इस आंदोलन में जीत हासिल करने के लिये किसान संगठनों को एक मंच पर ले आने के प्रयास में सफलता भी हासिल की है. किसान संगठनों की संयुक्त बैठकों में अपने विचारों को जाहिर करने के साथ ही किसान नेता रुल्दू सिंह सरकार के साथ होने वाली समझौता वार्ता की मेज पर भी अपना वक्तव्य रखते हैं. जब अमित शाह ने मीटिंग की तारीख बार बार बदलना जारी रखा तो उससे बिगड़कर रुल्दू सिंह ने अंतिम दिन अमित शाह से किसान नेताओं की बातचीत का बहिष्कार कर दिया और तब सरकार को उन्हें बैठक में भाग लेने के लिये राजी कराने में विशेष प्रयास करना पड़ा.

किसान नेता रुल्दू सिंह कहते हैं कि पहले के जमाने में उनके पूर्वजों ने अहमद शाह अब्दाली से लोहा लिया था और आज वे मोदी-शाह और विश्व व्यापार संगठन से लड़ रहे हैं. इसलिये, यह लड़ाई हमारे अस्तित्व की लड़ाई है, हमारी भावी पीढ़ियों के भविष्य के लिये लड़ाई है. वे अपनी तलवारों के साथ घर से निकले हैं और इस लड़ाई को जीतने के बाद ही पंजाब वापस जायेंगे. रुल्दू सिंह 26 नवम्बर को अपने घर से दिल्ली के लिये निकले थे और आज तक वे दिल्ली में केन्द्र सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखे हुए हैं. मार्च 2018 में पैर फिसलने के कारण उनकी कमर की हड्डी टूट गई थी जिसके चलते उनके लिये चलना-फिरना मुश्किल हो गया. तब से उन्होंने सहारे के लिये अपना सुप्रसिद्ध खंडा साथ रखना शुरू किया है. मगर चलने-फिरने में दिक्कत के बावजूद वे कभी सरकार के साथ होने वाली बैठकों में भाग लेते हैं, तो कभी किसान संगठनों की संयुक्त बैठक में हिस्सेदारी करते हैं. ऐसी उम्मीद है कि उनकी ये कोशिशें जल्द ही रंग लायेंगी और किसान मोदी सरकार के तीन कृषि-विरोधी कानूनों को खारिज करवाने के बाद विजयी होकर घर वापस लौटेंगे.

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