वर्ष - 30
अंक - 4
23-01-2021


भारत के कुख्यात गोदी मीडिया – मीडिया की वह शाखा, जो न केवल लोकतंत्र के हितों के खिलाफ सत्ता की तरफ से काम करती है, बल्कि जो नफरत व झूठ फैलाने के लिए चौबीसों घंटे फासिस्ट ताकतों के साथ सांठगांठ कर प्रचार युद्ध में हिंसक हमलावरों की भूमिका अदा करती है, तथ्यों में तोड़-मरोड़ करती है और विरोधियों पर शैतानी चेहरा चढ़ाती है – के एक क्रूर सदस्य अर्नब गोस्वामी को आखिरकार अपनी खुद की दवा की यथोचित खुराक मिल गई है. एक लंबे समय से वह ई-मेल और व्हाट्सऐच चैट के जरिये चंद रहस्योद्घाटनों का इस्तेमाल कर मोदी-शाह सत्ता प्रतिष्ठान और संघ ब्रिगेड की तरफ से मीडिया ट्रायल चला रहा है. अगर ये चैट उसकी जड़ों को खोदने वाले साबित न होते और ‘पवित्र’ पत्रकार के जामा में सत्ता के निर्लज्ज दलाल के बतौर उसकी पहचान को मुकम्मल तौर पर उजागर न कर देते, तो शायद उसकी इन सौदेबाजियों पर रोक न लगती.

हाल के समयों में निश्चय ही कानून ने अर्नब के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है. नवंबर 2020 में महाराष्ट्र पुलिस ने आत्महत्या के लिए मजबूर करने के एक मामले में उसे मुख्य आरोपी बनाकर गिरफ्रतार किया. घरेलू साज-सज्जा करने वाले अन्वय नायक और उसकी मां – जिन्होंने मई 2018 में आत्महत्या कर ली – ने अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी चैनल पर आरोप लगाया था कि उसने नायक को देय 5.40 करोड़ रुपये अदा न करके उन्हें आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया. मनगढंत आरोपों और काले कानूनों के शिकार बने पत्रकारों, लेखकों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा जमानत के लिए दायर याचिकाओं को जिस सर्वोच्च न्यायालय ने हाल-हाल तक खारिज कर दिया, वही न्यायालय अर्नब गोस्वामी को जमानत देने के लिए दौड़ पड़ा.

जहां रिपब्लिक टीवी भारत में लगातार नफरत व झूठ फैलाने के आरोपों से बच निकला, वहीं उसके हिंदी चैनल ‘रिपब्लिक भारत’ पर पिछले साल के दिसंबर माह में ब्रिटिश टेलिविजन नियामक प्रधिकरण ऑफकाॅम ने “पाकिस्तानी अवाम के खिलाफ नफरती बयानों और पाकिस्तानी लोगों के प्रति अपमानजनक व अभद्र आचरण करने” के लिए आर्थिक जुर्माना ठोक दिया. लेकिन यहां अब हमें पता है कि अर्नब का रिपब्लिक टीवी भारत की टीवी रेटिंग संस्था ‘ब्राॅडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (बार्क) के साथ प्रणालीबद्ध सांठगांठ करके मुनाफा बटोरता रहा है. बार्क के पूर्व सीईओ पार्थ दासगुप्ता टीआरपी (टेलिविजन रेटिंग प्वायंट्स) घोटाले में जेल की हवा खा रहे हैं; और 2017 व 2020 के बीच की अवधि में अर्नब गोस्वामी और पार्थ दासगुप्ता के बीच हुई 500 पृष्ठों की व्हाट्सऐप वार्ताओं के संदर्भ में मुंबई पुलिस द्वारा दायर अनुपूरक आरोप पत्र के साथ ही हमें रिपब्लिक टीवी के कार्य-प्रचालन के बारे में विस्तृत विस्फोटक जानकारियां मिल चुकी हैं.

अर्नब की इन वार्ताओं से हमें न केवल रिपब्लिक टीवी और बार्क के बीच की सांठगांठ, तथा रिपब्लिक टीवी को व्यावसायिक लाभ के लिए टीआरपी आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ के बारे में पता चलता है, बल्कि उससे हमें मोदी-शाह सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा चलाए जा रहे उस प्रचार युद्ध का भी संपूर्ण खाका मिल जाता है जिसमें अर्नब गोस्वामी मुख्य प्रबंधक की भूमिका अदा कर रहा होता है. सिर्फ आर्थिक नजरिये से देखने पर यह टीआरपी घोटाला भारत के कुख्यात सट्टा बाजार घोटालों या ‘भेदिया सूचनाओं’ के प्रणलीबद्ध इस्तेमाल के जरिये बैंक धोखाधड़ियों के समतुल्य ही एक सामान्य मीडिया घोटाला प्रतीत हो सकता है. लेकिन, जब हम यह महसूस करते हैं कि ये ‘भेदिया सूचनाएं’ उच्च्तम स्तर की कार्यपालिका की सैन्य व राजनैतिक योजनाओं से संबंधित हैं, जब हम अर्नब गोस्वामी को पुलवामा त्रासदी के बारे में यह चर्चा करते सुनते हैं कि ‘इस युद्ध को हमने उत्साह से जीत लिया’, या जब हम यह महसूस करते हैं कि बालाकोट एयर स्ट्राइक अथवा धारा 370 को निरस्त करने जैसे सरकारी गोपनीयताओं की पूर्वसूचना अर्नब गोस्वामी के पास मौजूद थी, तब यह घोटाला बिल्कुल भिन्न आयाम ग्रहण कर लेता है. यह देखकर भी काफी परेशानी होती है कि राष्ट्रीय जांच संस्था (एनआइए) राष्ट्रीय सुरक्षा का स्पष्ट उल्लंघन करने वाली अर्नब वार्ताओं के साक्ष्यों की अनदेखी कर रही है और इसके बजाय वह किसान आन्दोलन के नेताओं को अपना निशाना बनाने में लगी हुई है.

पूरी दुनिया ने अमेरिका में ट्रंप के तख्तपलट प्रयासों को असफल देखकर चैन की सांस ली है. अमेरिकी मीडिया के बड़े हिस्से ने ट्रंप के निरंकुश शासन की दूसरी पारी की भयानक पीड़ा से अमेरिका को बचाने में मुख्य भूमिका अदा की है. लेकिन इसके विपरीत, अर्नब वार्ताएं हमें बताती हैं कि यहां भारत में गोयबल्सीय गोदी मीडिया और हिटलरी मोदी शासन की सांठगांठ के द्वारा आम जनता की सोच को तोड़मरोड़ कर अपने पक्ष में करने के लिए किस बेशर्मी के साथ पुलवामा और बालाकोट जैसी घटनाओं का इस्तेमाल किया जाता है. जिस समय मोदी निर्लज्जतापूर्वक पुलवामा शहीदों के नाम पर जनता से वोट मांग रहे थे, उसी समय अर्नब उनकी शहादतों का इस्तेमाल करके बेहयाई के साथ अपने चैनल के दर्शकों की तादाद बढ़ाने और अपने चैनल को संघी प्रचार मशीनरी के बतौर सुदृढ़ करने में लगा हुआ था. मीडिया, खासकर टेलिविजन मीडिया, के प्रभुत्वशाली हिस्से और शासक राजनीतिक प्रतिष्ठान के बीच इस नापाक गठबंधन को चुनौती देकर ही भारत में लोकतंत्र की लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सकता है.

अर्नब वार्ताएं यूपीए (कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन) जमाने के बदनाम राडिया टेप से कहीं ज्यादा विस्फोटक और विध्वंसकारी हैं. राडिया टेप तो उन पत्रकारों और काॅरपोरेट लाॅबियों से संबंधित थे जो मंत्री-स्तरीय नियुक्तियों और नीतियों को प्रभावित करने की कोशिशें करते थे. लेकिन अर्नब के व्हाट्सऐप चैट मीडिया को प्रचार युद्ध के औजार में बदल देने की कहानी है. सुकून देने वाली बात यह है कि मोदी सरकार के विनाशकारी कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन ने अडानी-अंबानी कंपनी राज और तानाशाही मोदी निजाम के साथ-साथ गोदी मीडिया को भी अपने दुश्मन के रूप में पहचान लिया है. टीआरपी घोटाले के मामले में कानूनी कार्रवाई जो भी रास्ता अख्तियार करे; लेकिन काॅरपोरेट शक्ति, तानाशाही सरकार और आक्रामक ढंग से पक्षपातपूर्ण मीडिया संस्थान के सम्मिलित हमलों के खिलाफ सत्य, न्याय व लोकतंत्र के लिए इस लड़ाई को आगे ले जाने के लिए एक प्रमुख हथियार के बतौर अर्नब वार्ताओं का इस्तेमाल करना होगा.