वर्ष - 30
अंक - 3
16-01-2021


विगत 24  दिसंबर 2020 को भाकपा(माले) विधायकों – का. सुदामा प्रसाद (तरारी, भोजपुर) व का. रामबली सिंह यादव (घोषी, जहानाबाद) के साथ हम लोगों की टीम हरियाणा के टिकरी बाॅर्डर पहुंची.

वहां पहुंचते ही मैं पंजाब के साथियों के सेवा भाव को देख कर दंग रह गया. इस किसान आंदोलन में इंसानियत के लिए सेवा का हर रूप देखा जा सकता है. सिख समुदाय में लंगर के रूप में सामुदायिक रसोई की पुरानी परंपरा है जहां सुबह-सुबह चाय और शुद्ध घी के हलवे खाने को मिल जाते हैं. दोपहर और रात का खाना खाने के बाद दूध व लस्सी भी भरपूर मात्रा में मिलती रहती है. लंगर आंदोलन की रीढ़ है जहां हजारों लोग अपनी भोजन की जरूरत पूरी करते हैं.

अगर आप चलते चलते थक गए हैं तो आधुनिक मशीनों से लैस मसाज पार्लर भी मिल जाएंगे. वहां आप अपने पैर की मालिश करा सकते हैं. अगर आप पढ़ने के शौकीन हैं तो भगत सिंह लाइब्रेरी में सुकून से पढ़ाई भी कर सकते हैं. लाइब्रेरी से थोड़ी दूरी पर ही धरना स्थल है जहां आंदोलन में आए किसान शांति से भाषण सुन सकते हैं. हर थोड़ी दूरी पर लोग अलग-अलग सेवाएं दे रहे हैं. कोई कंबल बांट रहा है तो कोई लोवर बांट रहा है. कहीं पर जुराबें बांटी जा रही हैं. कोई साबुन, तेल, शैंपू व वैसलीन के काउंटर लगाये हुए है और मुफ्त में लोगों को यह सब बांट रहा है. बहुत अचरज हुआ जब मैंने कुछ लोगों को वाशिंग मशीन से कपड़े धोते देखा. आंदोलनों में प्रायः ऐसा नहीं होता है. लेकिन यह इस आंदोलन की खासियत है. अलग-अलग तरह की सेवाएं देकर आंदोलनकारियों के हौसले को बनाए रखना और उनकी जरूरतों को महसूस करना. किसी-किसी आंदोलन में ही ऐसा देखने को मिलता है.

मीडिया में बार-बार यह झूठ फैलाया जा रहा था कि इस आंदोलन में सिर्फ पंजाब के किसान शामिल हैं. लेकिन, हाल के ही दिनों में हरियाणा के कई जिलों में भाजपा के लोग जब कृषि बिल के समर्थन में जब कोई कार्यक्रम कर रहे थे तो किसानों के द्वारा उनका पुरजोर विरोध किया गया. कई जगहों पर तो किसानों ने उनकी पिटाई तक कर डाली. किसानों ने दुष्यंत चौटाला के हेलीपैड तक को खोद डाला.

लंगरो में हर शाम गुरु वाणी का आयोजन होता है जहां गुरुओं की शहादत से मौजूदा सरकार की दमनकारी नीतियों से देश के किसानों को बचाने की प्रेरणा ली जाती है. देश की आजादी के आंदोलन में भगत सिंह का योगदान व उनकी शहादत भी किसानों को संघर्ष का एक नया जज्बा दे रही थी. तानाशाह सरकार से संघर्ष और क्रांति का मार्ग बेशक हमें भगत सिंह से ही सीखना चाहिए.

इस आंदोलन में हमें बड़े-बड़े ट्रैक्टरों की टोलियां देखने को मिली थे. वे काफी खूबसूरत थे और कुछ में तो आधुनिक डीजे साउंड सिस्टम लगा हुआ था और पंजाबी जुबान के क्रांतिकारी गाने बज रहे थे और नौजवान  झूम रहे थे. रात में ये ही ट्रैक्टर आंदोलनकारियों के आरामगाह बनते थे.

एक सुबह हमने सैकड़ों की तादाद में नौजवानों को कमर से ऊपर खुले जिस्म के साथ नारे लगाते व जुलूस निकालते देखा. उस वक्त टेंपरेचर 3 डिग्री सेल्सियस था और सर्द हवा चल रही थी. लेकिन, उनका जोश देखने ही लायक था. हर जुलूस में ‘किसान एकता जिंदाबाद’ और ‘मोदी मुर्दाबाद’ का नारा प्रमुखता से लगता था.

टिकरी बाॅर्डर पर बिहार के साथियों ने भी अपना एक जुलूस निकाला. हमारी तादाद कुछ खास नहीं थी लेकिन का. राजू यादव ने ‘हरियाणा-पंजाब के किसानों संघर्ष करो, बिहार आपके साथ है’ का जो नारा दिया और वह पंजाब व हरियाणा के किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ. वहां मौजूद किसानों के बीच हमारी उपस्थिति चर्चा का एक विषय बन गई. हमारे जुलूस में जगह-जगह पर बड़ी संख्या में वहां मौजूद किसान शामिल होते चले गए. हमने लगभग 2 किलोमीटर की दूरी तय की. हम करीब 4 दिनों तक वहां रुके थे. पहले दिन का. निर्माेही जी ने अपने जनगीतों को गाकर सुनाया. दूसरे दिन तरारी के विधायक का. सुदामा प्रसाद व आरा लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी रहे का. राजू यादव और अंतिम दिन घोसी के विधायक रामबली सिंह यादव ने हजारों किसानों के बीच अपनी बात रखी.

किसान महासभा इस आंदोलन में और खास कर बिहार में बिहार  में लीडिंग रोल में है. किसानों की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन दयनीय होती जा रही है. यहां जब से बाजार समिति खत्म हुई है, किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है. सरकार पैक्स में किसानों को उचित दाम देने का दावा करती है लेकिन पैक्स मनमाने ढंग से कम कीमत दे रही है. दूसरी ओर बिचौलिया अपने मुनाफे पर केंद्रित है. किसान पैक्स और बिचौलियों के बीच शोषण का शिकार होता रहता है. अगर आज बिहार में किसानों को इमानदार नेतृत्व नहीं मिलेगा तो किसान खेती से नाउम्मीद हो जायेंगे.लेकिन यह आंदोलन अगर तीन कृषि कानूनों को वापस कराने और एमएसपी की गारंटी का कानून बनवाने में कामयाब हो जाता है तो देश के साथ-साथ बिहार के किसानों का भी भला हो जाएगा.

अभी कुछ समय पहले तमिलनाडु के किसानों ने जंतर-मंतर पर एक लंबे समय तक धरना दिया था. भाजपा मीडिया सेल और गोदी मीडिया ने इस किसान आंदोलन को बहुत छोटा  बना दिया था. कोई सरकारी नुमाइंदा किसानों की मांगों को सही तरीके से नहीं सुना. नतीजतन तमिलनाडु के किसानों को निराशा झेलनी पड़ी.

भाजपा ने शुरू में इस आंदोलन को भी छोटा आंका था और इसे भी तरह-तरह से बदनाम करने की साजिश रची थी – यह आंदोलन सिर्फ पंजाब के किसानों का है, पंजाब में कांग्रेस की सरकार है जो किसानों को भड़का रही है, पंजाब की वहीं किसान आंदोलन कर रहे हैं जो खालिस्तान समर्थक हैं, आदि, आदि. अब पंजाब व हरियाणा में यह जनाांदोलन का रूप ले चुका है. हमने टिकरी बाॅर्डर पर जो अपार जनसमर्थन देखा वह अब तक कभी नहीं देखा.

पंजाब और हरियाणा के लोग भाषा के आधार पर अलग-अलग हैं. दोनों राज्यों में लंबे समय तक पानी का विवाद भी चला आ रहा है. दोनों राज्यों की धार्मिक मान्यताएं भी अलग-अलग हैं. इसके बावजूद पंजाब और हरियाणा की दोस्ती अपने आप में ‘मील का पत्थर’ साबित हो गई है  खेती की समस्या ने दोनों राज्यों के किसानों के बीच आपसी भाईचारा व एकजुटता की जबरदस्त मिसाल कायम की है. यह आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ, लगभग 2 माह तक वहीं पर जोर-शोर से चला. जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली का रुख किया और सरकार ने हरियाणा के बाॅर्डर पर उन्हें दिल्ली जाने से रोक दिया तो हरियाणा के किसान भी आंदोलन में कूद पड़े. जो सहयोग हरियाणा के किसानों ने दिखाया वह अपने आप में एक मिसाल है. मैंने देखा कि हरियाणा के किसान अपनी ट्रैक्टर ट्राॅली में अनाज भर-भरकर लंगर में बांट रहे थे. बड़े-बड़े टैंकरों से दूध-दही लंगरों में पहुंचाया जा रहा था. यह जज्बा दुर्लभ है. यह आंदोलन पंजाब और हरियाणा के किसानों का है और इसने पूरे देश के किसानों को एक साथ कर दिया है.

किसानों  ने एक होकर सरकार की क्रूरता को करारा जवाब दिया है. पुलिस के द्वारा आंसू गैस और पानी के बौछारों का सामना किया है और किसानों के बीच फूट डालने के सरकारी मंसूबे को ध्वस्त कर दिया है.

आंदोलन जब जनता की जरूरत बन जाए तो बड़े से बड़े तानाशाह को भी उसके सामने झुकना पड़ता है. आने वाले दिनों में यही ‘किसान एकता’ देश को एक नया नेतृत्व प्रदान करेगी और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ेगी क्योंकि जनविरोधी नीतियां पर चलकर अपनी सत्ता को हमेशा कायम नहीं रखा जा सकता है. एक बड़ा मशहूर मुहावरा है ‘जिसने लाहौर नहीं देखा वो जन्मा ही नहीं. हमें यह कहने में कोई एतराज नहीं कि जिसने यह आंदोलन नहीं देखा, उसने भी कुछ नहीं देखा.

– आरिफ रजा मासूमी 

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फिर से बोर्डर पर भाकपा(माले) विधायक

भाकपा(माले) के युवा विधायक का. संदीप सौरभ और अजित कुशवाहा युवाओं व किसानों के एक जत्थे के साथ 15 जनवरी को दिल्ली बोर्डर के लिए रवाना होेगे जबकि भाकपा(माले) विधायक का. अरूण सिंह, सुदामा प्रसाद, सत्यदेव राम, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, रामबलि सिंह यादव, महानंद प्रसाद और मनोज मंजिल तीन कृषि कानूनों की वापसी की मांग पर का. महेन्द्र सिंह की शहादत दिवस (16 जनवरी) पर झारखंड में आयोजित हो मानव श्रृंखला में शरीक होंगे.

भाकपा(माले) विधायक दल नेता का. महबूब आलम, अखिल भारतीय खेत ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव का. धीरेन्द्र झा, ऐपवा राज्य सचिव का. शशि यादव और भाकपा(माले) के मिडीया प्रभारी का. परवेज ने विगत 12-14 जनवरी को दिल्ली बोर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने गाजीपुर, टिकरी और सिंघु बोर्डर पर डटे किसानों के बीच कई सभाओं को संबोधित किया.

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