वर्ष - 30
अंक - 4
23-01-2021


दिल्ली के सभी बोर्डरों पर जारी किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ व अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने कृषि में और आन्दोलन में महिलाओं के विशेष स्थान को देखते हुए अपने आंदोलन के 54वें दिन 18 जनवरी को ‘महिला किसान दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी. उस दिन देश भर से औरतों का दिल्ली बाॅर्डर्स पर पहुंचना शुरू हो गया. महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, हरियाणा और पंजाब से भारी संख्या में महिलाएं दिल्ली बाॅर्डर्स पर धरना स्थलों पर पहुंची. दिल्ली बोर्डर्स से लेकर गावों-कस्बों तक औरतों ने विरोध कार्यक्रमों का नेतृत्व किया और सफल बनाया.

आंचल परचम बना: महिलाओं ने संभाला मोर्चा

टिकरी बाॅर्डर पर आईएमएफ एवं विश्व व्यापार संगठन द्वारा भारत के नीतिगत मामलों में दखलअंदाजी को विरोध करते हुए महिलाओं ने मोदी सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया गया और आईएमएफ-डब्ल्यूटीओ का पुतला जलाया गया. इस सभा में पंजाब, हरियाणा, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की महिलाओं ने भाग लिया. बिहार से गई ऐपवा नेत्रियों का. संगीता सिंह, माधुरी गुप्ता, इंदु सिंह व सोहिला गुप्ता महिलाओं के सामूहिक अनशन में भी शामिल रहीं.

इस अवसर पर हुई रैली में पंजाब किसान यूनियन की प्रमुख नेता जसबीर कौर नत, ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य प्रो. सुधा चौधरी (राजस्थान), आइसा की नेता गीता कुमारी (हरियाणा), ऐक्टू नेता लेखा अदुवि (कर्नाटक), पंजाबी थिएटर और फिल्मों की जानी मानी अभिनेत्री अनीता शबदीश आदि ने सभा को संबोधित किया. इन महिला नेताओं का कहना था कि जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने मोदी सरकार को किसानों की मांगों का अनुपालन करने की नेक सलाह दी, तब मोदी सरकार इसे देश के नीतिगत मामलों में एक अवैध दखल बताती है, लेकिन जब आईएमएफ के प्रवक्ता इन कृषि कानूनों का खुले तौर पर समर्थन करते हैं, तो उन्हें बहुत उपयोगी बताते हुए मोदी सरकार बहुत खुश होती है. लेकिन हम, भारत की किसान महिलाएं, आज यह पुतला जला कर आईएमएफ, डब्ल्यूटीओ और विश्व बैंक जैसे बहुराष्ट्रीय निगमों के कठपुतली संगठनों को चेतावनी देते हैं कि यदि वे भारत के आंतरिक और नीतिगत मामलों में दखल देना बंद नहीं करते हैं, तो अंबानी अडानी के कार्यालयों की तरह इन संगठनों के दफ्तरों भी घेराव किया जाएगा.

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प्रदर्शनकारी महिलाओं ने चेतावनी दी कि यदि मोदी सरकार ने अपनी जिद छोड़ कर जल्द ही इन काॅरपोरेट  समर्थक कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया तो 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर होने वाली ट्रैक्टर परेड सहित इस देश की लाखों महिलाएं देश के हर गांव-शहर, हर गली मोहल्ले में, हर घर में पहुंच कर भाजपा-आरएसएस को बेनकाब करने के लिए एक अभियान में उतरेंगी.

शाहजहांपुर बाॅर्डर (दिल्ली जयपुर राजमार्ग-48) पर क्रमिक अनशन में भी महिलाओं ने ही भाग लिया. 24 घंटे के अनशन पर बैठी महिला आंदोलनकारियों में राजबाला यादव, परमेश्वरी, गीता छींपा, अश्विनी संतोष चौहान, लता बाई नामदेव, सकूबाई धनराज, शोभाबाई शुक्र लाल, मंगल शिवाजी वाग, वानू बाई जीरा, कम्मू बाई मनोहर, दुर्गा देवी और मंनू देवी शामिल रहीं.

यहां भी सभा का संचालन महिलाओं ने किया और भाषण भी केवल महिलाओं के हुए. अध्यक्ष मंडल में प्रतिभा शिंदे, चन्द्रकला, निशा, राजबाला ब वर्षा देशपांडे शामिल थीं. वक्ताओं में रुक्मिणी, वर्षा चोपड़ा, सुमित्रा चोपड़ा, कविता श्रीवास्तव, सुनीता चतुर्वेदी, प्रतिभा शिंदे, राइजा बाई व मंजू यादव शामिल थे. वक्ताओं ने आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी और बढ़ाने का संकल्प लिया. आस-पास की महिलाओं ने ट्रैक्टर मार्च निकाल कर आंदोलन में भाग लिया. महिला किसान दिवस के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और नुक्कड़ नाटक का भी आयोजन किया गया.

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सिंघु बाॅर्डर पर प्रगतिशील महिला संगठनों के वक्ताओं ने तीन कानूनों के अलावा सामान्य तौर पर महिला किसानों के मुद्दों को सभा के सामने रखा. गाजीपुर बाॅर्डर पर महिलाएं भुख हड़ताल पर बैठीं.

नर्मदा घाटी के आदिवासी क्षेत्रों की महिला किसानों ने भी महिला किसान दिवस मनाकर दिल्ली के बाॅर्डर्स पर संघर्षरत किसानों को अपना समर्थन दिया. इलाहाबाद में महिला किसान रैली आयोजित की गई. ओडिशा में कई जगहों पर भी आज कार्यक्रम आयोजित किये गए. हरियाणा में अनेक जगहों पर आज किसान संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए. पंजाब में महिला दिवस के साथ साथ भाजपा नेता सुरजीत ज्याणी और हरजीत ग्रेवाल, जो लगातार किसान आंदोलन को बदनाम कर रहे है, के गावों में हजारों की सख्यां में महिलाओं ने बड़ी सभाएं कर विरोध प्रकट किया.

कोलकाता में जारी अनिश्चितकालीन धरना में भी महिला किसान दिवस मनाया गया. असम में गांव स्तर पर भी कार्यक्रम आयोजित किये गए. ओडिशा के किसानों की ‘दिल्ली चलो यात्रा’ को इस दिन झारखंड में भारी जन समर्थन मिला. राजस्थान के कोटपूतली से महिला किसानों का एक जत्था शाहजहांपुर पहुंचा. हैदराबाद में भी आज एक मार्च निकालकर इस दिन महिलाओं के संघर्ष को याद किया गया. आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा, अनंतपुर समेत कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए.

महिलाओं ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन देकर मांग की कि मनरेगा में काम व मजदूरी दर बढ़ाया जाए व भ्रष्टाचार समाप्त किया जाए, उन्हें सस्ते कर्ज दिये जाएं, सभी फसलों का सी2 + 50 फीसदी दाम सुनिश्चित किया जाए, कर्ज माफ किये जाएं, सस्ती दरों पर कर्ज दिये जाएं, परिवहन की सुविधाएं दी जाएं, खाद्यान्न प्रसंस्करण करने के लिए उपकरण दिये जाएं ताकि वे खुद फसलों का प्रसंस्करण करें और उसे बेच सकें, पेंशन दी जाए और उनके सामाजिक अधिकारों तथा सुरक्षा की व्यवस्था की जाए. महिलाओं ने देश के विकास में सरकार से अपना हिस्सा देने की गुहार लगाई और कहा कि देश को कारपोरेट व विदेशी कंपनियों को न सौंपा जाए, इससे राशन व खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी और इसका सबसे घातक असर महिलाअें पर ही पड़ेगा. उन्होंने बिजली बिल 2020 को भी वापस लेने की मांग की और इन कानूनों की वापसी तक संघर्ष करने का संकल्प भी लिया.

 

ऐपवा का दल भी दिल्ली बाॅर्डर पहुंचा

18 जनवरी महिला किसान दिवस के अवसर पर दिल्ली में आंदोलनकारी महिला किसानों के साथ एकजुटता प्रकट करने के लिए 16 जनवरी 2021 को पटना और उदयपुर ऐपवा नेताओं का जत्था दिल्ली रवाना हुआ.

पटना से ऐपवा महासचिव मीना तिवारी के नेतृत्व में दिल्ली रवाना हुई. इसमें संगीता सिंह, सोहिला गुप्ता, इंदू देवी, अफ्सां जबीं, रीता बरनवाल आदि शामिल थीं. भाकपा(माले) के युवा विधायक का. संदीप सौरभ व का. अजित कुशवाहा भी उनके साथ थे.

ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि ‘महिलाओं व बच्चों के प्रति सुप्रीम कोर्ट का वक्तव्य बहुत निंदनीय है. यह बेहद आश्चर्य का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट को यह पता ही नहीं है कि किसानों की बड़ी आबादी महिलाओं की है और वे ही कृषक व्यवस्था की असली आधार हैं. यह लड़ाई महज अब कृषि कानूनों की वापसी की लड़ाई तक नहीं रह गई है, बल्कि देश को बचाने की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है.’ महिला नेताओं ने 18 दिसंबर को टिकरी बोर्डर पर महिला किसान दिवस कार्यक्रमों में शिरकत की.

ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. सुधा चौधरी के नेतृत्व में उदयपुर से भी एक जत्था भी टिकरी बाॅर्डर पहुंचा. इस जत्थे में शामिल ऐपवा नेत्री नसीम ने कहा ‘देश का किसान जिस तरह से पिछले पौने दो महीने से सडकों पर पड़ा जिस तरह से ठिठुर रहा है और मोदी सरकार जिस तरह से उनकी मांगों की अनसुनी कर रही है, यह इस कृषि प्रधान देश के लिए बेहद शर्मनाक है. इस देश की महिलाएं इसका पुरजोर विरोध कर रही हैं. जत्थे की नेता तेजकी बाई ने कहा कि मोदी सरकार ने यदि बर्बाद करनेवाले इन कानूनों को खत्म नहीं किया तो देश की सभी महिलाएं और मजदूर सड़कों पर आने को मजबूर होंगे. जत्थे के प्रोफेसर सुधा चौधरी, रजिया बानू, रिन्कू परिहार, सकीला, रिहाना, एम. जैन, हीना कौसर, भंवरी आदि शामिल थीं.

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