वर्ष - 30
अंक - 6
06-02-2021


भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों के ट्रैक्टर परेड में दिल्ली की सड़कों पर लाखों किसानों की भागीदारी हुई जो कृषि-विरोधी तीनों कानूनों की वापसी की मांग कर रहे थे. दिल्ली निवासियों ने अपनी बाहें खोलकर उनका अभिनंदन किया. बहरहाल, मोदी हुकूमत ने लाल किले में इससे बिल्कुल अलग-थलग हुई एक घटना (ऐसी घटना जिसमें खुद सरकार द्वारा प्रायोजित होने के तमाम निशानियां मिलती हैं) का इस्तेमाल करते हुए किसान आन्दोलन पर चौतरफा दमन शुरू कर दिया.

शाहीनबाग की तर्ज पर ही, मौजूदा दमन के पांच स्वरूप उभर कर सामने आ रहे हैं: भारतीय ध्वज का अपमान करने का झूठा आरोप लगाकर किसानों को “राष्ट्र-विरोधी” बताना, पुलिस और हिंदू वर्चस्ववादी गिरोहों के द्वारा किसानों पर शारीरिक हमले करना, किसान यूनियन नेताओं पर आपराधिक आरोप मढ़ना, किसान आन्दोलन की रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाना और उनपर दमन ढाना, किसानों के प्रतिवाद स्थलों के इर्द-गिर्द घेरेबंदी और रेल मार्गों पर प्रतिबंध लगाना ताकि अन्य किसान और साथ ही दिल्लीवासी उन स्थलों पर न पहुंच सकें.

खुद 26 जनवरी के दिन ही, पुलिस ने किसानों पर अश्रु गैस व लाठियों से बर्बर हमला किया. एक किसान नवरीत सिंह की मौत हो गई, और उसके परिजन ने आरोप लगाया है कि उसे पुलिस की गोली लगी थी. जहां पुलिस विपक्षी राजनीतिक कर्मियों को प्रतिवाद स्थलों पर पानी और अन्य जरूरत की सामग्री ले जाने से भी रोक रही है, वहीं उसने हिंदू वर्चस्ववादी भीड़ को ‘लोकल (स्थानीय)’ के नाम पर उन स्थलों पर घुस जाने और किसानों पर हमला करने की छूट दे रखी है.

अब तक, नवरीत के परिजन द्वारा पुलिस फायरिंग के आरोप की जांच-पड़ताल व उसकी रिपोर्ट करने के लिए नौ पत्रकारों के खिलाफ “राष्ट्र-विरोधी” और अन्य किस्म के आरोप लगाए जा चुके हैं. किसानों के प्रतिवाद स्थलों पर भीड़ और पुलिस द्वारा हिंसा की रिपोर्ट करनेवाले पत्रकारों को भी पीटा गया, उन्हें घसीटा गया, गिरफ्तार किया गया और फिर उनपर आपराधिक आरोप मढ़ दिए गए. किसान संगठनों ने 26 जनवरी के दिल्ली परेड के बाद एक सौ से भी ज्यादा किसानों की गुमशुदगी की खबर की है.

बड़ी संख्या में किसान आन्दोलन के नेताओं, जिनमें सरकार के साथ वार्ता करने वाले किसान प्रतिनिधि भी शामिल हैं, के नाम राजद्रोह और यूएपीए जैसे काले कानूनों के तहत आपाधिक मामलों में दर्ज कर लिए गए हैं. कम-से-कम 120 किसानों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. प्रतिवाद स्थलों पर बिजली और इंटरनेट के कनेक्शन काट दिए गए हैं. सबसे क्षोभ की बात यह है कि ट्वीटर ने मोदी सरकार के एक “निवेदन” का पालन करते हुए बड़ी संख्या में वैसे अकाउंट को बंद कर दिया है जो आन्दोलन की खबरें ट्वीट किया करते थे.

दिल्ली की सीमाओं पर प्रतिवाद स्थलों के बाहर पुलिस ने घेरेबंद कैंप स्थापित कर लिए हैं, और वहां बैरिकेड खड़े किए हैं, गड्ढे खोद डाले हैं और लोहे की कीलें जमा दी हैं, ताकि उन स्थलों के अंदर या बाहर ट्रकों या ट्रैक्टरों की आवाजाही रोकी जा सके. पंजाब से आने वाली रेलगाड़ियों को भी दिल्ली स्टेशन पर रुकने से मनाही कर दी गई है.

बहरहाल, आन्दोलन का दमन करने की उन तमाम कवायदों से आन्दोलन और भी ज्यादा मजबूत तथा संकल्पबद्ध हो गया है.  गाजीपुर प्रतिवाद स्थल पर उत्तर प्रदेश सरकार के दमन और वहां के प्रमुख किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं को मीडिया और सोशल मीडिया ने प्रसन्नता के साथ इस प्रकार दिखया मानो कि किसान आन्दोलन की पराजय हो गई है. लेकिन इसके विपरीत, आन्दोलन ने पलटा वार किया है, और उसी रात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लाखों किसान गाजीपुर बाॅर्डर पर आ जुटे. समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की बड़ी-बड़ी पंचायतें लग रही हैं जिनमें तीनों कृषि-विरोधी कानूनों और प्रतिवादकारी किसानों पर लगाए गए तमाम मुकदमों की वापसी की मांग उठाई जा रही है. जहां एक ओर यह आन्दोलन तेज हो रहा है, वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने अपने बजट में कृषि और ग्रामीण कल्याण योजनाओं के मदों में भारी कटौतियां कर डाली हैं – इन योजनाओं में पीएम-किसान, मनरेगा, तेलहन व दालों के लिए समर्थन मूल्य योजना, लघु अवधि के फसल ऋण पर सब्सिडी आदि शामिल हैं. इसके अलावा, आंगनबाड़ी व मातृत्व लाभों पर सरकारी खर्च; स्वास्थ्य सुविधाओं; और शिक्षा पर व्यय में भी भारी कमी की गई है. संदेहास्पद ढंग से धन-राशि को इस खाते से उस खाते में डाल कर “स्वास्थ्य व परिवार कल्याण” तथा “पेय जल व स्वच्छता” के लिए बजट में वृद्धि दिखा दी गई है – और इसके लिए “केंद्रीय सड़क व अधिसंरचना फंड” को उपर्युक्त मदों के तहत ही गिन लिया गया है !

मोदी हुकूमत द्वारा अपनाई जानेवाली सामान्य कार्यनीतियां – फेक न्यूज, सांप्रदायिक विभाजन, दमन, पत्रकारों और आन्दोलन के नेताओं की गिरफ्तारियां – कोई असर डालने में नाकाम सिद्ध हो रही हैं. इस बार, शासन की ओर से होनेवाला हर हमला आन्दोलन की शक्ति और दृढ़ता को बढ़ाने में ही काम आ रहा है.

kisan