वर्ष - 30
अंक - 11
13-03-2021

 

बलात्कार-आरोपी को पीड़िता से शादी करने को कहने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोब्डे के नाम महिलाओं की खुली चिट्ठी

4000 से ज्यादा महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील ग्रुपों और नागरिकों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोब्डे को खुली चिट्ठी लिखकर कहा है कि उन्हें इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि उन्होंने एक बलात्कारी को अपनी पीड़िता एक स्कूली छात्रा से शादी करने को कहा और इस प्रकार वैवाहिक बलात्कार को उचित ठहराने की कोशिश की है. एक सरकारी कर्मचारी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए सीजेआई बोब्डे की बेंच ने हाल ही में उस व्यक्ति मोहित सुभाष चौहान से उसकी गिरफ्तारी पर एक महीने का स्थगन लगाते हुए कहा, “अगर तुम उससे शादी करना चाहो तो हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं. अगर नहीं, तो तुम्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ेगी और तुम जेल जाओगे. तुमने उस लड़की को लुभाया और उसके साथ बलात्कार किया. ... हम शादी करने के लिए तुम पर दबाव नहीं डाल रहे हैं. हमें बताओ कि क्या तुम शादी करोगे. नहीं तो, तुम कहोगे कि हम तुम्हें शादी करने को बाध्य कर रहे हैं.” इन टिप्पणियों से व्यापक विक्षोभ पैदा हुआ है, क्योंकि इससे लगता है कि किसी नाबालिग से बलात्कार करने में कोई हर्ज नहीं, अगर बलात्कारी उस लड़की से शादी कर ले. अपनी खुली चिट्ठी में कार्यकर्ताओं ने कहा, “हमें काफी आक्रोश है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश – जिनका अधिकार है और कर्तव्य भी कि वे भारत के संविधान की व्याख्या करें और तदनुसार फैसला करें – के समक्ष भी महिलाओं को ही यह समझाना पड़ रहा है कि ‘प्रलोभन’, ‘बलात्कार’ और ‘शादी’ का क्या अर्थ है”.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन उत्पीड़न का मामला निपटाने में भारतीय न्याय प्रणाली के दागदार इतिहास को भी सामने लाया और कहा कि ‘यह तो हद हो गई’. हमने देखा है कि आपके पूर्ववर्ती जज ने अपने खुद के खिलाफ लगे यौन उत्पीड़न के आरोप पर कोई फैसला नहीं दिया; और सर्वोच्च न्यायलाय की बेंच की तरफ से शिकायतकर्ता और उसके परिवारवालों पर झूठे अवमाननामूलक हमले करवाए. एक आरोपी बलात्कारी को इस आधर पर बरी कर दिया गया कि किसी महिला का ‘कमजोर इन्कार का मतलब हां करना भी हो सकता है’; और जब इसके खिलाफ अपील की गई तो उसको स्वीकार नहीं किया गया. आपने पूछा है कि किसान महिलाओं को कृषि कानूनों के विरोध में प्रतिवाद करने क्यों ‘बिठा’ दिया गया, और आपने उन्हें ‘वापस घर भेजने’ को कह दिया. इसका भी यही मतलब निकलता है कि महिलाओं को कोई स्वायत्तता और निजत्व हासिल नहीं है, जैसा कि पुरुषों को प्राप्त है. फिर कल अपने कहा, “अगर कोई दंपत्ति पति पत्नी के रूप में साथ रह रहे हैं, और पति निष्ठुर भी हो सकता है, लेकिन क्या आप कानूनी तौर पर विवाहित पुरुष और उसकी पत्नी के बीच यौन क्रिया को बलात्कार कह सकते हैं.” यह तो हद हो गई. आपके शब्द कोर्ट के प्राधिकार को अपमानित और अमर्यादित करते हैं. सर्वोच्च न्यायालय के सीजेआई पद की ऊंचाइयों से आपका यह बयान अन्य न्यायालयों, जजों, पुलिस और कानून लागू करनवाने वाली तमाम एजेंसियों को यह संदेश देता है कि भारत में महिलाओं के लिय न्याय उनका संवैधानिक अधिकार नहीं है. उससे तो लड़कियों और महिलाओं का मुंह बंद करने की प्रक्रिया ही आगे बढ़ेगी, जिस प्रक्रिया को तोड़ने में दशकों का समय लगा है. बलात्कारियों के लिये इससे यह संदेश जाता है कि विवाह बलात्कार करने का लायसेंस है; और कि यह लायसेंस हासिल कर वह बलात्कारी अपनी कार्रवाई के लिए पहले ही कानून की नजरों में अपराधमुक्त हो जा सकता है.

इस खुली चिट्ठी पर कई जानीमानी महिला अधिकार कायकर्ताओं (एन्नी रजा, मरियम धवले, कविता कृष्णन, कमला भसीन, मीरा संघमित्रा, अरुंधति धुरु, आदि), महिला ग्रुपों (अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन, ऑल इंडिया डेमोक्रैटिक वुमेंस एसोसिएशन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, ‘सहेली’, वुमेन अगेंस्ट सेक्सुअल वायोलेंस एंड स्टेट रिप्रेसन, टीएचआइटीएस, फोरम अगेंस्ट ऑप्रेसन ऑन वुमेन, बेबाक कलेक्टिव, भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन, दलित वुमेंस फाइट, बीएएसओ, वुमेन एंड ट्रांसजेंडर ऑर्ग ज्वायंट ऐक्शन कमेटी, आदि) तथा विविध क्षेत्रों के प्रख्यात नागरिकों (एडमिरल एल. रामदास, अरुणा राॅय, निखिल डे, आनंद सहाय, देवकी जैन, जाॅन दयाल, लक्ष्मी मूर्ति, अपूर्वानंद, फराह नकवी, आयशा किदवई, अंजा कोवैक्स, आदि) ने अपना समर्थन जाहिर किया है.

(3 मार्च, 2021. ‘द वायर’)