वर्ष - 31
अंक - 5
29-01-2022

छात्र संगठन आइसा व युवा संगठन इनौस विगत 28 जनवरी को आहूत बिहार बंद काफी असरदार रहा. बंद के दौरान एनएच 31, 57 सहित कई राष्ट्रीय राजमार्गों पर जाम लगा तथा कई जिलों में सड़कों पर आवाजाही ठप्प रही. आइसा-इनौस के अलावे बिहार बंद के समर्थन में कई दूसरे छात्र-युवा संगठन भी सड़क पर उतरे. छात्र-युवा संगठनों ने कहा कि सरकार रोजगार के सवाल पर उठ खड़ा हुआ आंदोलन अब रूकेगा नहीं. सरकार द्वारा दिया जा रहा झांसा बेकार साबित होगा.

आइसा-इनौस के बिहार बंद का राजधानी पटना पर व्यापक असर रहा. छात्र-युवा संगठनों ने शहर के मुख्य चौराहे डाकबंगला पर कब्जा जमा लिया और भाकपा(माले) के विधायक दल नेता महबूब आलम व पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ को गिरफ्तार करने और बंद समर्थकों पर बल प्रयोग की कोशिशों को धत्ता बताते हुए बंद को सफलतापूर्वक संपन्न किया. आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष विकास यादव के नेतृत्व में पटना विश्वविद्यालय कैंपस से छात्र-युवाओं का विशाल मार्च निकला जो अशोक राजपथ, मखनियां कुआं तथा पटना शहर के विभिन्न इलाकों से गुजरते हुए डाकबंगला चौराहे तक पहुंचा. छात्र-युवा आक्रोश को कमजोर करने का सरकारी तिकड़म को बेनकाब करते हुए भारी तादाद में छात्र-युवा इसमें शामिल रहे और उन्होंने रोजगार के सवाल पर भाजपा-जदयू का पर्दाफाश करते हुए सड़कों पर मार्च किया. कई घंटों तक डाकबंगला चौराहे जाम रहने के कारण शहर की यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई. जुलूस में अच्छी संख्या छात्रायें भी शामिल थीं.

अन्य दूसरे छात्रा संगठनों व पार्टियों का जुलूस भी डाकबंगला पहुंचा और चौराहे को पूरी तरह से जाम कर दिया. छात्र संगठनों के बिहार बंद के समर्थन में भाकपा(माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम, पालीगंज के भाकपा(माले) विधायक संदीप सौरभ और भाकपा(माले) के पटना नगर सचिव अभ्युदय भी डाकबंगला चौराहे पहुंचे और प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए बंद में शामिल रहे. विधायक महबूब आलम, संदीप सौरभ व अन्य बंद समर्थकों की पुलिस के साथ धक्का-मुक्की भी हुई पुलिस ने बल प्रयोग करने की कोशिश की, जिसका प्रदर्शनकारियों ने जमकर विरोध किया. डाकबंगला चौराहे पर जमे महबूब आलम, संदीप सौरभ व अन्य बंद समर्थकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोतवाली थाना में बंद रखा.

महबूब आलम ने कहा कि यह सरकार अपना हक-अधिकार मांग रहे छात्र-युवाओं पर बर्बर दमन अभियान चला रही है. उनके समर्थन में हम भी सड़कों पर उतरे तो हमारी गिरफ्तारी हुई. बिहार की जनता इसका जवाब देगीआज देश के छात्र-युवा जान चुके हैं कि केंद्र की मोदी सरकार रेलवे को बेचना या उसे अंबानी-अडानी के हाथों गिरवी रख देना चाहती है. वे इसे किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र के दौरान रोजगार का सवाल एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा और सरकार को इस पर जवाब देने के लिए बाध्य किया जायेगा.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गये आइसा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव व पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ पे कहा कि रोजगार एक बड़ा मुद्दा बन चुका है और सरकार चाहे जितना दमन चला ले, यह आंदोलन अब रूकने वाला नहीं है. इन सरकारों के पास हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं है, इसलिए वह दमन अभियान चला रही है. सुशील मोदी जैसे लोग अब बिहार के युवाओं को झांसे में नहीं रख सकते. पूरा बिहार जाग चुका है. हम छात्र-नौजवानों को हिंदु-मुसमलान नहीं, रोजगार चाहिए. आहसा राज्य अध्यक्ष विकास यादव ने कहा कि आज के बंद को असफल करने के लिए सरकार ने हर तरह का तिकड़म लगाया, लेकिन उनकी हर तिकड़म बेकार हो गई. बिहार की जनता ने पूरी मुस्तैदी के साथ बिहार बंद को समर्थन दिया.

दरभंगा में सुबह-सुबह आइसा व इनौस के नेतृत्व में सैकड़ों छात्रों ने सप्तक्रांति एक्सप्रेस को रोक दिया. बिहार बंद को भाजपा-जदयू के छात्र-युवा संगठनों को छोड़कर अन्य सभी छात्र-युवा संगठनों का समर्थन मिला. महागठबंधन की पार्टियों ने भी बिहार बंद में सक्रिय भूमिका निभाईअरवल में लगभग 8 बजे इनौस नेताओं ने पटना-औरंगाबाद रोड को पूरी तरह जाम कर दिया और भगत सिंह चौक पर सभा आयोजित की. भोजपुर में बंद का काफी असर रहावहां भाकपा(माले) विधायक व इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, आइसा के बिहार राज्य सचिव सबीर कुमार व इनौस के राज्य सचिव शिव प्रकाश रंजन के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या छात्र-युवा सड़कों पर उतरे और आरा बस स्टैंड को पूरी तरह जाम कर दिये.

छात्र-युवाओं ने कहा कि आंदोलन के दबाव में सरकार आरआरबी व एनटीपीसी की परीक्षा के रिजल्ट को लेकर जांच कमिटी बनाने तथा ग्रुप डी की परीक्षा को स्थगित करने का झांसा दे रही है. यूपी चुनाव के बाद सरकार अपने आष्वासन से फिर पीछे भाग जाएगी. इस बार छात्र-युवा सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं. बिहार की नीतीश सरकार पर भी 19 लाख रोजगार देने के वादे से पीछे भाग गई है. छात्र-युवा अब हर चीज का हिसाब लेंगे.

बक्सर में डुमरांव के विधायक तथा आइसा के सम्मानित प्रदेश अध्यक्ष अजीत कुशवाहा के नेतृत्व में बंद समर्थकों का बड़ा जत्था निकला. इस इस जत्थे में आइसा-इनौस के अलावा अन्य छात्र-युवा संगठनों के कार्यकर्ता भी शामिल थे. आंदोलनकारियों ने कहा कि सरकार छात्रों पर किए गए मुकदमें वापस ले, अन्यथा आंदेलन जारी रहेगा.

पटना के पालीगंज में विधायक संदीप सौरभ के नेतृत्व में आइसा-इनौस नेताओं ने पटना-औरंगाबाद रोड को जाम करते हुए कहा कि कुछ लोग आज बिहार बंद का विरोध कर रहे थे, लेकिन बिहार का छात्र-युवा जाग चुका है और अब किसी भी प्रकार की तिकड़मबाजी का शिकार नहीं होने वाला है. ग्रुप डी की परीक्षा के स्थगन पर कहा कि यह समझ से परे है कि ग्रुप डी तक की नौकरियों के लिए दो बार परीक्षा क्यों होगी? इसमें भी अभ्यर्थियों की साफ मांग है कि पहले के नोटिफिकेशन के आधार पर केवल एक परीक्षा ली जाए और दूसरे नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए. रेलवे जान बूझकर मामले को उलझा रहा है. छात्र-युवा इस बार सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं.

मुजफ्फरपुर में इनौस के प्रदेश अध्यक्ष आफताब आलम ने बंद का नेतृत्व किया. वहां सरकार ने बंद को असफल करने के लिए शिक्षकों को धमकाया और छात्रों को भी फोन के जरिए धमकी दी गई. इसको धत्त बताते हुए बंद में सैकड़ों छात्र सड़कों पर उतरे. वहां बंद के दौरान रेल परिचालन को भी बाधित किया गया. हिलसा में इनौस नेताओं ने प्रतिरोध मार्च निकालकर फतुहा-इस्लामपुर रोड को जाम किया. मुजफ्फरपुर में एनएच-57 पूरी तरह जाम रहा, जिससे सड़क पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से बाधित रहीइस्लामपुर में केबी चौक को आइसा-इनौस नेताओं ने जाम किया. जहानाबाद में शहर में विशाल मार्च निकला. मधेपुरा, खगड़िया, सिवान, गया, नवादा आदि जगहों पर भी जगह-जगह जाम किया गया.

आइसा-इनौस नेताओं ने कहा कि सरकार इतने बड़े मसले पर और अगर सचमुच अभ्यर्थियों की मांगों पर गंभीर होती तो रेल मंत्रा तत्काल खुद सामने आकर उनसे बात करते. एक तरफ जांच कमिटी का झांसा है तो दूसरी ओर बर्बर तरीके से हर जगह छात्र-युवाओं पर दमन का अभियान भी चलाया जा रहा है. इससे सरकार की असली मंशा साफ-साफ जाहिर हो रही है. बिहार के तमाम छात्र-युवा 7 लाख संशोधित रिजल्ट फिर से प्रकाशित करने और ग्रुप डी के लिए एक ही परीक्षा आयोजित करने की मांग कर रहे हैं.

भाकपा(माले) राज्य सचिव कुणाल ने आइसा-इनौस द्वारा आहूत बिहार बंद के दौरान हुई गिरफ्तारियों की निंदा की. उन्होंने कहा कि संशोधित 7 लाख रिजल्ट व ग्रुप डी में एक ही परीक्षा की मांग पर छात्रों के आक्रोश का विस्फोट स्वभाविक है. यूपी में चुनाव को देखते हुए सरकार झांसा दे रही है. विगत 7 सालों से मोदी सरकार ने छात्र-युवाओं को केवल ठगने का ही काम किया है. नीतीश सरकार ने भी 19 लाख रोजगार का जो वादा किया था, उससे भाग खड़ी हुई. उन्होंने बिहार के छात्र-युवाओं से तमाम राष्ट्रीय संपत्तियों का निजीकरण करके छात्र-युवाओं को रोजगार के असवरों से बाहर करने और हिंदु-मुसलमान का जहर घोलकर समाज को तोड़ने की शाषकों की तिकड़म का अपनी एकता व शांतिपूर्ण आंदोलनों द्वारा प्रतिवाद करने और इन सरकारों को घुटना टेकने के लिए मजबूर करने का आह्वान किया. बिहार बंद को भाकपा(माले) सहित महागठबंधन की सभी पार्टियों के साथ ही हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा, वीआईपी और जाप जैसी पार्टियों का भी समर्थन मिला.

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छात्रों के आक्रोश के कारण क्या हैं?

इस कड़ाके की ठंड में पटना और आरा में छात्रों ने रेलवे ट्रैक को दस घंटों तक जाम रखा था जिस दौरान रेलवे को राजधानी सहित 5 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और 30 ट्रेनें घंटे जहां-तहां फंसी रही. दूसरे दिन भी सुबह से ही नालंदा सहित बिहार के कई जिलों से छात्रों ने रेलवे ट्रैक को जाम किया. इसकी प्रमुख वजह है लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेल मंत्रालय द्वारा 2019 में की निकाली गई वेकेंसी में की गई हेरापफेरी. 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेल मंत्रालय ने रेलवे के 21 बोर्डों के लिए ग्रेजुएट (स्नातक) स्तर पर बड़ी वेकेंसी जारी की थी जिसमें स्टेशन मास्टर, गार्ड, टीसी सहित सात पदों के लिए 35,277 लोगों को बहाल करना था. वेकेंसी के एक वर्ष बाद 28 दिसंबर 2020 को पहली परीक्षा हुई और कारोना की वजह से टलते-टलते 31 जुलाई 2021 तक संपन्न हुईं. रेलवे बोर्ड ने 14 जनवरी 2022 को पीटी रिजल्ट दिया.
इन परीक्षाओं में जो मानक पहले से निर्धारित रहा है उसमें पीटी में कुल पद का 20 गुना रिजल्ट जारी किया जाता था. लेकिन, इस बार बोर्ड ने वेकेंसी के अनुसार पीटी में 7 लाख की जगह मात्रा 2 लाख 76 हजार के करीब रिजल्ट जारी किया है और इस रिजल्ट में ही छात्रों का कैडर निर्धारित कर दिया है. ऐसा कभी किसी परीक्षा में नहीं हुआ है. मतलब पीटी में ही किसी का कैडर गार्ड निर्धारित है तो उसको गार्ड की ही नौकरी मिलेगी, भले ही फाइनल परीक्षा में वह टॉपर ही क्यों न हां. अगर किसी को स्टेशन मास्टर का कैडर मिला तो उसको उसी पद की वेकेंसी है उसी आधार पर नौकरी मिलेगी.
रेलवे का तर्क है कि जो वैकेंसी निकाली गयी है उसके अनुसार पीटी में 20 गुना रिजल्ट जारी किया गया है. रेलवे बोर्ड सही कह रहा है लेकिन इसके पीछे का खेल क्या है? रेलवे बोर्ड जिन सात पदों पर बहाली कर रहा है, उनमें हर पद के अनुसार 20 गुना रिजल्ट जारी कर दिया गया है. उसमें चार लाख से अधिक ऐसे छात्र हैं जिनका रिजल्ट किसी का दो पद पर तो किसी का सातों पदों पर है. इस वजह से मात्र 2 लाख 76 हजार छात्र पीटी पास किये हैं, जबकि पीटी का रिजल्ट कम से कम सात लाख होना चाहिए. कहीं ना कहीं बोर्ड द्वारा जितनी वेकेंसी निकली थी बोर्ड उतनी बहाली नहीं कर रहा है. इस खेल को छात्र समझ गये हैं और इसलिए आक्रोशित हैं.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश के युवाओं के साथ सरकार ऐसा खेल क्यों खेल रही है? रेलवे को निजी हाथों में सौपना है तो एक बार सरकार निर्णय सुना दे. गुप्त एजेंडे की जरुरत क्या है? वैसे भी मोदी के सात वर्षा के कार्यकाल को देखे तो सरकारी नौकरी आधे से भी कम हो गई है. जिनकी नौकरी हुई भी है तो उसकी नियुक्ति प्रक्रिया बाधित है. यूपीएससी तक में सीटों की संख्या आधी कर दी गयी है और सारे पदों को बाहर से भरा जा रहा है.
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