वर्ष - 28
अंक - 43
05-10-2019

मजदूर वर्ग के खिलाफ मोदी सरकार के हमलों के विरोध में नई दिल्ली के संसद मार्ग पर 30 सितंबर 2019 को श्रमिकों का राष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित किया गया. कन्वेंशन में 8 जनवरी 2020 को मजदूर वर्ग व मेहनतकश अवाम की एक-दिवसीय आम हड़ताल संगठित करने का आह्नान जारी किया गया. अभूतपूर्व रूप से मोदी सरकार-2 के सौ दिन के अंदर ही काॅरपोरेटीकरण/निजीकरण, 100 प्रतिशत एफडीआई, एनपीएस और श्रमिक कानूनों के कोडीकरण के खिलाफ मजदूर वर्ग की शक्तिशाली देशव्यापी कार्रवाइयां देखी गईं जिनमें प्रमुख हैं : प्रतिरक्षा श्रमिकों की 5-दिनी हड़ताल, कोयला मजदूरों की अभूतपूर्व एक-दिवसीय हड़ताल तथा रेलवे उत्पादन इकाइयों में कार्यरत श्रमिकों और उनके परिजनों के लगातार चलने वाले संघर्ष.

यह कन्वेंशन 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच, जो लंबे समय से एकताबद्ध मजदूर संघर्ष संचालित कर रहा है, के द्वारा मोदी सरकार की मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के विरोध में आयोजित किया गया था. इस संयुक्त मंच में ऐक्टू, इंटक, ऐटक, एचएमएस, सीटू, एआइयूटीयूसी, टीयूसीसी, ‘सेवा’, एलपीएफ और यूटीयूसी के साथ-साथ मजदूरों व कर्मचारियों के कई स्वतंत्र संघ, महासंघ और यूनियनें शामिल हैं. कन्वेंशन का शंखनाद था – “श्रम-विरोधी, मालिक-परस्त श्रम कानून संशोधनों और कोडीकरण को रद्द करो; निजीकरण, छंटनी और 100 प्रतिशत एफडीआई तथा बैंकों के विलय पर रोक लगाओ; आम जनता की खरीद-शक्ति बढ़ाओ और नए रोजगारों का सृजन करो !”

ऐक्टू की ओर से महासचिव राजीव डिमरी ने कन्वेंशन को संबोधित किया और आइआरईएफ के महासचिव सर्वजीत सिंह अध्यक्षमंडल में शामिल थे.

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कन्वेंशन द्वारा पारित ‘घोषणा’ में मोदी-नीत भाजपा सरकार की आलोचना की गई कि इसने अपनी दूसरी पारी के सौ दिनों के अंदर देश और जनता को गहराती आर्थिक मंदी (स्लोडाउन), रोजगार-ह्रास और बेरोजगारी, बढ़ती गरीबी तथा आमदनी के औसत स्तर में गिरावट की ओर धकेल दिया है और यह सरकार अंधाधुंध निजीकरण राष्ट्रीय उत्पादक संसाधनों को विदेशी कंपनियों के हाथों सौंप देने, घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को ध्वस्त करने तथा समाज में आर्थिक असमानता को चरम स्थिति तक पहुंचा देने पर आमादा हैऔर सर्वोपरि, यह सरकार राष्ट्र के लुटेरे काॅरपोरेटों को ‘संपत्ति सृष्टा’ का खिताब देकर उन्हें आर्थिक मंदी के नाम पर 1.45 लाख करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज थमा दे रही है, जबकि इसके बजाय उसे आम जनता की खरीदने की ताकत को बढ़ाने का उपाय अपनाना चाहिये था. ये सब चीजें ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारे का भद्दा मजाक ही है ! ‘घोषणा’ में कहा गया है कि अब जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों व आजीविका पर निशाना साधने वाली इन्हीं विनाशकारी आर्थिक नीतियों को और अधिक उद्दंडता के साथ जारी रखा जा रहा है, जिससे हालात बदतर होते जा रहे हैं. और, यह सब पहले से कहीं ज्यादा अलोकतांत्रिक तरीके से किया जा रहा है – चाहे वह मजदूर कोड बिल को पारित करने का मामला हो या फिर ‘पेशेवर स्वास्थ्य, सुरक्षा व कार्य स्थिति कोड’ को लागू करने, सूचनाधिकार कानून को नष्ट करने के लिये इसमें संशोधन करने और ‘गैर कानूनी गतिविधि निरोधक ऐक्ट (यूएपीए)’ को संशोधित कर इसे और ज्यादा कठोर व दमनकारी बनाने के मामले हों ! जम्मू-कश्मीर की जनता का गला घोंटते हुए धारा 370 को खत्म कर दिया गया और वहां पिछले दो महीने से सेना का कब्जा बना हुआ है. एनआरसी प्रक्रिया के जरिये लाखों लोगों को बेघर और राज्यविहीन बना दिया गया है; और अब अनेक भाजपा-शासित राज्य भी एनआरसी प्रक्रिया चलाने की बात कह रहे हैं ताकि वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अंजाम दिया जा सके. इसी के साथ, सांप्रदायिक ताकतों को खुली छूट दे दी गई है जो बेबात की बात पर समाज के अंदर टकराव का माहौल पैदा कर रहे हैं और बेरोजगारी व तेज होती महंगाई जैसे मुद्दों से जनसमुदाय का ध्यान भटकाने में सरकार की मदद कर रहे हैं. वे लोग मजदूरों व आम मेहनतकश अवाम की एकता को तोड़ देना चाहते हैं. जनता की एकता की खातिर इस विनाशकारी प्रक्रिया का एकताबद्ध प्रतिरोध संघर्षों के जरिये मुकाबला करना होगा.

इस कन्वेंशन में (वर्तमान जीवन-निर्वाह मूल्य सूचकांक के अनुसार) 21,000 रुपये की राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी, सरकारी कोष से सब के लिए 10,000 रुपये का न्यूनतम माहवारी पेंशन, सभी ग्रामीण व शहरी परिवारों के लिए कारगर रोजगार गारंटी ऐक्ट, बढ़े हुए काम के दिन तथा अधिक बजटीय आवंटन के साथ ‘मनरेगा’ के क्रियान्वयन, ग्रामीणों की दुर्दशा को कम करने के लिये सार्वजनिक निवेश में वृद्धि, कृषि उत्पादों के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप लाभकारी मूल्य के निर्धारण के सथ-साथ किसानों को सरकारी खरीद की सुविधाएं व कर्ज-माफी प्रदान करने तथा रोजगार के स्थायित्व की मांगें उठाई गईं इसके साथ ही, आईएलसी की सर्वसम्मत अनुशंसा के अनुसार तमाम स्कीम वर्कर को श्रमिक का दर्जा देने, ठेका प्रणाली के उन्मूलन व ठेका मजदूरों की सेवा के नियमितीकरण, समान काम के लिये समान वेतन व अन्य लाभों तथा ‘टिकाऊ विकास लक्ष्यों’ के क्रियान्वयन की भी मांगें उठाई गईं.

कन्वेंशन में हड़ताल की मुकम्मल सफलता के लिये अगले तीन महीने में ‘प्रोग्राम ऑफ ऐक्शन’ संचालित करने तथा अक्टूबर-नवंबर 2019 के दो महीनों में सेक्टरवार, राज्य व जिला स्तरों पर संयुक्त मजदूर कन्वेंशन आयोजित करने; और इसके बाद दिसंबर 2019 में कारखानों, प्रतिष्ठानों, संस्थाओं में जमीनी स्तर तक इस ‘घोषणा’ का व्यापकतम संभव प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया गया.

इन कन्वेंशन में संगठित व असंगठित क्षेत्रों से आए 3000 से ज्यादा मजदूर प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, नोएडा, जम्मू-कश्मीर समेत कई अन्य राज्यों तथा रेलवे समेत सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रतिष्ठानों के ऐक्टू कार्यकर्ता इस कन्वेंशन में शामिल हुए.