‘विभाजन विभीषिका दिवस’ से ‘संविधान हत्या दिवस’ तक संघ के विभाजनकारी एजेंडे का पर्दाफाश

2024 के लोकसभा चुनावों में ‘बीजेपी हराओ, संविधान बचाओ’ अभियान से बुरी तरह से त्रस्त भाजपा अब खुद को भारत के संविधान के ‘रक्षक’ और ‘चैंपियन’ के बतौर पेश करने के लिए बेताब है. भारत पहले से ही 26 नवंबर को संविधान दिवस के बतौर मनाता रहा है, जिस दिन 1949 में संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाया गया था. मोदी सरकार ने अब 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के बतौर नामित किया है – 1975 में आपातकाल की घोषणा को संविधान की हत्या की कोशिश की बजाय सीधे हत्त्या के बतौर याद करने का दिन. किसी भी देश के लिए अपने ही संविधान की हत्या का दिन मनाना अभूतपूर्व है.

कृपया गाजा नरसंहार रोकने की आवाज उठाना बंद न करें!

पिछले शनिवार को, जब पूरी दुनिया की मीडिया पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हत्या की कोशिश की सुर्खियों से भरी थी और चिल्ला-चिल्ला कर एलान कर रही थी कि लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है, ठीक उसी दिन इजरायल ने अमेरिका निर्मित 500 पौंड के बमों से सेंट्रल गाजा के नागरिकों के लिए सुरक्षित घोषित अल-मवासी इलाके पर हवाई हमले किए, जिसमें 100 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे गए और कम से कम 300 घायल हो गए. पर इजरायल द्वारा अकल्पनीय बर्बर उपनिवेशवादी नरसंहारी हिंसा को आत्मरक्षा के नाम पर जायज ठहराया जा रहा है.

भाकपा(माले) की जीत : हिंदी पट्टी में वामपंथ का नया उभार

- कुमार परवेज

तकरीबन 35 सालों के बाद आरा लोकसभा सीट पर भाकपा(माले) ने शानदार जीत हासिल की है. विदित हो कि 1989 के लोकसभा चुनाव में आइपीएफ के बैनर से का. रामेश्वर प्रसाद ने पहली बार जीत हासिल की थी. बगल की काराकाट सीट भी भाकपा(माले) जीतने में सफल रही. हालांकि, बेगूसराय में सीपीआइ और खगड़िया में सीपीएम कड़े संघर्ष के बावजूद हार गई. विगत 20 सालों से बिहार में कोई भी वामपंथी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सका था. ऐसे में भाकपा(माले) की दो सीटों पर शानदार जीत हिंदी पट्टी में वामपंथ के नए उभार का संकेत दे रही है.

नीट एक भेदभावपूर्ण एवं गरीब विरोधी परीक्षा व्यवस्था है

- कुमार दिव्यम

मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए अयोजित की जाने वाली प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ में हुई व्यापक धांधली तथा पेपर लीक के खुलासे होने के बाद भी परीक्षा को अभी तक रद्द नहीं किया गया है. ‘परीक्षा पर चर्चा’ करने वाले प्रधानमन्त्री मोदी नीट परीक्षा पर चुप्पी साधे हुए हैं. छात्रों के सवालों के जवाब देने तथा परीक्षा रद्द करने के बजाए प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर लाठियां चटकाई जा रही हैं.

2024 के ऐतिहासिक जनादेश के आलोक में सशक्त विपक्ष को आगे आने वाली चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए उठ खड़ा होना होगा

कमजोर हो चुकी सरकार फिर सत्ता में वापस आ गयी है, साथ ही एक मजबूत, ऊर्जावान विपक्ष भी संसद में उसका मुक़ाबला करने के लिए आ चुका है. 2024 के चुनावों का कुल हासिल यदि देखा जाये तो वो है शक्तियों के संतुलन का सामान्य तौर पर विपक्ष की ओर झुकाव. एक क्रियाशील लोकतंत्र में इसका मतलब होना चाहिए कि अंकुश में कार्यपालिका और क्रमबद्ध रूप से समाज एवं शासन में पुनर्स्थापित राजनीतिक संतुलन. लेकिन 2024 में भारत में संसदीय लोकतंत्र क्रियाशील होने के अलावा सब कुछ है. 2014 से मोदी के भारत में लोकतंत्र का क्षरण बेहद सामान्य बात है.

भारत को पुलिस राज में बदलने की मोदी सरकार की साजिश को ध्वस्त करें!

राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने मोदी सरकार के पहले दस वर्षों को प्रायः अघोषित आपातकाल के बतौर चित्रित किया है. तीन नई दंड संहिताओं के लागू होने के बाद आपातकाल की वह स्थिति संस्थाबद्ध हो गई है.

नीट 2024 घोटाला : लाखों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ बंद करो

4 जून, 2024 को, जहाँ एक तरफ़ 18वें लोकसभा चुनाव का परिणाम प्रसारित किया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ 24 लाख नीट उम्मीदवारों का भविष्य भ्रष्टाचार के अंधकार में डूब रहा था। देश भर के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस, डेंटल और आयुष पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के परिणाम जब लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ ही घोषित किए गए थे, ताकि मीडिया का ध्यान इस तरफ बिल्कुल न जा पाए। कुछ दिनों बाद ही नीट 2024 में घोटाले का यह गुस्सा सोशल मीडिया पर जगज़ाहिर हो गया। जिसके बाद इस घोटाले के व्यापक पैमाने का पता चला और छात्रों को