Investigation of Pegasus Spying Scandal

 

नई दिल्ली, 21 जुलाई.

इजराइली फोन हैकिंग सॉफ्टवेयर पेगासस द्वारा भारत समेत कम से कम दस देशों में हो रही जासूसी का खुलासा करने के लिए कई मानवाधिकार संगठनों एवं पत्रकारों ने वैश्विक स्तर पर तालमेल बना कर काम किया, जिसे 'पेगासस प्रोजेक्ट' के नाम से जाना जा रहा है. काफी मेहनत से की गई इस जांच ने, जिसमें कई फोन नम्बरों की स्वतंत्र फॉरेन्सिक एनालिसिस भी शामिल है, भारतीय लोकतंत्र के सामने कई परेशान करने वाले सवाल खड़े कर दिये हैं. यह साबित हो गया है कि 2017—18 में सामने आये पेगासस के संभावित 'टारगेट्स' में कम से कम 1000 फोन नम्बर भारतीय हैं. जिनमें विपक्षी दलों के कई प्रमुख नेता, एक विपक्षी दलों को सहयोग कर रहे चुनाव रणनीतिज्ञ, बड़ी संख्या में सम्पादक और रिपोर्टर, सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश, एक चुनाव आयुक्त, बहुत से मानवाधिकार व अन्य कार्यकर्ता, तथा एक महिला जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई थी तथा उनके परिजन, आदि शामिल हैं. पेगासस के निशाने पर रहे कई लोगों के फोन की फॉरेन्सिक जांच से स्पष्ट हो गया है कि उनके फोन में पेगासस सफलतापूर्वक डाला गया था, और विपक्ष के दलों को सहयोग करने वाले चुनाव रणनीतिकार प्रशान्त किशोर के फोन में तो वह इस महीने तक सक्रिय रूप में काम रहा था.

इजराइली कम्पनी एनएसओ ने कहा है कि वह इस सॉफ्टवेयर को केवल सरकारों को बेचती है. स्पष्ट है कि या तो भारत सरकार, अथवा किसी अन्य देश की सरकार पत्रकारों, जजों, कार्यकर्ताओं के निजी क्षणों समेत उनके जीवन के हर पहलू की जासूसी कर रही थी. पेगासस बहुत मंहगा सॉफ्टवेयर है और एक फोन में इसे डलावाने की कीमत कम से कम डेढ़ करोड़ रुपये होती है. इस सॉफ्टवेयर के ऐसे इस्तेमाल का 'राष्ट्रीय सुरक्षा' से कोई लेना—देना नहीं है, बल्कि यह शासक पार्टी द्वारा उसके राजनीतिक आलोचकों की जासूसी करने के उद्देश्य से किया जा रहा है. इस प्रकार से सूचनायें एकत्र कर विरोधियों को ब्लैकमेल किया जा सकता है, उन्हें दबाया जा सकता है या उनके खिलाफ फर्जी सबूत बना कर उन्हें झूठे केसों में फंसाया जा सकता है. यह लोकतंत्र के तीन स्तम्भों — स्वतंत्र प्रेस, न्यायपालिका और जागरूक नागरिकों — पर सीधा हमला है.  

इस खुलासे के सामने आने के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया से स्पष्ट हो गया है कि वह जरूर कुछ छिपा रही है. सरकार ने इन खुलासों को सीधे सीधे 'भारत को बदनाम करने की साजिश' कहते हुए कहा है कि उसने अपनी तरफ से कोई गलत काम नहीं किया है. अगर सरकार ने दूसरों के फोन हैक करने के लिए पेगासस सॉफ्टवेयर नहीं खरीदा है, तब उसे यह क्यों लग रहा है कि जो खुलासे सामने आये हैं वे 'बदनाम' करने की साजिश हैं? वह अकड़ दिखाने की जगह यह पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं कर रही कि किन लोगों ने पेगासस को खरीद कर भारतीय नागरिकों की जासूसी की? अगर कोई विदेशी ताकत भारतीय नागरिकों की जासूसी करवा रही है, और भारत के संसदीय एवं विधानसभा चुनावों पर असर डालने की कोशिश कर रही है, तथा एक इजरायली कम्पनी के पास संवेदनशील पदों पर बैठे कई भारतीय नागरिकों का निजी डाटा है, तो निस्संदेह रूप में यह राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगाने का एक गम्भीर मामला बनता है? ऐसे में हमारी सरकार सुरक्षा में सेंध लगाने वालों की जांच कर उनकी पहचान करने से क्यों कतरा रही है?

सरकार यह भी दावा कर रही है कि उसके द्वारा की गई कोई भी निगरानी (surveillance) भारतीय कानूनों के प्रावधानों के अनुरूप हुई है. जन सुरक्षा को स्पष्ट खतरा होने की स्थिति में भारतीय कानून फोन टैप करने की अपवाद स्वरूप इजाजत देते हैं, लेकिन ऐसी स्थिति में एक अधिकृत पेनल द्वारा एक सप्ताह के अन्दर फोन टैप करने के आदेश की समीक्षा करवाना अनिवार्य है. वैसे भी पेगासस फोन टैप करने का सॉफ्टवेयर नहीं है, यह तो उन्हें हैक करने का काम करता है और भारत में हैकिंग गैरकानूनी कृत्य है. भारतीय जनता को यह जानने का हक है, और भारत सरकार को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि उसने पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा था या नहीं? किसने इसकी खरीद का निर्णय लिया और और किसने इसके बिल का भुगतान किया? क्या ऐसा कोई पेनल बना था जो इस प्रकार की जासूसी की कार्यवाही की समीक्षा करे और क्या जासूसी के लिए तय किये गये नामों के चयन पर उस पेनल ने कोई स्पष्टीकरण मांगा? क्या सर्वोच्च न्यायाधीश श्री गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला व उनके 10 परिजनों की पेगासस से जासूसी की गई थी? इस प्रकार की निगरानी (surveillance) से पाये गये तथ्यों का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड रखा गया है? यदि हां, तो ऐसे रिकॉर्ड किस अधिकारी के पास हैं?

हम इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करते हैं और इस दिशा में प्रथम कदम के रूप गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग करते हैं. यह स्वतंत्र जांच समयबद्ध होनी चाहिए जिसमें मोदी सरकार, व उसके विभिन्न स्तरों के अधिकारियों से पूछताछ हो और पता चले कि पेगासस के आपराधिक इस्तेमाल के पीछे कौन कौन हैं.

- केन्द्रीय कमेटी, भाकपा(माले)