वर्ष - 31
अंक - 1
01-01-2022

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में, हरिद्वार (उत्तराखंड) में और रायपुर (छत्तीसगढ़) में ऐसी जुटानें की गईं जिसमें भगवाधारी नेताओं ने मुस्लिमों के जनसंहार का आह्वान किया और भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बना देने की शपथ दिलाई. धर्म संसद के नाम पर आयोजित इन जुटानों की अगुवाई हिंसक आतंकवादियों का एक संगठन कर रहा है. धर्म की आड़ में वे लोग खुलेआम हिंदू बच्चों को कट्टर आतंकी विचारधारा और हथियारों से लैस कर रहे हैं.

वे लोग अपने को खुलेआम गोडसे की विचारधारा माने वाला बताते हैं, जो गांधी का हत्यारा और स्वतंत्र भारत का पहला आतंकवादी था, और लोकतांत्रिक व समावेशी भारत को गोडसे का भारत बनाना अपना उद्देश्य घोषित करते हैं. भाजपा के निर्वाचित विधायकों और नेताओं की बोलियों में भी उनके शब्द गूंजते हैं – जैसे कि बंगलोर के भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने हाल ही में भारत में मुस्लिमों और ईसाइयों की मुकम्मल ‘घरवापसी’ का आह्वान जारी किया था (जिसे बाद में उन्होंने ‘विवादों’ के मद्देनजर वापस ले लिया). नए साल में प्रवेश करते समय भाजपा और उसकी सरकारों के संरक्षण में चलाया जा रहा ‘संघ’ का हिंसक आतंकी एजेंडा भारत के सामने मौजूद सबसे बड़ा खतरा है.

ऐसे समय में, जब देश को रोजगार, भूख, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक न्याय और समानता जैसे मुद्दे उठाने के लिए किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं के ‘संसदों’ की जरूरत है, ये ऐसी कौन सी ताकतें हैं जो धर्म और आस्था के नाम पर नफरती सभाएं करने में मशगूल हैं ? आगामी चुनावों पर नजरें गड़ाए इन नफरती सभाओं का मकसद है रोजगार, कृषि, स्वास्थ्य व शिक्षा के मोर्चे पर भाजपा की आपराधिक विफलता की तरफ से आम लोगों का ध्यान भटका देना. इसी के साथ, ऐसी जुटानें लोकतंत्रिक और समावेशी भारत को सर्वसत्तावादी ‘हिंदू राष्ट्र’ में तब्दील करने के घृणित संघी लक्ष्य की ही सेवा करती हैं.

यती नरसिम्हानंद और साध्वी अन्नपूर्णा जैसे नफरत फैलाने वाले लोग अब हिंदू आस्था की प्रमुख संस्थाओं और साथ ही बजरंग दल जैसे संघी गिरोहों की रहनुमाई कर रहे हैं (नरसिम्हानंद जूना अखाड़ा की अगुवाई करते हैं). ये पुरुष और महिलाएं ही हिंदुओं के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं, जो हिंदू बच्चों के दिमाग को प्रदूषित कर रहे हैं और उन्हें आतेकी कार्रवाइयों की ओर धकेल रहे हैं.

ये नेतागण मुस्लिम दुकानदारों और व्यापारियों का बहिष्कार करने; हथियार उठाने; गोडसे विचारधारा को अपनाने; और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के समूचे समुदाय का सफाया कर डालने के लिए हिंदू धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे हालात में न केवल शंकराचार्यों, आचार्यों, सद्गुरुओं और हिंदू आस्था के अन्य नेताओं की शर्मनाक चुप्पी दिख रही है, बल्कि प्रधान मंत्री और गृह मंत्री भी खामोश हैं जो भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं.

‘क्रिसमस डे’ ईसाइयों का पवित्र दिवस होता है और सब के लिए उत्सव का मौका होता है, लेकिन इस मौके पर भी संघी आतंकियों ने सांता क्लाॅज का पुतला जलाया. ये हमले ईसाइयों द्वारा संचालित स्कूलों और अन्य संस्थाओं पर संघी गिरोहों द्वारा किए गए हमलों के ठीक बाद हुए. जिस ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना मदर टेरेसा ने की थी और जो भारत में दीन-हीनों और मौत के करीब पहुंचे लोगों के बीच दान कर्म के लिए मशहूर है, उसकी फंडिंग को हाल ही में मोदी शासन ने रोक दिया है. मुस्लिमों के साथ-साथ ईसाई भी संघी आतंकवाद का निशाना बन रहे हैं.

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत के लोगों का भ्रम तेजी से टूट रहा है और भाजपा अपनी जमीन खो रही है. हिमाचल प्रदेश के उप-चुनावों में भाजपा की हार के बाद, इसकी ताजातरीन मिसाल है चंडीगढ़ नगरनिगम के चुनावों के नतीजे जिसमें भाजपा को सीट और वोट, दोनों लिहाज से भारी धक्का झेलना पड़ा है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और उन्माद ही मोदी शासन का अंतिम सहारा बच गया है. शायद मोदी सरकार को यकीन है कि कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आन्दोलन और जनता के अन्य संघर्ष पीछे चले जाएंगे, और इन संघर्षों की बदौलत जो एकजुटता व लड़ाकू भावना पैदा हुई है और उसे जो नई ऊर्जा मिली है, वह शांत हो जाएगी. और, भाजपा इस परिस्थिति का फायदा उठाकर सांप्रदायिक जहर फैला देगी और जनता का दमन कर देगी तथा सत्ता व राजनीतिक एजेंडा पर फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर लेगी.

इस एजेंडा को शुरू करने में भाजपा न केवल अपने संगठन और अन्य गिरोहों पर भरोसा कर रही है, बल्कि उसे विपक्ष की कमजोरी तथा कांग्रेस व ‘आप’ जैसी चंद नई पार्टियों के कुछ हिस्सों समेत चंद गैर-भाजपा दलों के अंदर मौजूद उस प्रवृत्ति पर भी भरोसा है जो भाजपा की अपनी वैचारिक जमीन तथा उसकी ही शर्तों पर भाजपा के साथ मुकाबला करने की ओर उन्हें ले जाती है. रायपुर जुटान में कुछ कोंग्रेसी नेताओं की शिरकत तथा उस जुटान के प्रति बघेल सरकार की सुस्त व आधे मन से की गई कार्रवाई हमारे लिए इस प्रवृत्ति का एक संकेतक है.

इसीलिए भारत के हर जन आन्दोलन और भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वे हिंदू आस्था के नाम पर चलाये जा रहे ऐसे आतंकवाद का प्रतिरोध करने के लिए सक्रियतापूर्वक संगठित हो जाएं. खामोशी आत्मसंतोष का ही दूसरा नाम है. हर शहर, हर नगर, हर गांव, हर गली और हर मुहल्ले में भाजपा-संरक्षित इन खतरनाक आतंकी जुटानों के खिलाफ प्रतिवाद संगठित किया जाना जरूरी है. यही नए साल के लिए हमारा संकल्प हो !