वर्ष - 31
अंक - 2
08-01-2022

आदिवासी आन्दोलनों और भाजपा सरकार के साथ ‘पत्थलगड़ी’ विवाद को लेकर चर्चित रहनेवाला खूंटी जिला फिर से अशांत हो चला है. इस बार गांव-गांव में आदिवासी समुदाय के लोगों और उनके संगठनों के जुटान का मुद्दा है - प्रधानमंत्री घोषित ‘स्वमित्व/प्रोपर्टी कार्ड योजना’ और इस नाम पर प्रशासन द्वारा जबरन और चुपके से आदिवासी गांवों का ड्रोन सर्वे कराया जाना. वस्तुस्थिति को जानने-समझने के लिए गत 24 दिसम्बर को ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, झारखंड की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने खूंटी जिले के कर्रा क्षेत्र का दौरा किया और रिपोर्ट जारी की.

अब तक सरकार जब किसी योजना को ग्रामीण इलाकों में लागू करती थी तो अखबारों तथा अन्य प्रचार माध्यमों से आदिवासी ग्राम सभाओं और सभी ग्रामीणों को पहले ही जानकारी देती थी. ऐसा पहली बार हुआ कि खूंटी जिला के विभिन्न गावों में प्रशासन द्वारा कराए जा रहे ‘ड्रोन सर्वे’ को लेकर न तो कोई पूर्व सूचना दी गयी और न ही इसका कोई प्रचार किया गया. गावं-गांव में ड्रोन सर्वे टीम चुपके से पहुंची और सर्वे करने के बाद फौरन वहां से भाग चली.

कर्रा प्रखंड के कुदा गांव में 2 नवम्बर को प्रधान मंत्री स्वामित्व और प्रोपर्टी कार्ड योजना के नाम पर पूरे इलाके में ‘ड्रोन सर्वे’ कराने के कार्यक्रम का उद्घाटन होना था. लेकिन लोगों द्वारा इस प्रकार के सर्वे के विरोध को देखते हुए आनान-फानन में 1 नवबर को ही खूंटी सांसद सह केन्द्रीय आदिवासी मंत्री, स्थानीय विधायक और तोरपा विधायक ने ड्रोन उड़ाकर ‘सर्वे कार्यक्रम’ का उद्घाटन किया था. मौके पर खूंटी डीसी, एसडीओ व एसपी समेत तमाम आला अधिकारी मौजूद थे. ग्रामीणों के संभावित विरोध को देखते हुए भाजपा समर्थक ग्रामीणों को बुलाकर थोड़ी देर में ही कार्यक्रम खत्म कर दिया गया.

इसके बाद ही ड्रोन सर्वे की टीमें आदिवासी गावों में भेजी जाने लगी. कर्रा प्रखंड के कुदा, बकसपुर, होरोपाढा, देवनगड, पोड़ा कुसुम टोली, कच्चाबाड़ी और तुमना समेत सभी 278 गावों में गुपचुप तरीके से सर्वे कर लिया गया. सभी जगह के ग्रामीणों ने एक ही बात बतायी, ‘ये टीमें गावों में चुपके से घुसती हैं और सबकी नज़रें बचाकर ड्रोन से सर्वे कर लेती हैं. कई गावों में ड्रोन उड़ता देखकर आदिवासी ग्रामीणों ने सर्वे करने पहुंचे लोगों से इसकी जानकारी मांगी और पूछा कि क्या ग्राम सभा से इसकी अनुमति ली गयी है तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. कई स्थानों पर टीम के साथ पहुंचे ब्लाॅक अफसरों-कर्मचारियों ने उलटे सीधे जवाब देते हुए कहा, ‘इससे आप ही लोगों का फायदा होगा. ग्रामीणों द्वारा यह कहे जाने पर कि जब यह पांचवीं अनुसूची का इलाका है और यहां सभी सरकारी योजनायें ग्राम सभा बुलाकर और सबको पूर्व सूचित कर लागू की जाती है तो ‘ड्रोन सर्वे’ की जानकारी क्यों नहीं दी गयी. इस पर उन्हें धमका कर चुप करा दिया. विदित हो कि खूंटी जिला के गावों में हर जगह ग्राम सभाएं सक्रिय हैं. जिनका संचालन इलाके के मुंडा पड़हा और सरना समितियां करती हैं.

24 दिसंबर को कर्रा प्रखंड के जलटंडा बाजार मैदान में आयोजित इलाके के आदिवासियों की महती सभा से सबने हाथ उठाकर इस बात की घोषणा की कि वे ड्रोन सर्वे नहीं होने देंगे. यह प्रोपटी कार्ड और स्वामित्व योजना के नाम पर उनकी सामुदायिक जमीन-जंगल छिनने की साजिश के तहत किया जा रहा है. जब यहां पहले से ही पांचवी अनुसूची का संविधानिक प्रावधान लागू है तो यह सब क्यों हो रहा है? कई गावों से आये लोगों ने बताया कि उनकी जमीनों को ऑनलाईन और डिजिटल करने की आड़ में जमीन मालिकों का नाम उलट-पुल्टा कर हेराफेरी की जा रही है. जलटांडा के चेर्वादाग गांव के पतरस संगा ने बताया कि उनकी पुरखों के समय से रजिस्टर 2 में दर्ज 14 एकड़ जमीन को ऑनलाइन करने में उनके पुरखों और उनका नाम गायब कर किसी और का नाम दर्ज कर दिया गया है. कई दिनों से वे इसकी शिकायत ब्लाॅक के साहब व कर्मचारियों से कर रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है. वहां जुटे कई गावों के लोगों ने भी यही शिकायत की.

लोगों ने यह आशंका जताई कि एक ओर मकान का नक्शा बनाने के नाम पर उनके खेतों इत्यादि का भी ड्रोन सर्वे कर लिया जा रहा है तो दूसरी तरफ जमीन का कागज ऑनलाइन और डिजीटल बनाने की आड़ में धड़ल्ले से हेराफेरी की जा रही है. सरकार इस पर तुरत संज्ञान लेकर उचित कदम उठाये. उनकी जमीन लूट का सरकारी खेल बंद हो सके.साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार नए सिरे से हमारी बचे खुचे जंगल, जमीन और खनिज को निजी और काॅर्पाेरेट कंपनियों के हवाले करने की साजिश कर रही है. इसे सफल करने के लिए ही यहां के भाजपा सांसद और मोदी सरकार के आदिवासी मामलों के केन्द्रीय मंत्री प्रशासन को लेकर पूरा जोर लगाए हुए हैं.

सवाल है कि ‘ड्रोन सर्वे’ को लेकर झारखंड सरकार व उसके ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कोई विज्ञापित सूचना नहीं जारी करने के बावजूद खूंटी जिला प्रशासन यह सब किसके निर्देशानुसार कर रहा है? केन्द्रीय आदिवासी मंत्री ने जो आये दिन राजधानी में मीडिया के सामने मोदी सरकार की पहल को लेकर कसीदे पढ़ते हैं, इस योजना को लेकर राजधानी में कोई प्रेस वार्ता क्यों नहीं की?

चूंकि आदिवासियों से जुड़े सवालों को लेकर खूंटी का इलाका हमेशा से बेहद संवेदनशील रहा है. राज्य गठन के तुरत बाद ही कोयलकारो परियोजना के खिलाफ यहां के विस्थापित आदिवासियों द्वारा किये जा रहे शांतिपूर्ण आन्दोलन पर पुलिस फायरिंग कर 9 लोगों ने शहादत दी थी. रघुवर शासन में भी सीएनटी एक्ट में संशोधन किये जाने के विरोध में पूरा इलाका आन्दोलित हो उठा और साइको में हुई पुलिस फायरिंग में एक निर्दाेष आदिवासी की जान गई थी. इसी तरह से जब इस क्षेत्र के आदिवासियों ने अपने जंगल व जमीन की लूट को रोकने के लिए गांव-गांव में ‘पत्थलगड़ी’ का अभियान चलाया तो कुछेक अराजक तत्वों और गतिविधियों को दिखाकर पुरे अभियान को ही देशद्रोह करार देते हुए हजारों लोगों पर ‘राजद्रोह’ का फर्जी मुकदमा कर दिया गया. मोदी सरकार के आदिवासी मामलों के केन्द्रीय मंत्री और इस क्षेत्र के भाजपा सांसद अपनी सरकार नियोजित तथाकथित ‘स्वामित्व और प्रोपर्टी कार्ड योजना’ का झांसा देकर खूंटी इलाके में लागू पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को ही पिछले दरवाजे से निरस्त्र करने की कवायद में लग गए हैं. ये अकारण नहीं है कि मोदी योजना के पायलट प्रोजेक्ट की आड़ में राज्य के बेहद संवेदनशील क्षेत्र खूंटी को प्रयोग के तौर पर निशाना बनाया गया है. यह प्रयोग यदि यहां सफल हो जाता है तो फिर आसानी से झारखंड के सभी पांचवी अनुसूची आरक्षित आदिवासी इलाकों को भी चपेट में लेने में सफलता मिल जायेगी. दूसरी जगह के आदिवासियों को यही समझाकर शांत कर दिया जाएगा कि देखो, खूंटी के आदिवासियों ने तो कोई विरोध नहीं किया!

ताजा खबरों के अनुसार खूंटी जिले के सभी आदिवासी गांवों का ड्रोन सर्वे पूरा किया जा चुका है. प्रशासन अखबारों के जरिये सूचना दे रहा है कि इसी सर्वे के आधार पर लोगों को उनके मकानों का नक्शा मिलेगा. लेकिन दूसरी ओर, इस बात की भी खबरें आ रही हैं कि जबरन कराए गए ‘ड्रोन सर्वे’ को लेकर इलाके के आदिवासी भयभीत और काफी भ्रम में हैं. प्रशासन की जबरदस्ती और आदिवासी विरोधी रवैये को लेकर एक बार फिर से यहां के शांतिप्रिय आदिवासियों में क्षोभ भी पनप रहा है. इसकी आड़ लेकर कभी भी कोई अप्रिय घटना करने की साजिश रची जा सकती है और ‘स्वामित्व/प्रोपर्टी कार्ड योजना और ड्रोन सर्वे का विरोध करनेवाले आदिवासियों को पफंसाया जा सकता है. पिछले दिनों ड्रोन सर्वे और प्रोपर्टी कार्ड योजना का मुखर विरोध कर रहीं जानी मानी आन्दोलनकारी व आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच तथा आदिवासी अधिकार संघर्ष मोर्चा की केन्द्रीय संयोजन टीम सदस्य दयामनी बारला व अन्य आदिवासी एक्टिविस्टों के खिलाफ खूंटी प्रशासन ने आदिवासियों को भड़काने का आरोप भी लगाया है.

जरूरी है कि खूंटी के आदिवासी गांवों में ग्राम सभाओं की अनुमति व सहमति के बिना जारी ‘ड्रोन सर्वे ‘को जो भोले भाले आदिवासियों में भ्रम, आशंका और भय पैदा कर रहा है, फौरन रोका जाए. साथ ही इसका विरोध अथवा सवाल कर रहे ग्रामीणों को धमकाना बंद हो. पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की गारंटी हो तथा पुरे आदिवासी इलाकों में जबरिया ‘स्वामित्व और प्रोपर्टी कार्ड योजना’ लागू करने पर रोक लगाई जाए. आदिवासी जमीनों के दस्तावेजों को ऑनलाईन व डिजीटल करने की आड़ में सभी तरह की छेड़छाड़, हेराफेरी और जमीन लूट की घटनाओं पर त्वरित संज्ञान लेकर दोषियों को कड़ी सजा दी जाए तथा जमीन के पुश्तैनी मालिकों के नाम सही-सही दर्ज किये जाएं. सभी आदिवासी इलाकों में पेसा कानून लागू करने की नियमावली जल्द से जल्द बनायी जाए. रघुवर सरकार द्वारा बनाए गए ‘लैंड बैंक’ कानून को अविलम्ब रद्द किया जाए. 28 दिसंबर की शाम दयामनी बारला, प्रमचंद मुर्मू, वाल्टर कंडूलना व नदीम खान के साथ कर्रा क्षेत्र के ड्रोन सर्वे वाले इलाकों से पहुंचे आदिवासी गावों के प्रतिनिधियों की संयुक्त टीम ने झारखंड प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री से मुलाकात कर लिखित ज्ञापन दिया. मंत्री ने भी जल्द उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया.

– अनिल अंशुमन

Tribals came out against ownership