वर्ष - 31
अंक - 9
26-02-2022

अपनी मांगों को अनसुनी करने के चलते दिल्ली सरकार से निराश और गुस्साए डीटीसी श्रमिकों ने उनके झूठे वादों को बेनकाब करने के लिए उन श्रमिकों ने ‘पोल खोल’ अभियान संगठित किया. ऐक्टू से संबद्ध डीटीसी वर्कर्स युनिटी सेंटर ने इस मुहिम का नेतृत्व किया. 4 दिनों तक चला यह अभियान पटियाला, सूनम, फिरोजपुर, हुसैनवाला, अमृतसर और अन्य कई जगहों पर गया और इसके अंत में 16 फरवरी को मोहाली में एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया गया. इस अभियान के दौरान पंजाब के लोगों को दिल्ली के मुखमंत्री की वादाखिलाफी और मजदूरों के प्रति उनकी गद्दारी से अवगत कराया गया.

इस अभियान के क्रम में युनिटी सेंटर से जुड़े मजदूर पंजाब के विभिन्न हिस्सों में गए और आम लोगों से बातचीत की. अरविंद केजरीवाल खुद को मरदूर-विरोधी मोदी सरकार के विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं, लेकिन वे केंद्र सरकार की ही तरह सत्ता के मद में चूर हैं. वे चुनावों के दौरान मजदूरों से किए गए अपने सारे वादे भूल चुके हैं. वे डीटीसी के निजीकरण की प्रक्रिया तेज कर रहे हैं जिससे कई डिपो और वर्कशाॅप प्रभावित हुए हैं. अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री श्रमिकों के हितों के प्रति चिंतित नहीं हैं और उनसे किए अपने वादे से मुकर रहे हैं तो जाहिर है, पंजाब के लोग भी उनसे यही वादाखिलाफी पाएंगे.

उसी दिन, 16 फरवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अरैर भगवंत सिंह मान ने भी संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर अनेक बयान दिए. एक समानांतर संवाददाता सम्मेलन में युनिटी सेंटर के महासचिव राजेश कुमार ने कहा कि आज संत रविदास जयंती है. रविदास कहा करते थे, ‘मैं ऐसा राज चाहता हूं, जहां हर किसी को भोजन मिले और बड़े या छोटे, सभी बराबरी के साथ रहें, इसी से रविदास खुश हा सकेंगे’. लेकिन अगर ठेका मजदूरों और नियमित मजदूरों के बीच भेदभाव रहेगा तो बराबरी कैसे हो पाएगी? दिल्ली के मुख्यमंत्री को अपने चुनावी वादे पूरे करने होंगे और तमाम ठेका श्रमिकों को नियमित करना होगा.

यूनियन के सचिव और 20 वर्षों से ठेका पर काम करने वाले नरेश कुमार ने कहा, ‘अब हम पंजाब से लौटकर दिल्ली जा रहे हैं, तो दिल्ली सरकार से एक निवेदन कर रहे हैं – आप अपनी हेठी दूर कीजिए और सुनिये कि मजदूर क्या कह रहे हैं. दिल्ली के कारखानों के मजदूर न्यूनतम मजदूरी, पीएफ या बोनस नहीं पा रहे हैं; आशा और आंगनबाड़ी कर्मचारियों के लगातार प्रतिवादों के बावजूद उनकी बातें नहीं सुनी जा रही हैं; रोज-ब-रोज हो रही दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौत हो रही है, लेकिन दिल्ली सरकार मजदूर यूनियनों से बात तक नहीं करना चाहती है. अगर दिल्ली सरकार भी केंद्र सरकार के रास्ते पर चलती रही तो यकीनन वह जनता से पूरी तरह अलगाव में चली जाएगी’.