वर्ष - 31
अंक - 9
26-02-2022

डीटीसी वर्कर्स युनिटी सेंटर ने डीटीसी श्रमिकों की समस्याओं और केजरीवाल सरकार की वादाखिलाफी को लेकर 2-10 फरवरी तक मजदूरों के बीच अभियान चलाया. 10 फरवरी को डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार को चेतावनी देते हुए यह अभियान समाप्त हुआ. इस अभियान के दौरान डीटीसी के सभी डिपो पर पेस्टर लगाए गए और 24 गेट मीटिंग संगठित की गईं.

युनिटी सेंटर ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने तमाम ठेका श्रमिकों को नियमित करने जैसे अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, और न तो वह मजदूरों की अन्य मांगों के प्रति कोई ध्यान दे रही है. इससे विक्षुब्ध होकर मजदूरों ने मुख्य मंत्री की ‘शव यात्रा’ निकाल कर अपने गुस्से का इजहार किया.

यह स्पष्ट है कि दिल्ली के मुख्य मंत्री डीटीसी के मजदूरों के साथ गद्दारी कर रहे हैं. दिल्ली के मजदूरों व कर्मचारियों ने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए ‘आप’ के घोषणपत्र से काफी उम्मीदें लगा रखी थीं, जिसमें घोषणा की गई थी कि ठेका श्रमिकों की सेवा नियमित कर दी जाएगी. लेकिन केजरीवाल इस वादे से साफ मुकर गए हैं. इसके अलावा, ठेका श्रमिकों को नियमित श्रमिकों की तुलना में काफी कम वेतन पर काम करना पड़ रहा है, जो कि अवैध है. मुख्य मंत्री केजरीवाल ने डीटीसी मजदूरों के सामने दिए गए अपने भाषणों के दौरान उन श्रमिकों से किए गए अपने एक भी वादा को पूरा नहीं किया. यह गौरतलब है कि डीटीसी के प्रधान कैलाश गहलोत ही परिवहन मंत्री हैं, लेकिन वे इन मुद्दों पर बात तक करने को तैयार नहीं हैं.

श्रमिक नेताओं ने कहा कि जब दिल्ली सरकार दिल्ली के ही मजदूरों की बात सुनने को तैयार नहीं, तो मुख्य मंत्री चुनावों के ठीक पहले अन्य राज्यों में जाकर वहां की जनता के सामने झूठे वादे क्यों कर रहे हैं? स्पष्ट हके कि उनके वादे खोखले ही साबित होंगे और वे उसी तरह वहां की जनता के साथ भी गद्दारी करेंगे, जैसे कि उन्होंने दिल्ली के मजदूरों के साथ किया है.

डीटीसी वर्कर्स युनिटी सेंटर के महासचिव राजेश ने डीटीसी को तेजी से बर्बादी की तरफ से धकेला जा रहा है. यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि केंद्र और राज्य सरकारें निजीकरण-ठेकाकरण की नीतियों को बढ़ावा दे रही हैं. मोदी सरकार एयर इंडिया से लेकर भारतीय रेल, तमाम सार्वजनिक उद्यमों को बेच रही हैऋ और अब दिल्ली सरकार डीटीसी को धीरे-धीरे खत्म कर सार्वजनिक परिवहन को निजी हाथों में सौंप रही है. केंद्र सरकार मजदूर-विरोधी लेबर कोड को लागू करने पर उतारू है; और दिल्ली के मुख्य मंत्री इस कोड के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं. देश भर में मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और असमानता की समस्या को हल करने के बजाय सरकारी-सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम रोजगारों को ठेका पर दिया जा रहा है. डीटीसी ठेका मजदूरों के बल पर ही अपनी बसों को चला पा रहा है, किंतु उनको समान काम के लिए समान वेतन भी नहीं दिया जा रहा है.

काॅमनवेल्थ गेम के समय खरीदी गई बसें अब जर्जर हो चुकी हैं, लेकिन सराकर डीटीसी के लिए नई बसें नहीं खरीद रही है. डीटीसी वर्कशाॅप को बंद कर दिया गया है और बस डिपो निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं. इस तरह से तो डीटीसी लंबे समय तक चल ही नहीं सकता है, और इसके खात्मे के लिए वर्तमान सरकार पूरी तरह जिम्मेदार होगी.

ऐक्टू के दिल्ली राज्य अध्यक्ष संतोष राॅय ने कहा कि इतने लंबे अभियान के बावजूद न तो प्रबंधन ने और न ही राज्य सरकार ने वार्ता के लिए यूनियन को बुलाया. पिछले समयों में भी डीटीसी के श्रमिकों ने लंबी और सफल लड़ाइयां लड़ी हैं. अगर डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार अपने हठीले रवैये को नहीं छोड़ते हैं तो हम निश्चय ही इस मजदूर-विरोधी सरकार के सच को सामने लाएंगे. पिछले मौकों पर डीटीसी श्रमिकों ने बाध्य होकर कांग्रेस सरकारों के खिलाफ मुहिम चलाई थी; इस बार हम पंजाब जाने और वहां ‘आप’ सरकार के खिलाफ अभियान चलाने को बाध्य हो जाएंगे. हमने प्रबंधन और मुख्य मंत्री को इसके बारे में खबर कर दी है. उन्होंने यह भी कहा कि हम डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार के साथ इस मामले में वार्ता करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनकी ओर से अभी तक कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है.