वर्ष - 31
अंक - 33
19-08-2022

विश्व आदिवासी अधिकार दिवस के अवसर पर 9 अगस्त 2022 को ‘आदिवासी संघर्ष मोर्चा’, झारखंड के द्वारा आदिवासियों के अधिकारों को बहाल करने की मांग पर रामगढ़ शहर के मेन रोड में एक मार्च निकाला गया. मार्च में आदिवासी महिला-पुरुष अपनी वेश-भूषा में मांदर की ताल के साथ गीत-नृत्य करते हुए नारे लगा रहे थे – जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण का सरंक्षण करो; आदिवासियों को जल,जंगल, जमीन और खनिजों में अधिकार बहाल करो; आदिवासियों के धार्मिक स्थलों, पशुओं के चरागाह आदि सार्वजनिक जमीनों पर अतिक्रमण बंद करो; आदिवासियों की पहचान के लिए आदिवासी धर्म कोड लागू करो; आदिवासियों की हड़पी गई तमाम जमीनें वापस करो; आदिवासियों के धर्म, संस्कृति, परंपरा, स्वशासन व्यवस्था और भाषा के सरंक्षण व विकास की गारंटी करो; संतालों के धार्मिक स्थल लुगु पहाड़ बचाओ; आदि.

आदिवासी संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक देवकीनंदन  लक्ष्मण बेदिया, सरयू बेदिया, नागेश्वर मुंडा, नीता बेदिया, कांति देवी, लालचंद बेदिया, लाली बेदिया, लाका बेदिया, फूलचंद करमाली, बृजनारायण मुंडा, नरेश बड़ाइक, मालती कुमारी, ललकी देवी, भुनेश्वर बेदिया, देवानंद गोप, प्रेमसागर महतो आदि के नेतृत्व में निकले इस मार्च में सैकड़ों लोग शामिल थे. यह मार्च अंत में सुभाष चौक के पास सभा में तब्दील हो गया, जिसको प्रमुख रूप से देवकीनंदन बेदिया, सुभाष बेदिया और भुनेश्वर बेदिया ने संबोधित किया. देवकीनंदन बेदिया ने विश्व आदिवासी दिवस की स्थापना के बारे विस्तार से बताया और आदिवासियों-मूलवासियों एवं उनके संगठनों को एकताबद्ध होने का आह्वान किया. वहीं सुभाष बेदिया ने आदिवासी अधिकारों के बारे में और भुनेश्वर बेदिया ने 9 अगस्त के क्रांति दिवस के बारे में विस्तार से बातें रखीं. अंत में मोर्चा की रामगढ़ इकाई की ओर से जिला की उपायुक्त के माध्यम से भारत की राष्ट्रपति के नाम आदिवासियों के अधिकारों को संबंधित 18-सूत्र मांगपत्र प्रेषित किया गया.

इस ‘मोर्चा’ की ओडिशा इकाई ने उसी दिन रायगडा जिला कार्यालय का घेराव किया और प्रशासन की लापरवाही के चलते जिले में फैल रही हैजा महामारी के मुद्दे को उठाया. पुलिस व प्रशासन की मनमानी और धमकियों के बावजूद जुझारू मार्च निकाला गया. पुलिस ने मार्च को बीच रास्ते में ही रोक दिया. एक पुलिस अफसर ने भाकपा(माले) कार्यकर्ता मधुसूदन की गिरेगान पकड़कर ध्क्का दिया, मोबाइल छीन लिय गए, लाइडस्पीकर बंद करवा दिया, उनकी जाति पूछी और कानून के बारे में नसीहत दे डाली. इसपर का. मधुसूदन ने कहा, “मैं एक दलित हूं, बाबा साहब अंबेडकर का वारिस हूं, इसीलिए मुझे संविधान का पाठ मत पढ़ाइए.”

रैली में शामिल लोगों ने लाइडस्पीकर के बगैर ही नारे लगाये और जिला कार्यालय का गेट बंद कर दिया. कुछ देर के बाद एडीएम बाहर निकले, उन्होंने ज्ञापन लिया और पुलिस को भी सारे मोबाइल लौटाने पड़े, तब जाकर गेट खोले जा सके. मार्चा के नेताओं ने कहा कि हैजा महामारी की रोकथाम और महामारी से मारे गए लोगों के परिजनों को समुचित मुआवजा के लिए फौरन कदम उठाए जाएं, नहीं तो आन्दोलन को और तेज किया जाएगा.

इस दिन आडिशा के गुनुपुर में भी पारंपरिक नृत्य-गीत के साथ एक बड़ा जुलूस निकाला गया और गुनुपुर अनुमंडलाधिकारी कार्यालय के सामने प्रतिवाद सभा आयोजित की गई. भारत की राष्ट्रपति को संबोधित एक 16-सूत्र ज्ञापन भी सौंपा गया. ज्ञापन में जनजातीय समुदायों की बुनियादी समस्याओं, जैसे कि जल, जंगल, जमीन, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, पेय जल व सफाई आदि को हल करने और साथ ही प्राकृतिक संसाधनों की कॉरपोरेट लूट पर रोक लगाने की मांग उठाई गई थी जिसके चलते उनकी संस्कृति पर खतरा मंडरा रहा है. ‘मोर्चा’ के नेता तिरुपति गोमांगो इस प्रतिवाद कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे थे.

9 अगस्त के ही दिन गुजरात के करपाडा में आदिवासी संघर्ष मोर्चा की गुजरात इकाई ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन की 80वीं वर्षगांठ के साथ-साथ विश्व आदिवासी दिवस भी मनाया. आदिवासी लोगों की एक बड़़ी जुटान संगठित की गई और जोरदार नारा लगाया गया – “तैयार हो जाओ, तीर-धनुष उठाओ, फासीवाद को ध्वस्त करो, अपना अधिकार और मर्यादा हासिल करो”.

इस मौके पर विभिन्न वक्ताओं ने आदिवासी परंपराओं, पहचान और अधिकारों के बारे में अपने-अपने विचार रखे; और भारत की आजादी के लिए जिंदगी कुर्बान करने वाले असंख्य शहीदों को श्रद्धांजलि दी. उन वक्ताओं ने मोदी सरकार की आदिवासी-विरोधी साजिशों की भर्त्सना की और ‘मोदी हटाओ, आदिवासी बचाओ’ अभियान को तेज करने का संकल्प लिया. आदिवासी संघर्ष मोर्चा की तरफ से एक मांगपत्र भी सौंपा गया.

सभा को ‘मोर्चा’ के संयोजक का. कमलेश, आरवाइए नेता अस्मित पाटनवाडिया, आनंद भाई, मोहन भाई, हरेश वराली, वनिता बेन जयवंती बेन, आयुष, रामचंद्र कुट्टी, विट्ठल भाई समेत कई अन्य नेताओं ने संबोधित किया.