वर्ष - 34
अंक - 2
04-01-2025

सावित्रीबाई फुले का जन्म सन् 1831 में पुणे के नजदीक सतारा जिले के नायगांव में हुआ था. 9 साल की उम्र में इनकी शादी ज्योति राव फुले से हुई. उस समय ज्योति राव फुले की उम्र 13 वर्ष थी. पति को पढ़ता देख कर सावित्रीबाई के मन में भी पढ़ने की इच्छा जगी. सावित्रीबाई की रुचि देखकर ज्योति राव ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया लेकिन उस समय औरतों की शिक्षा पर मनाही थी इसलिए ब्राह्मणवादियों ने उनका विरोध किया. कहा गया कि इससे तो धर्म ही खतरे में पड़ जाएगा. उनके ससुर को धमकी दी गई कि अपनी बहू को पढ़ने से रोको नहीं तो तुम्हें समाज बहिष्कृत कर दिया जाएगा. ज्योति राव के पिता ने अपने बेटे पर दबाव डाला कि वह सावित्रीबाई को पढ़ने से रोके लेकिन ज्योति राव ने इससे इनकार कर दिया. नतीजतन पति-पत्नी को घर से निकाल दिया गया. ऐसे समय में उनके एक मित्र उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में जगह दी. उस्मान शेख के घर पर रहते हुए ही सावित्रीबाई फुले और उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने शिक्षा पूरी की. टीचर्स ट्रेनिंग किया और लड़कियों को पढ़ाने का काम शुरू किया.

सावित्रीबाई और ज्योति राव ने मिलकर 1848 में पहला स्कूल खोला जिसमें सभी समुदाय की लड़कियों की शिक्षा का इंतजाम था. इसे लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है. लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए वे घर-घर जाकर लड़कियों के माता-पिता को प्रेरित करतीं. कई बार उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन वे हिम्मत नहीं हारीं. जब सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाने स्कूल जातीं उस समय उन पर गोबर, मिट्टी और पत्थरभी फेंके गये. स्कूल में जाकर वह अपनी साड़ी बदलतीं और लड़कियों को पढ़ाती थीं फिर वही गंदी साड़ी पहनकर वापस घर आती थीं. सावित्रीबाई और ज्योति राव फुले ने मिलकर महाराष्ट्र में 18 स्कूल खोले.  

सावित्रीबाई फुले एक समाज सुधारक और कवि भी थीं. उन्होंने अनेक कविताएं लिखी हैं. लड़कियों की शिक्षा और जाति प्रथा के कारण दलित महिलाओं पर अत्याचार व भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं को अधिकार देने के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया. उन्होंने एक आश्रम खोला जिसमें बाल विधवा लड़कियां, विधवा महिलाएं, घर से निकाल दी गई महिलाएं और बलात्कार की शिकार बनी महिलाएं रहती थीं, इन सबको उन्होंने शिक्षा दी और आत्मनिर्भर बनाया. परिवार के अत्याचार से पीड़ित एक ब्राह्मण गर्भवती महिला जो आत्महत्या करने जा रही थी उसे ज्योति राव ने बचाया. उस महिला ने उनके ही आश्रम में अपने बच्चे को जन्म दिया.

ज्योतिबा फुले ने दलितों-अतिपिछड़ों के साथ भेदभाव और उन्हें गुलाम बनाए रखने वाले विचारों का जबरदस्त विरोध किया. उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उनकी मृत्यु के बाद सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज का काम संभाला और समाज सुधार के काम को आगे बढ़ाया. 1897 में जब प्लेग की महामारी फैली, सावित्रीबाई फुले प्लेग रोगियों की सेवा में लगी रहीं. प्लेग रोगियों के संपर्क में आने के कारण वह भी प्लेग की शिकार हुईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया.

फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ था. मृत्यु अक्टूबर 1900 में हुई.

फातिमा शेख के बड़े भाई उस्मान शेख प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे इसलिए जब सावित्रीबाई फुले और ज्योति राव फुले को उनके पिता ने घर से निकाल दिया था और पुरोहितों और समाज के वर्चस्ववादियों के डर से हिंदू समाज का कोई व्यक्ति उनकी मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था वैसे समय में उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में जगह दी और स्कूल खोलने के लिए जमीन  भी दी. उस समय फातिमा शेख भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आगे आईं और सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने एक साथ टीचर्स ट्रेनिंग की. इस तरह फातिमा शेख पहली मुस्लिम शिक्षिका बनीं. उस दौर में जबकि पर्दा प्रथा थी. मनुस्मृति के अनुसार महिलाओं और दलितों को पढ़ने की मनाही थी, दलित अति-पिछड़ी जाति की महिलाओं पर अत्याचार सामान्य बात थी, उच्च जाति की महिलाओं को भी घर की चारदिवारी में गुलाम रखा जाता था. बाल विवाह, विधवा उत्पीड़न होता था, वैसे समय ये दोनों महिलाएं एक साथ समाज का मुकाबला करने के लिए आगे आईं.

फातिमा शेख ने स्कूलों के संचालन में सावित्रीबाई के साथ-साथ काम संभाला. 1856 में जब ज्योति राव बीमार पड़े तब फातिमा शेख ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह अकेले स्कूल का काम संभाल लेंगी और तब सावित्रीबाई स्कूल से मुक्त होकर ज्योति राव फुले की देखभाल में लग सकीं.

हम समझ सकते हैं कि उस दौर में इन दोनों महिलाओं को समाज का कितना विरोध झेलना पड़ा होगा. लेकिन, ये दोनों सखियां हिंदुस्तान की महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ीं और समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वासों से महिलाओं को बाहर निकालने के लिए अपना जीवन लगा दिया.

आज जबकि हमारे देश में पुरातनपंथी विचारों वाली, मनुस्मृति को मानने वाली भाजपा की सरकार है जो हिंदू-मुस्लिम महिलाओं में भेद करती है तथा दलित और मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को संरक्षण देती है तब हमें हिंदू-मुस्लिम महिलाओं की एकता का झंडा बुलंद करना है और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का संकल्प लेना है.

– मीना तिवारी

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