डॉ. मनमोहन सिंह एक मृदुभाषी और शायद अनायास बने कांग्रेस के प्रधानमंत्री जो अल्पसंख्यक समुदाय से बने एकमात्र प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने दस साल तक एक स्थिर गठबंधन सरकार में शासन चलाया, के रूप में याद किए जाएंगे. एक आर्थिक प्रशासक के तौर पर, पहले पीवी नरसिम्हा राव के वित्तमंत्री के तौर पर और फिर यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. सिंह आर्थिक और विदेश नीति के क्षेत्र में कई बड़े बदलावों के वाहक बने, जिसमें नेहरूवादी काल की मिलीजुली अर्थव्यवस्था से खुले बाजार की नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था में, और गुटनिरपेक्षता की नीति से अमेरिका के रणनीतिक साझेदार के तौर पर भारत का संक्रमण हुआ.
यूपीए-1 सरकार के दौर में उल्लेखनीय वाम समर्थन के साथ ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून और वनाधिकार कानून जैसे कई प्रगतिशील कानून आए, जिनके कारण जबरदस्त अमीरपरस्त, कॉरपोरेटपरस्त नीतियों के माहौल के बीच गरीबों के लिए कुछ सुरक्षा घेरा बना. यह अजीब विरोधाभास है कि मनमोहन सिंह सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून जैसे नागरिक पक्षधर उपायों के लिए याद किए जाएंगे तो साथ ही ऐसी कार्यवाहियों के लिए भी जिन्होंने नागरिक स्वतंत्रता का उल्लेखनीय रूप से क्षरण किया. भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद लगातार दूसरे कार्यकाल में सत्ता में वापस आने के बाद उनकी सरकार ने यूएपीए में संशोधन और छत्तीसगढ़ में ऑपरेशन ग्रीन हंट की तरफ कदम बढ़ाए, सिंह ने स्वयं भी नक्सलवाद को सबसे बड़ा आंतरिक खतरा बताया जबकि फासीवादी सांप्रदायिक जहर और हिंसा पूरे देश में फैल रही थी.
2014 तक आते-आते यूपीए सरकार ऐसे बड़े भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में आ गयी – जो कभी सिद्ध नहीं हो पाये, वहीं बेलगाम नव-उदरवाद के पक्षकारों की ओर से मनमोहन सिंह पर नीतिगत पक्षाघात के आरोप भी लगे. कॉरपोरेट इण्डिया और आरएसएस ने इस अवसर का इस्तेमाल सांप्रदायिक नरसंहार व न्यायेत्तर शासन के गुजरात मॉडल को अखिल भारतीय स्तर पर लागू करने के लिए किया. तब से देश सतत फासीवादी हमले के साये तले कराह रहा है जो अपने साथ अभूतपूर्व किस्म का क्रोनी पूंजीवाद, संविधान पर निरंतर हमला और नागरिकों के अधिकारों का क्षरण लिए हुए है.
पूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने प्रमुख रूप से आर्थिक कुप्रबंधन के मसलों पर बोलना जारी रखा. राज्यसभा में नोटबंदी पर उनकी टिप्पणी, जिसमें उन्होंने इसे भारी तबाही, संगठित लूट और कानूनी डकैती का खुला मामला बताया था. आज भी उनके शब्द गूंज रहे हैं क्यूंकि अर्थव्यवस्था नोटबंदी, जीएसटी और लंबे अनियोजित लॉक डाउन के लगातार प्रहारों से अभी भी उबर नहीं सकी है.
जब हम संविधान और भारतीय गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहे हैं, राष्ट्र मनमोहन सिंह को ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में याद रखेगा, जो नेहरू की आर्थिक और विदेश नीतियों से तो अलग हट गए लेकिन विविधता, धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के संवैधानिक उसूलों को बुलंद रखने के मामले में नेहरूवादी विरासत के दृढ़ हिमायती बने रहे. भाकपा(माले) डॉ. सिंह के परिजनों, उनके सभी मित्रों व प्रशंसकों के प्रति हृदय की गहराइयों से संवेदना प्रकट करती है.
केन्द्रीय कमेटी, भाकपा(माले) लिबरेशन
नई दिल्ली,
26 दिसंबर 2024