वर्ष - 28
अंक - 48
16-11-2019

विगत 8-9 नवंबर 2019 को पटना के गेट पब्लिक लाइब्रेरी मैदान में अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) का 6ठा बिहार राज्य सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. सम्मेलन के पहले दिन राज्य के विभिन्न इलाकों से खेत-ग्रामीण व मनरेगा मजदूरों का भारी जुटान हुआ. विदित हो कि इसी दिन अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर फैसला आया था, और उसको लेकर पूरे बिहार में हाईअलर्ट किया गया था. जगह-जगह प्रशासन ने रैली को बाधित करने का भी प्रयास किया. पटना में भी आयोजन को लेकर प्रशासन द्वारा समस्याएं उत्पन्न की गईं, पिफर भी रैली में हजारों की तादाद में गरीब-गुरबे शामिल हुए और उन्होंने मंदिर-मस्जिद के बजाए शिक्षा-रोजगार, भूमि-आवास की मांगों को बुलंद किया. सम्मेलन में महिलाओं की भी बड़ी संख्या शामिल हुई. ‘नफरत नहीं रोजगार चाहिए, बराबरी का अधिकार चाहिए’ और ‘मनरेगा में कम से कम 200 दिन काम व प्रति दिन 500 रु. प्रति दिन न्यूनतम मजदूरी’ की केंद्रीय मांगों के साथ-साथ भूमिहीनों व गृहविहीनों के लिए नया रजिस्टर तैयार करने की भी मांग उठाई गई. पूरा गर्दनीबाग इलाका लाल झंडों से पट गया था. रैली में मुख्य वक्ता के बतौर भाकपा(माले) महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य शामिल हुए. उनके साथ भाकपा-माले, खेग्रामस व अन्य जनसंगठनों के वरिष्ठ नेता भी मंच पर उपस्थित थे. मंच का नामाकरण खेग्रामस व सीमांचल के लोकप्रिय नेता शहीद काॅ. सत्यनारायण यादव-काॅ. कमलेश्वरी ट्टषिदेव और वैशाली में संस्थागत हत्या की शिकार हुई महादलित छात्रा डीका के नाम पर किया गया था. दिन के 12 बजे लाइब्रेरी मैदान में सभा आरंभ हुई. सभा की शुरूआत में शहीद साथियों को श्रद्धांजलि दी गई और जनकवि निर्मोही जी ने शहीद गीत प्रस्तुत किया.

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सभा को संबोधित करते हुए का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज से तीन साल पहले नरेन्द्र मोदी ने देश में अचानक नोटबंदी कर दी थी. फिर आधा-अधूरा जीएसटी लेकर आए. लगातार उनकी सरकार अंबानी-अडानी और बड़े पूंजीपतियों की ही सेवा में लगी हुई है. यही कारण है कि आज देश भीषण मंदी के दौर से गुजर रहा है. मंदी का असर ऐसा है कि पांच रुपए वाले बिस्किट पर भी संकट आ गया है. राशन व्यवस्था नहीं चल रही है. भूख से लगातार मौतें हो रही हैं. न जेब में पैसे हैं, न मनरेगा में काम है, न मजदूरी है.

यह मंदी किसी ‘प्राकृतिक’ नहीं है. यह सिर्फ इसलिए है कि देश की सरकार केवल पूंजीपतियों के लिए ही चिंतित है. मजदूर-किसानों की कहीं कोई बात नहीं हो रही है. सरकार ने तो जमीन, मजदूरी, रोजगार के सवाल पर बात करना छोड़ ही दिया है वह चाहती हैं कि हम भी इसपर चर्चा न करें, देश में केवल हिंदू-मुस्लिम विवाद या फिर मंदिर-मस्जिद पर ही चर्चा हो. इस मंदी से सब लोग परेशान हैं. छोटे पूंजीपतियों से लेकर व्यवसायी तक. मोदी जी ने मंदी दूर करने के नाम पर रिजर्व बैंक का 1 लाख 76 हजार करोड़ पैसा निकाल लिया. उसका इस्तेमाल आर्थिक संकट के समाधान में होना चाहिए था. वृद्धा, विधवा, विकलांगों को कम से कम 3000 रु. प्रति माह पेंशन मिलनी चाहिए थी. यह पैसा यदि गरीबों के पास आता तो वह बाजार में खर्च होता. मनेरगा में साल भर रोजगार और 500 रु. न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की जाती. लेकिन सरकार वह पैसा मजदूरी अथवा पेंशन में खर्च करने की बजाए उलटे पूंजपतियों को ही दे रही है. इससे आम लोगों का संकट और बढ़ रहा है. नोटबंदी के बाद देश में बैंकबंदी किया जा रहा है. बैंकों में जमा पैसा हमारी पहुंच से दूर हो रहा है.

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उन्होंने कहा कि असम के बाद भाजपा-आरएसएस पूरे देश में एनआरसी लागू करना चाहते हैं. 1951 के पहले के कागजात मांगे जा रहे हैं, अब उसके आधार पर नागरिकता की सूची बनेगी. जबकि कागजी तौर पर ही सही, बिहार व अधिकांश राज्यों में जमींदारी उन्मूलन 1951 के बाद हुआ है. यानी कि यह सरकार हमें अब जमींदारी के दौर में ले जाना चाहती है. अधिकांश गरीबों के पास आज भी जमीन के कोई कागजात नहीं है. इसलिए इस एनआरसी का पूरे देश में जबरदस्त विरोध होना चाहिए क्योंकि इसकी सर्वाधिक मार दलित गरीबों, मजदूर-किसानों पर ही पड़ने वाली है.

उन्होंने कहा कि अयोध्या विवाद पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराया जाना गलत था. अतः जिन्होंने बाबरी ढांचा गिराया उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए. हमें किसी मंदिर-मस्जिद विवाद में नहीं पड़ना है; बल्कि शिक्षा, रोजगार, जमीन, राशन-किरासन, मजदूरी, पेंशन आदि सवालों पर अपने आंदोलन को आगे बढ़ाना है. उन्होंने कहा कि अयोध्या में पौने तीन एकड़ जमीन का मामला था. बिहार में आज भी सीलिंग से अधिक 21 लाख एकड़ जमीन है. यह मामला कब तक सुलझेगा? बंद्योपाध्याय कमिटी ने इस जमीन को गरीबों में बांटने की अनुशंसा की थी. इस जमीन को गरीबों में यदि बांट दिया जाए, तो हर भूमिहीन परिवार को एक-एक एकड़ जमीन मिल जाएगी.

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का. दीपंकर ने कहा कि आज बिहार में भी सांप्रदायिक ताकतों की चांदी है. पर्व-त्योहार की आड़ में दंगा-फसाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. हाल ही में जहानबााद में हमने देखा कि किस प्रकार अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमले हुए. छठ के मौके पर मधेपुरा के डीएम ने सांप्रदायिक उन्माद बढ़ाने वाले बयान दिए. हमें इन तमाम चीजों से सावधान रहना है. बिहार में विधानसभा चुनाव आने वाला है. इस चुनाव में गरीबों को अपनी दावेदारी दिखलानी होगी. बिहार के गरीबों के विकास से ही बिहार का विकास होगा. चुनाव जनता के मुद्दों पर होने चाहिए. भाजपा-आरएसएस द्वारा फैलाए जा रहे झूठ-अफवाह व झांसे में हमें नहीं आना है. इधर-उधर पाला बदलने वाली पार्टियों से भी हमें सतर्क रहना है.

इससे पहले माले खेग्रामस के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि आज बिहार में लगभग 50 लाख गरीब परिवारों को उजाड़ा जा रहा है. राशन कार्ड को आधार और पाॅस से जोड़कर गरीबों को अनाज से दूर रखने की साजिश चल रही है. आज मनरेगा योजना केा लागू करने में बिहार फिसड्डी राज्यों की सूची में शामिल है. यह योजना अफसरों और ठेकेदारों की लूट की योजना बन गई है. जिन्होंने कभी एक टोकरी मिट्टी नहीं काटा व ढोया, उनके नाम पर रुपये निकल रहे हैं. खाद्य सुरक्षा कानून में भी भारी अनियमितता है. जरूरतमंदों का नाम राशन सचूनी में नहीं है. अमीर उसका लाभ उठा रहे हैं. इस पर अविलंब रोक लगनी चािहए.

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सभा को संगठन के सम्मानित राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद, किसान महासभा के महासचिव का. राजाराम सिंह, विधायक दल के नेता का. महबूब आलम, विधायक सत्यदेव राम, विधायक सुदामा प्रसाद, आशा कार्यकर्ता संघ (गोप गुट) की राज्य अध्यक्ष शशि यादव, रसोइया संघ की नेता सरोज चौबे, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी आदि नेताओं ने भी संबोधित किया. सभा की अध्यक्षता खेग्रामस के बिहार राज्य अध्यक्ष वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता व संचालन राज्य सचिव गोपाल रविदास ने किया. मंच पर भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता का. स्वदेश भट्टाचार्य, बिहार राज्य सचिव का. कुणाल, लोकयुद्ध के संपादक का. बृज बिहारी पांडेय, का. केडी यादव, का. आरएन ठाकुर, का. अरूण सिंह, का. शिवसागर शर्मा, का. पंकज सिंह आदि नेता उपस्थित थे.

8 नवंबर की शाम से संगठन का प्रतिनिधि सत्र आरंभ हुआ. प्रतिनिधि सत्र को भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता का. स्वदेश भट्टाचार्य और पार्टी के बिहार राज्य सचिव का. कुणाल ने संबोधित किया. सम्मेलन में लगभग एक हजार डेलीगेट शामिल हुए और खेग्रामस को अगले सम्मेलन तक बिहार के समस्त ग्रामीण मजदूरों का प्रतिनिधि संगठन बनाने का लक्ष्य लिया. इस सम्मेलन की खासियत यह रही कि इसमें अलग से मनरेगा मजदूर सभा का गठन किया गया. खेग्रामस ने अगले सत्र के लिए 145 सदस्यों की राज्य परिषद और 45 सदस्यों की कार्यकारिणी का गठन किया है. विधायक सत्यदेव राम संगठन के सम्मानित अध्यक्ष, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता राज्य अध्यक्ष और गोपाल रविदास सचिव के बतौर चुने गए.

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सम्मेलन से पारित प्रस्ताव

सम्मलेन ने भाजपा-आरएसस द्वारा पूरे देश में एनआरसी थोपने के प्रयासों का जोरदार विरोध में भूमिहीनों-गृहविहीनों के राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने का विरोध किया तथा आवास के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने, भूमि व वनाधिकार कानून के तहत वनवासियों के अधिकार को सुनिश्चित करने, अंबानी-अडानी परस्त मोदी सरकार द्वारा मालिकों के पक्ष में किए गए श्रम कानूनों में संशोधनों को खारिज करते हुए 8 जनवरी 2020 को मजदूर वर्ग की साझी हड़ताल को सफल बनाने, सरकार से वैकल्पिक आवास की व्यवस्था करने, दलित-गरीाबों को उजाड़ने वाले तमाम नोटिस अविलंब वापस लेने तथा नदी-तालाब-पईन-नहर आदि जल निकायों के संरक्षण को लेकर कानून बनाने की मांग संबंधी प्रस्ताव पारित किए.

सम्मेलन ने बिहार में खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन में विफलता के मद्देनजर दलित-गरीब परिवारों के नाम छूटने के लिए सीओ और मासिक राशन नहीं मिलने पर मार्केटिंग और फीसर को दोषी ठहराने व दंडित करने की मांग की और गरीबों के बच्चे-बच्चियों के शिक्षा अधिकार के साथ राज्य सरकार की अनदेखी और अवहेलना के प्रति सम्मेलन ने रोष जाहिर किया. समान स्कूल प्रणाली लागू करने और शिक्षा के निजीकरण-बाजारीकरण पर उठ रही आवाज के प्रति सम्मेलन ने एकजुटता प्रदर्शित किया.

सम्मेलन ने मनरेगा में मजदूर के बदले मशीन से काम करवाने व मनरेगा राशि की फर्जी निकासी पर रोक लगाने, मनरेगा मजदूरों को राज्य में तय न्यूनतम मजदूरी 277 रुपये तत्काल देने और गरीब हितैषी योजनाओं के क्रियान्वयन में व्याप्त लूट व अनियमितता पर विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करने, बिहार के बुजुर्गों, विकलांगों को लंबित पेंशन का भुगतान करने व इस योजना का लाभ सभी को देने, कृषि मजदूरों समेत तमाम कर्मियों के लिए न्यूनतम मजदूरी कानून लागू करने और आशा, कुरियर, रसोइया, शिक्षा उत्प्रेरक आदि ठेका-नियोजन-प्रोत्साहन में लगे तमाम कर्मियों को नियमित करने तथा न्यूनतम मजदूरी आधारित वेतन देने की मांग की.

खेग्रामस के 6ठे राज्य सम्मेनल से संगठन को राज्य के समस्त ग्रामीण गरीबों का प्रतिनिधि संगठन बनाने का आह्वान किया गया और अगले सम्मेलन तक खेग्रामस को राज्य के सभी जिलों, राज्य के 300 से ज्यादा प्रखंडों के 5000 पंचायतों और 10000 गांवों तक विस्तार दिया जाएगा. सम्मेलन ने मौजूदा 11 लाख की सदस्यता को 20 लाख करने और नवंबर माह में ग्रामीण गरीबों की ज्वलेत मांगों पर प्रखंडों पर प्रदर्शन-घेराव आंदोलन चलाने का संकल्प लिया गया.

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मनरेगा मजदूर सभा का गठन

खेग्रामस के 6ठे राज्य सम्मेलन से मनरेगा मजदूरों के लिए अलग से मनरेगा मजदूर सभा का गठन किया गया. संगठन के पहले अध्यक्ष के बतौर काॅमरेड पंकज सिंह और सचिव के बतौर काॅमरेड दिलीप सिंह का चुनाव किया गया. काॅ. धीरेन्द्र झा इस सभा के मुख्य संरक्षक होंगे. काॅ. वैद्यनाथ यादव, जितेन्द्र राम, मनमोहन, युगल किशोर ठाकुर, मेवालाल राजवंशी, मो. करीम सहित 30 सदस्यों की मनरेगा सभा की राज्य कमिटी का भी गठन किया गया. यह कमिटी मनरेगा मजदूरों के सवालों को प्रमुखता से उठाएगी.

संगठन की संबद्धता खेग्रामस व ऐक्टू दोनों से होगी. गांव से लेकर राज्य स्तर पर इसके ढांचे को निर्माण किया जाएगा . इसके प्रमुख उद्देश्यों में है: (1). मनरेगा कानून ग्रामीण मजदूरों (महिला-पुरुष) का संवैधानिक अधिकार है. इसको लेकर मजदूरों को जागरूक बनाना और इस कानून की रक्षा व क्रियान्वयन के लिए ग्रामीण मजदूरों को एकताबद्ध करना (2). मनरेगा में दैनिक मजदूरी न्यूनतम 500 रु. करने और 200 दिन कार्यदिवस के लिए संघर्ष करना (3). मनरेगा मजदूरों के सामाजिक सुरक्षा, पेंशन और आवास अधिकार के लिए संघर्ष करना (4). महिला मनरेगा मजदूरों की सुरक्षा, सम्मान एवं अन्य स्त्राी अधिकारों के लिए संघर्ष करना (5). कार्यस्थल पर पानी और अन्य सुविधाओं को अनिवार्य बनाने के लिए आवाज उठाना (6). मजदूरों के व्यापक संघर्ष के साथ एकताबद्ध होना, मजदूर विरोधी सत्ता-सरकार के खिलाफ संघर्ष में हिस्सा लेना. मनरेगा मजदूरों का पंचायत, प्रखंड, जिला और राज्य स्तर पर श्रम विभागों में आधिकारिक भागीदारी की गारंटी के लिए संघर्ष करना.