वर्ष - 28
अंक - 37
31-08-2019

 

फिर आया है फासीवाद
फिर आया है घिनौना फासीवाद हमारे घर में
नया हिटलर समय पर फटकार रहा है चाबुक
दर्द से बोझिल हो गई है चारों तरफ की हवा
मौसम बेरंग होकर दुःख से रुठ गए हैं
हृदय की भाषाएं उन्मुक्त होने के लिए रो-रोकर हृदय में मर रही हैं
आंखों में सूख चुके हैं आंसू अपने आप ही
फिर आया है घिनौना फासीवाद हमारे घर में
हमारे समय को तहस-नहस कर हमारे ही आंगन में
आकर खड़ा हुआ है नया हिटलर
हत्या करने के लिए इंसानियत की.

(अनुवाद-दिनकर कुमार)