कोलकाता के लालबाजार पुलिस लाॅकअप में कामरेड चारु मजुमदार की मृत्यु के बाद पचास वर्ष बीत चुके हैं. उस समय, भारतीय राज्य ने राहत की बड़ी सांस जरूर ली होगी – यह सोचते हुए कि उनकी मौत से नक्सलबाड़ी के बाद पूरे भारत में फैल जाने वाली क्रांतिकारी लहर का अंत हो जाएगा. लेकिन पांच दशक के बाद, जब मोदी हुकूमत विरोध की हर आवाज को दबा देने का प्रयास कर रही है, तब उसे इस विरोध को दंडित करने के लिए ‘अरबन नक्सल’ शब्द को गढ़ना पड़ा है. स्पष्ट है कि नक्सलबाड़ी और चारु मजुमदार का हौवा उनकी मृत्यु के पांच दशक बाद भी भारतीय शासकों का पीछा नहीं छोड़ रहा है.