वर्ष - 28
अंक - 9
16-02-2019

सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव को न्यायालय की अवमानना के अपराध में दंडित किया है : खास तौर पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से आदेश दिये जाने के बावजूद उसका उल्लंघन करके मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले की जांच कर रहे प्रभारी अधिकारी का स्थानान्तरण करने के लिये. ज्ञात हो कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में 40 से अधिक लड़कियों को एक शेल्टर होम के अंदर सुनियोजित ढंग से यौन शोषण का शिकार बनाया जाता था. यह सर्वविदित है कि जद(यू)-भाजपा से नजदीकी रखने वाले जाने-माने राजनेता, जिनकी बिहार व केन्द्र में सत्तारूढ़ सरकारों तक पहुंच है, अपराधियों का बचाव करने की कोशिश करते रहे हैं. अब ऐसा लगता है कि सीबीआई में तैनात मोदी सरकार के कठपुतली अफसरान यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में चल रही जांच-प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं!

सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को मोदी सरकार द्वारा बहुत ही निंदनीय तरीके से उनके पद से हटा दिया गया. उसके बाद सीबीआई का एक राजनीतिक औजार के बतौर इस्तेमाल करके चुनाव की पूर्ववेला में कोलकाता पुलिस के मुखिया के घर पर छापा मारा गया, जबकि उसी सीबीआई ने शारदा चिटफंड घोटाले के उन आरोपियों के खिलाफ कोई कदम तक नहीं उठाया जो अब राजनेता के बतौर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. और अब तो यह जाहिर हो चुका है कि सीबीआई नामक कठपुतली, जिसकी डोर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के हाथों रही है, का इस्तेमाल अब मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के यौन-उत्पीड़न कांड की जांच को कमजोर करने के लिये किया जा रहा है. एक बार फिर मोदी सरकार का बेटी बचाओ नारा निष्ठुर मजाक साबित हुआ है.

भाकपा(माले) मांग करती है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में सीबीआई के अंतरिम निदेशक को मुजफ्फरपुर शेल्टर होम बलात्कार कांड के जांच अधिकारी का तबादला करने में उनकी भूमिका के चलते पद से बर्खास्त किया जाये.