वर्ष - 28
अंक - 26
15-06-2019

मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू हो चुकी है. और पहले दो हफ्ते में ही साफ दिख रहा है कि आने वाले दिनों में तस्वीर कैसी होगी: सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी, पत्रकारों की गिरफ्तारी, अपराधों का सम्प्रदायीकरण और मुसलमानों का दानवीकरण, राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ आतंक, सेना के एक पूर्व सदस्य को (विदेशी) घोषित करना और उन्हें असम बार्डर पुलिस की झूठी गढ़ी गई रिपोर्ट के आधार पर बंदी शिविर में डाल देना, साम्प्रदायिकता-विरोधी बुद्धिजीवियों एवं कार्यकर्ताओं को हत्या की धमकियां देना तथा मोदी के पिछले शासन के दौरान बेरोजगारी के आंकड़ों तथा सकल घरेलू उत्पाद के बारे में प्रचारित झूठ का पर्दाफाश.

एक पत्रकार प्रशांत कनौजिया को उत्तर प्रदेश पुलिस के लोगों ने सादी वर्दी में आकर नोएडा स्थित उनके घर से उठा लिया और एक ट्वीट करने के अपराध पर जेल भेज दिया, जिस ट्वीट में उन्होंने एक ऐसे वीडियो को शेयर किया था जो कथित रूप से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की मानहानि करता था. टेलीविजन न्यूज चैनल ‘नेशन लाइव’ की प्रमुख ईशिता सिंह और उसके सम्पादक अनुज शुक्ला को इस वीडियो को प्रसारित करने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया. सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत कनौजिया को अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया है और गिरफ्तारी पर यह टिप्पणी की है कि “किसी व्यक्ति के स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हुआ है”. लेकिन महज एक ट्वीट के लिये जिस तरह मनमानी और तानाशाही तरीके से गिरफ्तारियां की गई हैं उससे भाजपा के इस इरादे का पता चलता है कि वह सोशल मीडिया पर अपनी निगरानी बढ़ा रही है और पत्रकारों तथा असहमति जाहिर करने वाली आवाजों को डराने-धमकाने में लगी है.

इसी बीच सार्वजनिक ख्यातिप्राप्त बुद्धिजीवी और मुम्बई के फासीवाद-विरोधी अभियान के कार्यकर्ता प्रोफेसर राम पुनियानी को हत्या की धमकियां मिली हैं. पुनियानी आईआईटी बाम्बे के भूतपूर्व प्रोफेसर हैं और उनको ये धमकियां उनके लोकप्रिय यू-ट्यूब वीडियो क्लिपों के चलते मिल रही हैं, जिन क्लिपों में वे दर्शकों को हिंदुत्ववादी फासीवाद की प्रकृति के बारे में शिक्षित करते हैं. महाराष्ट्र में नरेन्द्र दाभोलकर और गोविन्द पनसारे जैसे सुप्रसिद्ध तर्कवादी एवं साम्प्रदायिकता-विरोधी बुद्धिजीवियों तथा कर्नाटक में प्रोफेसर एम.एम. कलबुर्गी एवं गौरी लंकेश की हत्याओं को देखते हुए राम पुनियानी को मिल रही ये धमकियां जरूर अशुभ और चिंताजनक संदेश दे रही हैं.

पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भाजपा द्वारा गैर-भाजपा मतदाताओं एवं विरोधी पार्टियों के समर्थकों के खिलाफ आतंक ढाया जा रहा है. पश्चिम बंगाल में भाजपा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ साम्प्रदायिक नफरत और हिंसा भड़काने की कोशिश में भी लगी हुई है.

कठुआ में मुस्लिम बकरवाल परिवार की एक छोटी बच्ची आसिफा के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में एक हद तक न्याय मिला है, जिसमें अदालत ने तीन आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी है और तीन पुलिसवालों को सबूत नष्ट करने के आरोप में सजा सुनाई है. जब भाजपा के मंत्रियों और विधायकों ने “हिंदू एकता” के नाम पर इस घृणित बलात्कार-हत्या कांड के आरोपियों के समर्थन में रैली निकाली थी तो समूचे देश में उनके खिलाफ प्रतिवाद उमड़ पड़े थे.

ठीक जैसे संघी ताकतों ने कठुआ की नृशंस घटना को अंजाम देने वालों के पक्ष में हिंदू समर्थन जुटाने की कोशिश की थी, उसी प्रकार अब वही शक्तियां उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के टप्पल गांव में एक छोटी बच्ची की हत्या के मामले का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय का दानवीकरण करने के लिये साम्प्रदायिक अभियान के चारे के बतौर कर रहे हैं. चूंकि अलीगढ़ की घटना में दोनों आरोपी मुस्लिम हैं, इसलिये बाहर से आई साम्प्रदायिक शक्तियों ने गांव के चारों ओर घेरा डाल दिया है, वे मुस्लिम घरों के सामने जमा होकर साम्प्रदायिक नारे लगा रहे हैं और भाषण दे रहे हैं. पीड़ता के पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों ने बार-बार यह बताते हुए (कि इस हत्या के पीछे साम्प्रदायिक मकसद नहीं है) इस किस्म का सम्प्रदायीकरण खत्म करने का आग्रह किया है, मगर इस अपराध का सम्प्रदायीकरण करने के प्रयास लगातार जारी हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी इस साम्प्रदायिक दबाव के सामने घुटने टेक दिये हैं और इस मामले में अत्याचारी कानून राष्ट्रीय सुरक्षा ऐक्ट (एनएसए) लगा दिया है - जबकि उसी राज्य में बच्चों के खिलाफ हुए इसी किस्म के अन्य हिंसक अपराधों के मामले में एनएसए नहीं लगाया गया है. उदाहरण के लिये हाल ही में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक 12-वर्षीय दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोपियों पर पुलिस ने एनएसए नहीं लगाया है. पुलिस द्वारा एनएसए का चुन-चुन कर, खासकर मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल दरअसल यह साम्प्रदायिक संदेश देने के प्रयास में किया जा रहा है कि जब मुसलमानों द्वारा हत्या जैसे अपराध किये जायेंगे तो उन्हें सम्पूर्ण राष्ट्र के खिलाफ अपराध मान लिया जायेगा.

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर ट्राइब्यूनल) का मनमाना और संभावित साम्प्रदायिक चरित्र एक बार फिर सामने आया जब सेना के एक भूतपूर्व सूबेदार और सम्मानित अवसरप्राप्त योद्धा मोहम्मद सनाउल्लाह को असम की एक विदेशी न्यायाधिकरण ने अवैध आप्रवासी घोषित कर दिया और उनको बंदी शिविर में भेज दिया. असम बार्डर पुलिस द्वारा भेजी गई जांच रिपोर्ट, जिसके आधार पर यह गिरफ्तारी की गई थी, गढ़े गये तथ्यों और स्पष्टतः झूठी बातों से भरी हुई थी. मोहम्मद सनाउल्लाह के खिलाफ जांच वर्ष 2008 में शुरू की गई थी और उनका नाम 2018 के एनआरसी के मसौदे में नहीं था. हालांकि मोहम्मद सनाउल्लाह को जमानत पर रिहा कर दिया गया है, फिर भी यह पूरा प्रकरण एनआरसी और विदेशी न्यायाधिकरण की प्रक्रियाओं के अन्यायपूर्ण और मनमाने चरित्र को पूरी तरह से जाहिर कर देता है, जिनका इस्तेमाल धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को हैरान-परेशान करने के लिये बड़ी आसानी से किया जा सकता है. चूंकि भाजपा ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को समूचे देश पर थोपने की योजना (इसके साथ नागरिकता संशोधन अधिनियम को भी जोड़ दिया जाए, जिसके तहत हिंदुओं को अपनी नागरिकता को सिद्ध  करने में छूट मिल जायेगी) बना ली है, इसलिये उपरोक्त घटना एक चेतावनी है कि मुसलमानों को किस किस्म का अपमान और हैरानी-परेशानी या उत्पीड़न झेलना होगा.

अब चुनाव खत्म हो चुके हैं और सरकार ने आखिरकार बेरोजगारी के आंकड़ों को जारी कर दिया है -  इन आंकड़ों ने इस बात की पुष्टि की है कि बेरोजगारी की हालत भारत में पिछले 47 वर्षों की अवधि में सबसे बदतर है. साथ ही मोदी के प्रथम शासनकाल के दौरान उनके अपने ही मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविन्द सुब्रह्मण्यन द्वारा पेश किये गये एक रिसर्च पेपर ने इस तथ्य का पर्दाफाश कर दिया है कि सरकार द्वारा 2011 से लेकर 2017 के बीच सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत वृद्धि का दावा बेबुनियाद और बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है, जबकि असली वृद्धि की दर महज 4.5 प्रतिशत है. दुनिया का “सबसे तेजी से वृद्धि कर रहा अर्थतंत्र” होने का भारत का सरकारी दावा बेईमानीभरे आंकड़ों पर आधारित है.

चेतावनी भरे ये प्रारम्भिक संकेत खुद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किये गये दावे (सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास) को झूठा साबित कर देता हैं और मोदी सरकार की दूसरी पारी के चरित्र और उसके मकसद को जाहिर कर देते हैं.