वर्ष - 28
अंक - 26
15-06-2019

दिसंबर 2014 में चेन्नै स्थित सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) उद्योग के कर्मचारियों ने बड़े पैमाने की छंटनी के फैसले को चुनौती दी. उन लोगों ने प्रदर्शन किया और प्रबंधन तथा कर्मचारियों के बीच समझौता वार्ता कराने के लिए श्रमायुक्त को याचिका सौंपी. इस प्रतिवाद ने इस मिथक को तोड़ दिया कि अपेक्षाकृत ऊंची तनख्वाह पाने वाले आइटी कर्मियों को यूनियन में संगठित नहीं किया जा सकता है. यह पहलकदमी शीघ्र ही अन्य शहरों - पुणे, बंगलोर, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और भुवनेश्वर - में भी फैल गई. विप्रो, सीटीएस, जेपी मौर्गन, आइबीएम तथा अन्य मझोली व बड़ी कंपनियों में छंटनी से प्रभावित कर्मचारियों के लिए याचिकाएं दायर की गई हैं. सर्वाधिक उल्लेखनीय व दीर्घकालिक उपलब्धि यह रही कि चेन्नै व बंगलोर में कई आइटी कर्मी संघ गठित किए गए जिन्होंने सरकार को इन शहरों में आइटी यूनियनों के रजिस्ट्रेशन को मान्यता देने के लिए बाध्य कर दिया.

आइटी/आइटीईएस उद्योगों में प्रत्यक्ष कर्मचारियों की कुल संख्या लगभग 40 लाख है, जबकि अप्रत्यक्ष कर्मियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा है. इस गणना में वे अप्रत्यक्ष कर्मचारी शामिल नहीं हैं जो एकांउटेंट, सेक्युरिटी गार्ड, निर्माण मजदूर तथा इस सेक्टर के इर्दगिर्द के अन्य उद्योगों द्वारा निर्मित रोजगार में शामिल श्रमिकों के बतौर कार्यरत हैं. इनमें से अधिकांश कर्मचारी व श्रमिक अस्थायी व ठेका चरित्र के हैं.

40 लाख का यह रोजगार देश के कुल कार्यबल का एक छोटा अंश होते हुए भी काफी महत्वपूर्ण है. इसका एक हिस्सा शुरू से ही ठेका-कर्मी के बतौर कार्यरत है. वर्ष 2001 की तुलना में आइटी व आइटीईएस (बीपीएम) उद्योग में शामिल कार्यबल की तादाद कम हुई है. मई 2017 में एनएएसडीएक्यू द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 2001 में रोजगार की कुल संख्या 430 लाख थी, जबकि 2017 में यह संख्या 386 लाख हो गई. उन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2017 में पूरे देश में लगभग 56000 कर्मचारियों की छंटनी हुई है. सच्चाई यह है कि यह छंटनी निजी स्वामित्व वाले उद्योगों में की गई है ताकि मुनाफा बरकरार रखा जा सके और इसे बढ़ाया जा सके “और, यह वैश्विक परिघटना बन चुकी है”.

दुनिया भर में सबसे बड़े ले-ऑफ की घटनाओं में एक के बतौर आइबीएम ने 1993 में अपने मुख्य व्यावसायिक ढांचे को बंद करने के चलते अधिकांशतः अमेरिका में 60000 कर्मचारियों की छंटनी कर दी. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ध्वंस के बाद इसी प्रवृत्ति को जारी रखते हुए लाखों कर्मियों को गैर-कानूनी ढंग से काम से हटा दिया गया, जिसका एक बड़ा हिस्सा भारत में था. भारत का आइटी और आइटीईएस सेक्टर अमेरिकी और यूरोपीय फार्मों द्वारा की जाने वाली आउटसोर्सिंग पर काफी हद तक निर्भर करता है. यह सेक्टर अमेरिका की बनिस्बत 5-6 गुना कम लागत का लाभ देता है - और इस सेक्टर की आरंभिक वृद्धि तथा इसमें रोजगार के फैलाव का यही मुख्य कारण भी था. ट्रंप परिघटना, यानी एच1बी वीसा में कटौती, ने भारतीय आइटी सेक्टर के संकट को और बढ़ा दिया, लेकिन यह मुख्य कारण नहीं था. डोनाल्ड ट्रंप की कार्रवाइयों के बावजूद भारतीय आइटी उद्योग का राजस्व 2018-19 में 181 अरब डॉलर हो गया और निर्यात 137 अरब डॉलर तक पहुंच गया. लेकिन बड़े पैमाने की छंटनी और ले-ऑफ जारी रहे.

15 मई के ‘इकॉनोमिक टाइम्स’ के मुताबिक आइबीएम ने साफ्टवेयर सेवाओं में 300 कर्मियों को काम से हटा दिया. प्रबंधन ने इसका कारण यह बताया कि आइबीएम के भारतीय कार्यालयों में स्किल सेट्स का पुनर्मूल्यांकन किया गया है और यह कंपनी क्लाउड, कृत्रिम बुद्धि तथा अन्य उदीयमान क्षेत्रों में नए टेलेंट को लगातार बढ़ाना चाहती है. ‘इकॉनोमिक टाइम्स’ में प्रकाशित खबरों के अनुसार कोगनिजेंट कंपनी भी यही कारण बताकर कर्मचारियों के एक हिस्से की छंटनी करने की योजना बना रही है.

हर वर्ष कार्य मूल्यांकन के नाम पर ठीक से काम न करने वाले अनेक कर्मियों की छंटनी कर दी जाती है; लेकिन जब बड़े पैमाने पर छंटनी की जाती है तो उसका कारण यह बताया जाता है कि कंपनी अपेक्षित मुनाफा नहीं कमा पा रही है या फिर कंपनी मुनाफा कमाने के लिए ले-ऑफ करना चाहती है. श्रम बल को घटाना सबसे आसान उपाय है, क्योंकि इस सेक्टर के मालिक और प्रबंधन को पता है कि सरकार इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेगी और वह इनके पक्ष में ही खड़ी रहेगी.

भारत में अनेकानेक आइटी पार्क हैं और सरकार ने बड़े आइटी पार्कों को विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) घोषित कर रखा है. बड़े आइटी पार्कों में काफी खाद्य सामग्रियां और ‘जिम’ सुविधाएं मुहैया की जाती हैं. अगर हम विनिर्माण या गार्मेंट सेक्टर में कार्यरत श्रमिकों की दयनीय स्थिति के साथ तुलना करें तो आइटी सेक्टर के कर्मचारियों की हालत काफी अच्छी प्रतीत होगी. लेकिन यह बेहतर स्थिति उनकी पीड़ा को नहीं ढंक सकती है - उच्चतर वेतन प्राप्त करने के बावजूद आइटी कर्मियों को भयानक रोजगार असुरक्षा झेलनी पड़ती है. मुट्ठी भर कर्मचारी शीर्ष प्रबंधकीय पदों पर चले जाते हैं, लेकिन अधिकांश कर्मचारियों की प्रोन्नति 15 वर्षों के बाद अवरुद्ध हो जाती है. पिछले 2-3 वर्षों में छंटनी के अनुभव दिखाते हैं कि अधिकांशतः 8-15 वर्ष तक काम कर चुकने वाले मध्यवर्ती स्तर के कर्मचारियों को छंटनी का निशाना बनाया जाता है. छंटनी के बाद ऐसे कर्मचारी अगर किसी तरह कोई अन्य रोजगार हासिल करते हैं, तो वहां उन्हें अपेक्षित आर्थिक लाभ कतई हासिल नहीं होता है.

आइटीईएएस (बीपीएम) में हालत और बुरी है, क्योंकि बीपीएम कर्मी आइटी कर्मचारियों की तुलना में काफी कम वेतन पर नौकरी  में आते हैं और उनके लिए वेतन वृद्धि भी काफी धीमी होती है (अधिकांश आइटी कंपनियों में यही हाल है). एक प्रमुख बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) कम्पनी कंसेंट्रिक्स नए कर्मियों को 11000 रुपये देती है और एक प्रसिद्ध बीपीओ कम्पनी एचएसबीए 15000 रुपये देती है - जबकि 15-16 वर्षों के निरंतर अनुभव और काम के बाद यह वेतन 50000 रुपये तक जा सकता है और उसके बाद उसमें वृद्धि रुक जाती है. बीपीओ कर्मी सामान्य रूप में एजेंट कहलाते हैं. अधिकांश बीपीओ कर्मी 20-25 वर्ष के आयु वर्ग के होते हैं. इस कार्यबल का लगभग 40-45 प्रतिशत हिस्सा महिला कर्मियों (अधिकांशतः अविवाहितों) का होता है. इन कर्मचारियों को आम तौर पर 6-12 महीनों के लिए प्रशिक्षुओं  के बतौर बहाल किया जाता है. इन प्रशिक्षुओं के एक अत्यंत छोटे हिस्से को ही स्थायी कर्मी बनाया जाता है. कई अध्ययनों से पता चलता है कि बीपीओ में लगभग 38 प्रतिशत कार्य बल प्रशिक्षुओं का होता है या फिर वे प्रोजेक्ट-आधारित कार्यों में शामिल किए जाते हैं (सिर्फ 62 प्रतिशत कर्मी स्थायी चरित्र के होते हैं). इसके अलावा, बीपीओ कर्मियों को - चाहे वे नियमित हों अथवा अस्थायी - सभी राष्ट्रीय अवकाशों और पर्व-त्योहारों पर छुट्टियां नहीं मिलती हैं. छुट्टियों का मसला इतना महत्वपूर्ण होता है कि कभी-कभी यह इस्तीफे का कारण भी बन जाता है. इन कर्मचारियों पर हमेशा मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहता है. यह गौरतलब है कि इस आइटी और आइटीईएएस उद्योग में औद्योगिक श्रम कानून लागू नहीं होते हैं और तमाम किस्म की सरकारें इस मामले में उद्यमियों का ही पक्षपोषण करती हैं.

एनएएसडीएक्यू के उपरवर्णित लेख में संभावना बताई गई है कि वर्ष 2025 आते-आते डिजिटलाइजेशन, कृत्रिम बुद्धि, क्लाउड वगैरह के चलते आइटी उद्योग में कुल रोजगार बढ़कर लगभग 70 लाख हो जाएगा. उस लेख में कहा गया है कि “विशेषज्ञों का कहना है कि छंटनीग्रस्त कर्मियों का भविष्य अंधकारपूर्ण है”. एनएएसडीएक्यू का अनुमान संभवतः आज के कार्यबल (40 लाख) पर आधारित है जिसका एक बड़ा हिस्सा अगले दो वर्षों में छंटनी का शिकार बन जाएगा, जिसे ध्यान में नहीं लिया गया है. कृत्रिम बुद्धि, डिजिटलाइजेशन, क्लाउड आदि के चलते कुछ रोजगार जरूर सृजित होंगे, लेकिन उनका मुट्ठी भर हिस्सा ही उच्च कुशलता से युक्त होगा. आइटीईएएस (बीपीओ) क्षेत्र में कार्यस्थितियां पहले की ही भांति बनी रहेंगी और आइटी उद्योग में रोजगार असुरक्षा बढ़ जाएगी.

हमारे मौजूदा दौर का अर्थतंत्र इसी किस्म का है. रोजगारहीन वृद्धि एक हकीकत है और रोजगार असुरक्षा सब के दैनंदिन जीवन का अंग बन जाता है. लेकिन इन कर्मियों को कैसे संगठित किया जाए और उन्हें संगठित करने में क्या चुनौतियां हैं ?

आइटी, बीपीओ कर्मियों को संगठित करने में चुनौतियां

बीपीओ में कार्यस्थितियां और प्रबंधन का आचरण व्यक्तिवाद को बढ़ावा देते हैं और श्रमिकों के बीच सामूहिक एकजुटता के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं. आने वाले कॉल के लिए पहले से ही तैयार लिखित प्रत्युत्तरों के साथ-साथ एसीडी तकनीक का इस्तेमाल करके वास्तव में प्रबंधन इतना समय ही नहीं देता है कि  कर्मचारी आपस में वार्ता कर सकें. हर कर्मचारी अपनी शिफ्ट का हर पल सिर्फ अपने टार्गेट को पूरा करने में लगा देता है, क्योंकि उसका वेतन व अन्य सुविधाएं तथा उसके रोजगार की सुरक्षा भी उसके टार्गेट पूरा करने पर निर्भर हैं. पांच बिंदुओं वाली रेटिंग प्रणाली में सभी कर्मचारियों को परस्पर सहयोग करने के बजाए एक-दूसरे के साथ प्रतिद्वंद्विता करने को बाध्य कर दिया जाता है. इसके अलावा, विनिर्माण अथवा गार्मेंट (वस्त्र) श्रमिकों की तुलना में इस सेक्टर के कर्मचारियों को प्रबंधन जैसे बर्ताव का आभास दिया जाता है - वे वातानुकूलित कमरे में बैठते हैं, उन्हें आने-जाने की अच्छी सुविधा मिलती है और उन्हें सहायक प्रबंधक या प्रबंधक की पदवी भी दी जाती है (हालांकि प्रबंधन का वेतन उन्हें नहीं मिलता है)!

दूसरी ओर आइटी उद्योग के कर्मचारी अपेक्षाकृत मोटा वेतन पाते हैं और कुछ समय पहले तक ये कर्मचारी खुद को दुनिया पर राज करने वाले वास्तविक एक्जीक्यूटिव भी समझ लिया करते थे. लेकिन बड़े पैमाने की छंटनी ने परिदृश्य बदल दिया है और उनमें  से अनेक लोगों के दिमाग में संगठित होने और संघर्ष करने की जरूरत समा दी है. उनके संघर्षों के बाद चेन्नै तथा बंगलोर में उनकी यूनियनों का पंजीकरण इस बात के प्रमाण हैं.

भारतीय आइटी उद्योगों को औद्योगिक नियोजन स्थायी आदेश अधिनियम, 1946 से मुक्त रखा गया था, जिसका मतलब था कि फैक्ट्री मजदूरों से भिन्न इस क्षेत्र के कर्मचारियों व नियोजकों के बीच विवाद को श्रम कानूनों के आधार पर नहीं सुलझाया जा सकता. नरेंद्र मोदी के वर्तमान शासन के अंतर्गत मालिकों  के हक में ही श्रम कानूनों में और ज्यादा सुधार लाया गया है. आइटी तथा आइटीईएस सेक्टर में बड़े पैमाने की छंटनी तथा वेतन कटौतियों का मुकाबला करने के लिए अधिक शक्तिशाली यूनियनों की जरूरत है.

इन क्षेत्रों की यूनियनों द्वारा निम्नलिखित मांगें उठाई जा रही हैं:

µ न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि करो जो आइटी में कार्यरत ठेका कर्मियों तथा आइटीईएएस सेक्टर के तमाम कामगारों के लिए उपयोगी होगी

µ ठेका-आधारित काम के बजाए तमाम रोजगार को स्थायी बनाओ

µ गैरकानूनी छंटनी तथा जबरन सेवा-समाप्ति पर रोक लगाओ

µ आइटी तथा आइटीईएस सेक्टरों में यूनियनों के पंजीकरण को मान्यता दो

µ आइटी सेक्टर को मिलने वाली तमाम छूटें बंद करो और यहां भी औद्योगिक नियोजन स्थायी आदेश अधिनियम लागू करो

µ आइटी तथा आइटीईएएस उद्योग में श्रम कानूनों को लागू करो !