वर्ष - 28
अंक - 31
20-07-2019

16 जुलाई 1972 को कलकत्ते के एक आश्रय स्थल से का. चारु मजुमदार गिरफ्तार किए गए. गिरफ्तारी के बाद लाल बाजार के सेन्ट्रल लाॅक अप में 12 दिनों तक उन्हें घोर शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना दी जिनमें उनके लिए जरूरी पैथिड्रीन इंजेक्शन व अन्य दवाइयों को बन्द कर देना भी था, उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. 28 जुलाई 1972 को का. चारु मजुमदार ने आखिरी सांस ली. लेकिन, उनकी शहादत के बाद भी न तो नक्सलबाड़ी आंदोलन को खत्म किया जा सका और न ही उसकी ताप व ऊर्जा से पैदा हुई उस नई पार्टी को, जिसे हम सभी भाकपा-माले के रूप में जानते हैं.

चन्द वर्षों बाद ही बिहार के भोजपुर, पटना, गया, चंपारण और दरभंगा में का. जौहर और का. विनोद मिश्र के नेतृत्त्व में एक बार फिर से नक्सलबाड़ी की आग धधक उठी। गरीबों की लाल सेना ने जुल्मी सामंतों व उनके चाकर पुलिस-मलेटरी के छक्के छुड़ा दिए. बहुआरा (भोजपुर) और घोरहुआं (पटना) की बहादुराना लड़ाईयों ने और का. जगदीश, जौहर, बूटन, रामईश्वर, वीरद, नारायण, निर्मल, अग्नि, शीला, लहरी जैसे वीर संतानों की शहादतों ने नक्सलबाड़ी का नया अध्याय लिख दिया –

खेत मजूर और गरीब किसानों के बीच से आये सैकड़ों नौजवान ही नहीं बल्कि देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों व कालेज कैम्पसों के छात्र भी, जो धनी और मध्यवर्ग से आते थे, चारु के सपनों का भारत बनाने के लिए क्रांति के दावानल में अपना सबकुछ न्योछावर करने हेतु कूद पड़े थे. उन्होंने चारु मजुमदार को कभी देखा तक नहीं था लेकिन क्रांति का अलख जगाने वाले इस महानायक के प्रति अपनी असीम श्रद्धा का इजहार किया और अपनी-अपनी भाषाओं में – जन भाषाओं में – मैथिली, वज्जिका, मगही, अंगिका व भोजपुरी में – अनेक गीत लिखे। गांव के गरीबों की बैठकों में ये गीत गाए और इन्हें सुनते हुए हजारों लोग चारु के क्रांतिकारी राह का राही बनने को प्रेरित हुए.

क्रांतिकारी जनकवि गोरख पांडे के जिस गीत की सर्वाधिक चर्चा हुई और जो आज भी सबसे ज्यादा गाया और सुना जाता है, वह है ‘जनता के पलटनिया’. यह नक्सलबाड़ी, श्रीकाकुलम और भोजपुर किसान आंदोलन की गाथा है जिसमें चारु का नायकत्त्व बखूबी सामने आता है –

नक्सलबड़िया से चलेले अगड़िया, हिलेले झकझोर दुनिया/चारु के महान पलटनिया, हिलेले झकझोर दुनिया/सिरिककुलमवा से आवे भोजपुरवा, हिलेले झकझोर दुनिया/अब आवे तोहरे सिवनवा, हिलेले झकझोर दुनिया/बहुते नियर बा अजदिया के दिनवा, हिलेले झकझोर दुनिया/तुहूं लेल तीरवा कमानवा, हिलेले झकझोर दुनिया.

मैथिली भाषा का यह जनगीत इसकी बानगी है कि का. चारु मजुमदार ने गरीब-भूमिहीन शोषित जन के भीतर किस तरह से एक नई उम्मीद जगाई थी – हम गौरव बुझैत छी, लेत कामरेड चारुक नाम/दैत लाल सलाम, दैत लाल सलाम/जखन फँसल छल, दलदल में भारत/देशक जनता छल, बड़ आरत/ताहि समय ओ बाटि देखौलनि/एक मात्र रास्ता सशस्त्र संग्राम/हम गौरव बुझैत छी, लेत कामरेड चारुक नाम/दैत लाल सलाम, दैत लाल सलाम.

‘लोकयूद्ध (अंक, सितंबर-दिसंबर 1978) में प्रकाशित एक गीत ‘तनी सुन हमर बात’ में भी का.चारु के बताये रास्ते पर चलने का आह्वान सामने आता है – बाट देखौलनि कामरेड चारु, देश के भैया जल्दी उबारू/जाग देश के किसनमा हो, छीन ल राजपाट/सुन-सुन भैया किसनमा हो, तनी सुन हमर बात.

एक और मैथिली जनगीत देखिये -हथवा में राईपफल, लेके हल आ कुदारी/भूमिहीन चलल भूमि जोतय, जय-जय नक्सलबाड़ी/जनता के सेवा लेल होबय क्रांतिकारी/कामरेड चारुक बनब उत्तराधिकारी/भूमिहीन चलल भूमि जोतय, जय-जय नक्सलबाड़ी.

इस जनगीत में बड़े ही सजीव तरीके से का. चारु को सामने लाया गया है – भूमिहीन गरीब में आइल जवनिया/देखि दुश्मन के बढ़ल परेशनिया/जमींदार से जब्त जमीन करू बंटवारा/करबै भूमि सुधार आजुक ई नारा/जनता के जनवादी क्रांति के तईयरिया/चारु-सरोज-जौहर के गीत गाऊ/हुनकर सपना के साकार बनाऊ/उड़ाक घर-घर में ललका निशनिया.

भोजपुरी का यह गीत नक्सलबाड़ी विद्रोह और का. चारु और उनके साथी शहीदों को कुछ ऐसे याद करता है – देशवा में हो, देशवा में हो, देशवा में/आइल नक्सलवाद हो देशवा में/शहर-शहरवा में जागल मजदूरवा हो, गंऊवा में/जागल भूमिहीन किसान हो, गंऊवा में/मारी जमींदारवा के राजवा मिटाईब हो, भूमिहीन के/लेहब अधिकार हो, भूमिहीन के/कामरेड सरोज दत्त, बहिन निर्मला हो, अमर शहीद/कामरेड चारु मजुमदार हो, अमर शहीद/लाल सलाम दिहीं सब शहीदन के, उहे दिहलें/तोहरा के अधिकार हो, उहे दिहलें.

गाजीपुर-बनारस क्षेत्र में यह गीत भी खूब प्रचलित हुआ – देशवा में आइल नक्सलवाद मोरे सथिया, जनता के सेवा में तैयार/शहर-शहरवा में जागल मजदूरवा, गंऊवा में भूमिहीन किसान/लाल सलाम देहब चारु मजुमदार के, ऊहे देलन तोहके अधिकार/मजदूर-किसानवा में आइल जवनिया, उलटि गइलें एकर धार/कंहवा से अइलन शहीदन के टोलिया, छोड़ि-छोड़ि घरवा-दुआर/बाबूलाल, रामायण राम, बहिन निर्मला, अमर शहीद चारु मजुमदार.

एक अन्य गीत यह भी है – जाग मजदूर किसानवा, जमानावा बदले ला/उठल क्रांति के तूफानवा, जमानावा बदलेला/जालिम जमींदार सब करेला शोषणवा, दिन भर खटला प मिले ना भोजनवा/हक मांगला प मिले गोली के निशानवा, जमानावा बदलेला/अउर सहे पड़ेला आगजनी दमनवा, चारु मजुमदार रहलन वीर महानवा/नक्सलबाड़ी थाना से उठल तूपफानवा, जमानावा बदलेला.

‘चारु की पलटनिया’ नाम का यह गीत उस तर्ज में है जिसका अपने नाटकों में भिखारी ठाकुर ने जिसका बहुधा उपयोग किया है  –

जनता के बीच से आवे चारु के पलटनिया, हाथवा में ललका निशानवा हो लाल/एक हाथे फसुली, दूसर हाथे राईफलवा, माथवा प ललका पगड़िया हो लाल.

और आखिर में, बहुआरा (भोजपुर) की बहादुराना लड़ाई पर का. ब्रजभुषण शर्मा द्वारा रचित आल्हा जो इन पंत्यिों के साथ ही शुरू होता है – पहिले सुमिरन साथी महान माओ के, दूसरे सुमिरन साथी चारु मजुमदार/तीसर सुमिरन साथी काजौहर के, चैथे सुमिरन भइया बुटन सरदार/आदि सुमिरन साथी मार्क्स-लेनिन के, जिनकर रोशनी में चले संसार/कथा बखानूं बहुआरा का, जनता सुन लो कान लगाय.

 – संतोष सहर