वर्ष - 28
अंक - 28
29-06-2019

जून के महीने में बरसात आ जाती है. लेकिन अभी तक लोग पानी बरसने का इंतजार करते लू के थपेड़े झेल रहे हैं. इधर पानी का लेवल काफी नीचे चले जाने से पेयजल का संकट तो है ही, खेती के लिए भी भारी संकट है। इन दोनों सवालों पर सरकार आपराधिक लापरवाही बरत रही है.

बिहार की सरकार का नारा है – ‘न्याय के साथ बिहार का विकास’, जिसके तहत जीरो टौलरेंस यानी भ्रष्टाचार पर रोक, पारदर्शिता, सम्पूर्ण बिहार में सात निश्चय योजना के तहत सभी गांवों में तय समय सीमा के अंदर हर घर में बिजली और नल का जल पहुंचाने का लक्ष्य लिया गया है. लेकिन नल से जल तो मिला नहीं, उल्टे चापाकल लगना भी बंद हो गया है. बिहार सरकार ने योजना घोषित की थी कि गांव पंचायतों में गरीबों को प्रतिमाह 30 रुपये में और एपीएल वाले को 40 रुपये में नल जल योजना से घर तक पानी पाइप से पहुंचाया जायेगा। लेकिन धनरुआ में एक भी ऐसी पंचायत नहीं बची है जहां खजाने से 14 से 18 लाख रुपये तक की निकासी न हुई हो. लेकिन एक दो जगह को छोड़कर बाकी हर जगह पर पानी नहीं मिलता है – अगर पानी का टावर बन गया है तो पानी पाइप नदारद है. पानी पाइप है तो टावर और मशीन ही नहीं लगी है. जमीन के नीचे पानी का लेयर नीचे लगभग 45 फीट चला जाने की वजह से जो चापाकल गड़े हैं उनमें से अधिकांश चापाकल जानवर का खूंटा बन कर गये हैं. यानि चापाकल के साथ सिलेंडर लगाने पर पानी मिलना मुश्किल है। नदी आहर पोखर की जमीन खोद कर ग्रामीण इमरजेंसी होने पर पानी निकालते थे, वह भी गंदा पानी पर मजबूर है. जानवर तो जानवर आदमी भी गंदा पानी पीने और बीमारी से मरने पर मजबूर है. ऐसी भयानक स्थिति में सरकार की आपराधिक लापरवाही के खिलाफ भाकपा(माले)-खेग्रामस जबरदस्त विरोध की आवाज बन कर खड़े हुए हैं. पिछले 24 जून को ग्रामीण पटना के धनरुआ, मसौढ़ी , पुनपुन, फतुहा, सम्पतचक, फुलवारीशरीफ, मनेर बिहटा, दुल्हिनबाजार प्रखंडों पर माले-खेग्रामस के बैनर तले प्रदर्शन कर जोरदार आबाज उठाई गई और पानी का अकाल घोषित करने की मांग उठाई गई. इन प्रदर्शनों में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण शामिल हुए हैं.

-- गोपाल रविदास