वर्ष - 28
अंक - 36
24-08-2019

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमाम विवादित जंगलों की जमीन आदिवासियों से छिनने के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने जंगलों से आदिवासियों को निकाल बाहर करने की मुहिम तेज कर दी है. सरकार एक नया वन कानून लाने जा रही है जिसमें उसे आदिवासियों से किसी भी किस्म की जमीन छीनने के साथ-साथ उन्हें सरेआम गोलियों से भुनने का भी कानूनी अधिकार हासिल होगा. आदिवासियों को माओवादी बताकर जो क़त्लेआम सरकार अब तक चलाती आ रही है, अब उसे कानूनी जामा पहनाया जायेगा.

ऐसी ही परिस्थिति में वलसाड जिले के आदिवासी बहुल तालुका धरमपुर के आदिवासियों ने मोदी व रूपानी सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ रैली निकाला. भाकपा(माले) की बैनर तले गोलबंद आदिवासी महिलाओं, पुरुषों, युवाओं व बुजुर्गों ने धरमपुर के अनुमंडलाधिकारी के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा है. जिसमें ‘वन अधिकार कानून 2006’ को पूर्ण रूप से लागू करने की पुरजोर मांग की गई.

रैली में वक्ताओं ने कहा कि जो सरकार तथाकथित कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के मुद्दे को अहम राष्ट्रीय मुद्दा बनाये हुए हैं वह इनसे भी सौगुना आबादी वाले आदिवासियों को अपनी पुश्तेनी जमीनों से से उजाड़ने जा रही है. और उल्टे आदिवासियों की आवाज को दवाने की खूंखार कोशिशें कर रही है. रैली में गुजरात की पूर्व पट्टीी के तमाम जंगलों में परंपरागत रूप से रहने और खेती करनेवाले आदिवासियों की जमीन की पूरा हक देने की मांग की गई. वन विभाग द्वारा बनाया गया फेंसिंग, डिमार्केशन लाइन, पिलर, नर्सरी, खेतों में जबरदस्ती प्लांटेशन को सरकार ने अगर वापस न लिया तो आदिवासी जनता मजबूरन अपने बुते पर तमाम छीनी गई जमीनें अपने कब्जे में ले लेगी. इसका जो भी परिणाम होगा उसकी जिम्मेदारी मोदी-रूपानी सरकार पर होगी.

रैली का नेतृत्व भाकपा(माले) के गुजरात प्रभारी रंजन गांगुली, पार्टी के जिला सचिव लक्ष्मण वाडिया, अमित पाटनवड़िया, कापरड़ा तालुका सचिव कमलेश गुरव, धरमपुर तालुका सचिव आनंद भाई बारात, महाराष्ट्र की माले नेता प्रकाश मोरे, आदिवासी महिला नेता जयवंतीबेन दभारिया, बनिता बेन बघात, सुमन बेन बघात आदि ने किया.