वर्ष - 28
अंक - 40
21-09-2019

15 सितंबर को पुणे में कामरेड संध्या तलावरे का निधन हो गया. उनका जन्म 7 जुलाई 1958 को नागपुर के एक खुशहाल परिवार में उनका जन्म हुआ था और वे माता-पिता की सात संतानों में दूसरी थीं. लेकिन जिंदगी भर उन्होंने सबसे बड़ी संतान के बतौर अपने भाई-बहनों की परवरिश की.

वे कुशाग्र बुद्धि की छात्रा थीं. उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया था. उन्होंने दो वर्ष तक कानून का भी अध्ययन किया. वे कवयित्री और चित्रकार भी थीं. वे एनसीसी बटालियन की सबसे अच्छी कैडेट थीं. वे पर्वतारोही और पैराट्रूपर भी थीं. वे काॅलेज के दिनों से ही अनेक युवा आंदोलनों में शामिल होती रहीं. जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ‘जीरो बजट’ की धारणा लागू की, तो रोजगार के अवसर खत्म हो गए. तब उन्होंने महाराष्ट्र में ‘रोजगार गारंटी योजना’ के तहत रोजगार की मांग पर नौजवानों का आंदोलन संगठित किया.

उन्होंने 1980 में भोजपुर में चल रहे क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया और भाकपा(माले) (लिबरेशन) के खुला होने के पूर्व उन्होंने वहां आइपीएफ को संगठित करने में जोशीली भूमिका निभाई. भोजपुर में उन्होंने पार्टी के झंडे तले महिला संघर्षों और अन्य आंदोलनों में शिरकत की और इन्हें संगठित भी किया. भोजपुर के ही कामरेड हरेंद्र श्रीवास्तव के साथ उनका विवाह हुआ. यह शादी उनके पिता को मंजूर न थी, इसीलिए उन्होंने अपनी पसंद की शादी करने के अधिकार से इस पितृसत्तात्मक इन्कार के खिलाफ विद्रोह कर दिया. उनकी दोनों बेटियों – दिवंगत आकांक्षा, और अभिलाषा – ने उनकी राजनीतिक विरासत को थाम लिया. वे नागपुर, मुंबई और पालघर में कई आंदोलनों में काम करती रहीं. अपने बिगड़े स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने पालघर में चुनावी मुहिम को संगठित किया. ऐपवा की नेता के बतौर उन्होंने महिला अधिकारों से संबंधित कई संघर्षों का नेतृत्व किया.

उनकी छोटी बेटी आकांक्षा की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से कामरेड संध्या को गहरा सदमा पहुंचा. उसके बाद से ही वे मधुमेह (डायबिटिज) और इससे जुड़ी अन्य दिक्कतों से जूझने लगीं.मधुमेह की जटिलता के चलते उनकी दोनों आंखें खराब हो गईं और अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले उनकी किडनी में भी बीमारी लग गई. पार्टी के साथ उनकी प्रतिबद्धता का एक खास पहलू यह था कि उन्होंने पार्टी में शामिल होने के बाद आयोजित सभी पार्टी महाधिवेशनों में हिस्सा लिया. किडनी की बीमारी का पता लगने के बाद भी वे मानसा में आयोजित पार्टी के दसवें महाधिवेशन (2018) में शामिल रहीं.

कामरेड दीपंकर ने का. संध्या का योगदान और साथ ही उनकी अदम्य संघर्षशील भावना को इन शब्दों में बिलकुल सही कहा है, “कामरेड संध्या को लाल सलाम ! मैं पिछले महीने पुणे जाते हुए उनसे मिला था. वे उठ बैठीं और उन्होंने हमलोगों के साथ कुछ समय तक पूरी गर्मजोशी और हंसी-खुशी के साथ बातचीत की, और कई कामरेडों के बारे में हमसे पूछा. अगर कोई उनसे फोन पर बात करे, तो वह उनकी पीड़ा को कत्तई महसूस नहीं कर सकता. कामरेड संध्या जैसे कामरेडों के प्रचंड उत्साह और प्रतिबद्धता के चलते ही महाराष्ट्र में हमारी पार्टी तमाम मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़ी है.”

उनकी बेटी अभिलाषा ने उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए ये शब्द कहे: “वे बहादुर और जुझारू महिला थीं. वे लगातार घर में पितृसत्ता के खिलाफ लड़ती रहीं, उन्होंने सभी चुनौतियों का मुकाबला किया – उनमें कुछ तो बहुत भारी चुनौतियां भी थीं – और वे साहस के साथ अपनी बीमारियों से भी जूझती रहीं. लड़ो, और लड़ते रहो ..... यही उनके जीवन का ध्येय था. मुश्किलों और बाधाओं का मुकाबला करने के लिए उन्होंने हमेशा कठोर प्रयास किया. मार्क्सवाद और लेनिनवाद में उनका दृढ़ विश्वास था और इसीलिए उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने घर को समाज से अलग करके कभी नहीं देखा. उनकी कामरेड और बेटी होने के नाते मैं उनके संघर्षशील जज्बे को सलाम करती हूं.”

भाकपा(माले) और ऐपवा को उनकी कमी शिद्दत से खलती रहेगी.