वर्ष - 28
अंक - 38
07-09-2019
-- इंद्रेश मैखुरी

जम्मू कश्मीर में धारा 370 को खत्म किए जाने और इससे जुड़े अन्य मामलों पर उच्चतम न्यायालय में बुधवार को सुनवाई हुई. इस सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने माकपा के महासचिव कामरेड सीताराम येचुरी को जम्मू कश्मीर के पार्टी नेता और पूर्व विधायक मोहम्म्द युसुफ तारीगामी से मिलने की अनुमति दी. कानून के स्नातक मोहम्म्द अलीम सईद को भी कश्मीर में अपने परिवार से मिलने की अनुमति कोर्ट ने दी.

इसके अतिरिक्त जम्मू कश्मीर से धारा 370 को खत्म करने और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए संविधान पीठ को सौंप दिया गया. उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले तीन न्यायाधीशों की पीठ ने जब उक्त मामले को संविधान पीठ को सौंपने का निर्णय सुनाया तो एटाॅर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और साॅलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस फैसले का विरोध किया. केंद्र सरकार के इन दोनों वकीलों का तर्क था कि 370 मसले के अंतर्राष्ट्रीय और सीमा पार प्रभाव हैं. यहां (न्यायालय में) जो भी बयान दिया जाएगा, वह संयुक्त राष्ट्र को भेज दिया जाएगा.

एटाॅर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और साॅलिसीटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उच्चतम न्यायालय में दिया गया यह तर्क ही केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर में की गयी कार्यवाही पर प्रश्न उठाने वाले हर व्यक्ति के खिलाफ केंद्र सरकार और भाजपा का मुख्य तर्क है.

भाजपा का सारा प्रचार तंत्र लोगों को यही विश्वास दिलाना चाहता है कि कश्मीर में जो पिछले 25 दिनों से सरकार ने तालाबंदी की हुई है, उसे तो दुनिया देख ही नहीं रही है. दुनिया को तो बस तभी पता चल रहा है जब उच्चतम न्यायालय इस मामले को संविधान पीठ को भेजेगा या फिर जब विपक्षी नेता कश्मीर में सरकारी कार्यवाही के खिलाफ बयान देंगे. पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री डा. शिरीन मजारी द्वारा संयुक्त राष्ट्र को पत्र भेजने के बाद यह तर्क फिर जोर-शोर से उछाला जा रहा है कि विपक्षी नेताओं की कश्मीर में सरकारी कार्यवाही पर सवाल उठाने वाले बयान, पाकिस्तानी मंत्री को भारत के खिलाफ अभियान चलाने में सहायक सिद्ध हुए.

पर क्या यह हकीकत है? जी नहीं. पाकिस्तानी मंत्री का संयुक्त राष्ट्र को लिखा सात पेज लंबा पत्र सिर्फ विपक्षी नेताओं के बयानों पर आधारित नहीं है. बल्कि भाजपा के विधायकों और मुख्यमंत्रियों के बयानों ने भी उसमें पर्याप्त जगह पायी है. उन बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तानी मंत्री ने भारतीयों के कश्मीरियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण की पुष्टि के लिए किया है.

पाकिस्तानी मंत्री ने अपने पत्रा में पहला बिन्दु लिखा है ‘लिंग आधारित हिंसा, युद्ध का औज़ार. इस बिन्दु में वे दिनांक सहित कश्मीरी महिलाओं के बारे में भाजपा नेताओं के बयानों का उल्लेख करती हैं. अपने पत्र में पाकिस्तानी मंत्री ने लिखा कि 6 अगस्त 2019 के आसपास एक भाजपा विधायक विक्रम सैनी का विडियो वाइरल हुआ, जिसमें वे कहते हैं कि मुस्लिम पार्टी कार्यकर्त्ताओं को नयी स्थितियों का आनंद लेना चाहिए. वे अब गोरी चमड़ी वाली कश्मीरी महिलाओं से शादी कर सकते हैं.’

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 10 अगस्त 2019 को एक बयान दिया,जिसमें उन्होंने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि अब कश्मीर खुल गया है तो वहां से दुल्हन लायेंगे. ....’ मनोहर लाल खट्टर के इस बयान को भी पाकिस्तानी मंत्री ने भारत में कश्मीर के प्रति लैंगिक पूर्वाग्रह के उदाहरण के तौर पर अपने पत्र में उद्धृत किया.

पाकिस्तानी मंत्री तो अपने पत्र में लिखती हैं कि 5 अगस्त 2019 से गूगल पर ‘कश्मीरी महिलाओं से विवाह कैसे करें’ खोजने वालों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो गयी. यह तथ्य भारत के किसी समाचार माध्यम में आया हो न आया हो पर पाकिस्तानी मंत्री ने इसे भारत का कश्मीरी महिलाओं के प्रति लैंगिक द्वेष के उदाहरण के तौर पर पेश किया है. विपक्षी नेताओं के बयानों से तो जो भी हुआ हो पर इस तरह के बयान और कृत्य निश्चित ही देश के लिए शर्मिंदगी के सबब हैं.

जितना तफसील से भाजपा के उक्त नेताओं के बयानों का उल्लेख पाकिस्तानी मंत्री ने अपने पत्र में किया है, उतना किसी विपक्षी नेता के बयान को नहीं किया है. परंतु भाजपा और उसका पूरा प्रचार तंत्र अपने नेताओं, विधायकों और मुख्यमंत्रियों के छिछोरे, वाहियात बयानों और हरकतों से शर्मिंदा नहीं है. वह इसे देश के लिए शर्मिंदगी की बात भी नहीं समझते हैं. लेकिन कश्मीरी अवाम के लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में खड़ी आवाजों को खामोश करने के लिए जरूर वे दूसरे देशों द्वारा उनकी बातों को इस्तेमाल किए जाने को हव्वे की तरह प्रयोग कर रहे हैं.

पाकिस्तान क्या कहेगा, संयुक्त राष्ट्र में क्या होगा से ज्यादा महत्वपूर्ण तो कश्मीर और वहां के लोगों के हालात हैं. वहां के लोगों के अधिकार पर ताला लगा रहे, विपक्षी से लेकर अदालत तक भी सब मुंह सी लें तो क्या दुनिया को वहां के हालात का पता नहीं चलेगा? आधुनिक संचार माध्यमों के इस दौर में यह खामखयाली है, शतुरमुर्ग जैसी सोच है. याद करिए कश्मीर में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआती खबरें बीबीसी, एएफपी और अल जजीरा ने दी. पहले-पहल केंद्र सरकार ने उनका खंडन किया पर बाद में उसे, इन विरोध प्रदर्शनों की सत्यता को स्वीकार करना पड़ा. न्यूयार्क टाइम्स, टाइम, वाल स्ट्रीट जर्नल, राइटर्स जैसे दुनिया के तमाम प्रकाशनों और समाचार एजेंसियों ने कश्मीर के हालात पर समाचार प्रकाशित किए.

एटाॅर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता के संयुक्त राष्ट्र तक बात पहुंचेगी  वाले तर्क के जवाब में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा – ‘क्या इसका मतलब यह है कि उच्चतम न्यायालय अपना काम न करे? हमें अपने कर्तव्य का पता है’ भाजपा के कुत्सा प्रचार का यही सही जवाब है. कश्मीर हमारा है और कश्मीरी हमारे अपने लोग. इसलिए कश्मीरियों के पक्ष में खड़ा होना हमारा कर्तव्य है.

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियायें

डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता और पिछले वक्त में अमरीकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपनी पार्टी के एक उम्मीदवार बर्नी सैंडर्स ने कहा है कि कश्मीर में भारत का कदम नामंजूर है. कश्मीर में लगे प्रतिबंधों को हटाया जाए. कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर वे काफी चिंतित हैं. उन्होंने यूएन के शांति प्रस्ताव का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि जब से मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला किया है तब से वहां से सूचना सम्पर्क टूट गया है, भारत सरकार को जल्द से जल्द कश्मीर में सूचना तंत्र को शुरू करने की जरूरत है. उन्होंने अमरीकी सरकार से मांग की कि वह इस मामले पर कड़ा रुख अपनाए और मानवीय कानूनों का समर्थन करे.

ब्रिटेन की संसद में 2 सितंबर को कश्मीर के मामले पर ब्रिटेन के विदेश सचिव डाॅमिनिक राब ने कहा ‘‘यह महत्त्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य मानवाधिकारों का मुकम्मल तौर पर सम्मान किया जाए. कश्मीर मामले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद उनके लिए बुनियादी तौर पर सुरक्षा परिषद में स्वीकृत प्रस्तावों और शिमला समझौते के अनुसार समाधान करना है.

मगर मानवाधिकारों का मुद्दा भारत-पाकिस्तान के लिए महज द्विपक्षीय मुद्दा नहीं है बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है. हम अपने तमाम साझीदारों से उम्मीद करते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय तौर पर मानवाधिकारों के मान्य मानकों का सम्मान करेंगे और पालन करेंगे. भारतीय संविधान  के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद से कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के हर आरोप की विस्तृत, तुरन्त और  पारदर्शी जांच होनी चाहिए. साथ ही, भारत में और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों का सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि उनके भी अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ है और खासकर वे अंतरराष्ट्रीय तौर पर सम्मानित व मान्य मानवाधिकारों को स्पर्श करते हैं.

 

न्यूज चैनलों की जुबानी, कश्मीर की कहानी

रायटर्स समाचार ने 9 अगस्त के दिन कश्मीर के अंदरूनी इलाके-सारा में भारी प्रदर्शन की खबर दी, उसके मुताबिक इसमें कम से कम दस हजार लोग थे. इस प्रदर्शन को बीबीसी और अलजजीरा के वीडियो  में भी दिखया गया. अल जजीरा की 4 सितम्बर की रिपोर्ट है – जब से कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किया गया है तब से कश्मीर में हजारों लोग कैद में हैं. दक्षिण कश्मीर के एक गांव में आधी रात को छापा मारकर एक 22 साल के युवक को उठा लिया गया. अन्य दर्जनों कश्मीरियों के साथ-साथ उसे घंटों टाॅर्चर किया गया.

उसने अल जजीरा से टाॅर्चर की पूरी बात सुनाई “मुझे डंडे और बंदूक के कुंदों से पीटा गया, यह कहते हुए कि तुम प्रोटेस्ट मार्च में क्यों गया था. मैं उनसे कहता रहा कि मैं नहीं गया था फिर भी पीटते ही रहे. जब मैं बेहोश हो गया तब बिजली शाॅक लगाया गया. जब उनको ऐसा लगा कि मैं निर्दाेष हूं तब वे पत्थर फेंकने वालों के नाम पूछने लगे, जब मैंने कहा कि मैं नहीं जानता हूं तब उन्होंने फिर पीटना शुरू किया और बिजली शाॅक लगाया. वे मेरी दाढ़ी खीचने लगे और उसमें आग लगाने की कोशिश की. इसी बीच दूसरे ने मेरे सिर पर अचानक मारा जिससे मैं बेहोश हो गया, तब मुझे मरा समझकर मुझे छोड़ दिया और हमारे साथी को कहा इसे घर ले जाओ. घर आने के दो दिन बाद मुझे होश आया. 20 दिन हो गया है लेकिन मैं अभी चल-फिर नहीं सकता”.

श्रीनगर के मेयर ने कहा कि कश्मीर की सड़कों पर लाशें नहीं दिख रही हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि सब सामान्य है. (एनडीटीवी डाॅट काॅम). कश्मीर में आक्रोश बड़ी हिंसा के रूप में फूट सकता है.

(डेक्कन क्रोनिकल डाॅट काॅम, इंटेलिजेंस रिपोर्ट के हवाले से)