वर्ष - 29
अंक - 13
21-03-2020

30 जनवरी, जब कोरोनावायरस का पहला मामला सामने आया, से लेकर 15 मार्च तक भारत में संपुष्ट मामलों की संख्या 110 हो गई है, और दो लोगों की मौत हुई है. भारत सरकार ने इस महामारी पर त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए अंतरराष्ट्रीय यात्राओं में कटौतियां की, विदेशों से आनेवालों और उनसे संपर्कित व्यक्तियों की जांच करवाई, और उनमें वायरस पाया गया तो उन्हें अलग (आइसोलेशन) किया गया और अगर लक्षण संपुष्ट नहीं हुए तो उन्हें क्वारंटाइन में रखा गया. बेशक, इससे महामारी के फैसले की रफ्तार धीमी हुई. लेकिन जैसा कि सरकार जानती है, बदतरीन स्थिति आना अभी बाकी हैै.

जहां रोगियों के आइसोलेशन और क्वारंटाइन जैसे प्रशासकीय कदम और आपस में दूरी बनाकर रखने (सोशल डिस्टेंसिंग) के लिए भारी दबाव अत्यंत स्वागतयोग्य हैं, लेकिन अगर सामूहिक संक्रमण शुरू हो जाता है और महामारी में उछाल आता है, तो ये कदम पर्याप्त साबित नहीं होंगे. सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गई भीषण लापरवाही और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के चलते देश देश के अधिकांश लोग इसकी चपेट में आ जा सकते हैं. ऐसी स्थिति इसलिए भी है, क्योंकि जनता का बहुत बड़ा तबका अपनी न्यूनतम बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्ष कर रहा है और सामाजिक नीतियों के चलते वे खतरनाक हालात में पहुंच गए हैं.

इस किस्म के सामाजिक व आर्थिक संदर्भ में, अगर सरकार हमारे द्वारा पेश किए जा रहे संपूर्ण मांगपत्र पर ध्यान नहीं देगी, तो यह महामारी देश में महाविनाश को जन्म दे सकती है.

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कोरोनावायरस महामारी की विशेषताएं --

‘कोविड-19’ ऐसे रोग का नाम है जो एक खास किस्म के कोरोनावायरस से पैदा होता है, और जो पूरी दुनिया में फैलता जा रहा है. लक्षणों के मामले में यह मौसमी ‘फ्लू’ जैसा ही होता है. लेकिन साधारण फ्लू की बनिस्पत इसमें मृत्यु दर काफी ऊंची रहती है. हालांकि इससे संक्रमित लोगों में से 81 प्रतिशत को महज हलके लक्षण रहते हैं, अन्य 15 प्रतिशत रोगियों में तेज लक्षण दिखते हैं और उन्हें अस्पतालों में दाखिल कर इलाज की जरूरत होती है, और 4 प्रतिशत रोगियों को आइसीयू में देखभाल तथा वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है. 80 वर्ष पार कर चुके लोगों में मृत्यु दर सर्वाधिक है और उम्र कमतर होते जाने के साथ ही यह दर भी काफी कम होती जाती है. तुलनात्मक रूप से बच्चे इससे मुक्त रहते हैं.

हालांकि यह माना जा रहा है कि 1918 में फ्लू महामारी से जैसी स्थिति पैदा हो गई थी, वैसे हालात बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियों के कारण दुबारा उत्पन्न नहीं होंगे, लेकिन यह असंभव भी नहीं है. अगले कुछ महीनों के अंदर इसकी कोई दवा या टीका सामने आने की गुंजाइश नहीं है. इसीलिए, इससे बचने के उपाय वही पुराने हैं – आइसोलेशन, क्वारंटाइन और सोशल डिस्टेंसिंग.

एक बार, अगर सामूहिक संक्रमण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो इसके मामलों में कापफी तेज वृद्धि होगी; और ऐसा इसलिए भी ज्यादा होगा क्योंकि आम जनता के बीच बेजाहिर लक्षण वाले प्रभावितों की संख्या काफी हो सकती है. इस रोग से हमारे देश की 30 से 50 प्रतिशत तक मौजूदा वयस्क आबादी संक्रमित हो जा सकती है. अगर मृत्यु दर 1 प्रतिशत भी हो और गंभीर देखभाल वाले रोगियों की संख्या 4 प्रतिशत भी हो, तो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के कमजोर हो जाने की स्थिति में आने वाले वर्ष में दसियों लाख लोग मौत के शिकार हो सकते हैं.

हम नहीं जानते कि सामूहिक संक्रमण की स्थिति पैदा हो गई है या नहीं, और न ही रोग के फैलाव का स्तर हमें पता है, क्योंकि वायरस की टेस्टिंग (जांच) का मौजूदा दायरा अभी काफी-काफी सीमित है. ऐसी टेस्टिंग के अभाव में रोग का सामूहिक फैलाव बढ़ सकता है और पहचान में आने के पहले ही यह खतरनाक स्तरों तक पहुंच जा सकता हैै.

बहरहाल, एक चिंता का विषय यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ावा देने के नाम पर इस महामारी से बचने की जिम्मेवारी और इसके चलते होने वाले नुकसान को रोकने की जवाबदेही का सारा बोझ जनता के कंधों पर डाल दिया जाएगा, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव कमजोर तबकों पर पड़ेगा. महामारी नियंत्रण का मौजूदा रूख, जो आर्थिक व सामाजिक गतिविधियों की अच्छे-खासे पैमाने पर बंदी की ओर ले जाने वाला है, ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता है और अधिक से अधिक इससे तात्कालिक पफायदा ही हो सकता है. हो सकता है कि यह महामारी अभी नहीं, बल्कि बाद के महीनों में अपने चरम पर पहुंचे. चरम पर पहुंचने में होने वाली यह देरी उपयोगी है, क्योंकि इससे सरकारी अस्पतालों को इससे निपटने के लिए तैयार होने का मौका मिल सकेगा. लेकिन इस बीच अगर अस्पतालों को इस तरह से तैयार नहीं किया गया अथवा जांच की सुविधाएं काफी नहीं बढ़ाई गईं, तो यह देरी अधिसंख्यक जनता के लिए दीर्घकालिक आर्थिक व सामाजिक तकलीफों का सबब बन जा सकती है, तथा स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ने में विलंब हो सकता है लेकिन इसे रोका नहीं जा सकेगा.

विभिन्न समुदायों के लोग जो मुख्य चीज कर सकते हैं, वह यह है कि वे स्वास्थ्य संबंधी अपने व्यवहारों में तेजी से सुधार लाकर खुद की रक्षा करें. इस बात की भी जरूरत है कि जो इस महामारी के चलते स्वास्थ्य की वजह से अथवा आर्थिक रूप से पीड़ित हैं, उनके साथ एकजुटता जाहिर की जाए. विभिन्न जन आंदोलन स्वास्थ्य संबंधी आचरण को सुधारने और एकजुटता बनाने की अपनी भूमिका को भली भांति समझते हैं.

हम केंद्र और राज्य सरकारों से आह्वान करते हैं कि नियंत्रणकारी उपायों के चलते जनता के जीवन और आजीविकाओं पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों तथा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर पर समुचित ध्यान दें, क्योंकि इससे भी उतना ही नुकसान होगा और इसीलिए इसे रोकने की उतनी ही जरूरत है.

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जनता का मांगपत्र

उपर्युक्त परिस्थिति की समझ के आधार पर ‘जन विज्ञान आंदोलन और जन स्वास्थ्य आंदोलन’ ने निम्नलिखित मांगपत्र पारित किया है:

1. सरकार कोरोनावायरस की जांच की सुविधाएं बढ़ाएं. ये जांच सिर्फ उन लोगों की नहीं हो जो विदेश से यात्रा करके लौटे हैं, जिनमें इसके लक्षण दिख रहे हैं और जो इनके संपर्क में आए हैं. डाॅक्टरी रूप से तमाम संदिग्ध व्यक्तियों की जांच होनी चाहिए. इस वायरस के मरीजों को आइसोलेशन में रखना, उनसे संपर्कित लोगों को ढूंढना, और इस वायरस के फैलाव वाले देशों से लौटने वालों को क्वारंटाइन में रखना लंबी अवधि के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं, लेकिन हमारी पूरी व्यवस्था को सामूहिक संक्रमण की स्थिति से निपटने के लिए चाक-चौबंद हो जाना चाहिए.

2. सरकारी अस्पतालों के हालात को सुधार कर सरकार को तेजी से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार कर देना होगा कि वे मरीजों की बाढ़ संभाल सकें और उन्हें अस्पताल की सुविधाएं प्रदान कर सकें. कम से कम हर अस्पताल में एक आइसीयू होना चाहिए, आइसोलेशन वार्ड और वेंटिलेशन के साजो-सामान होना चाहिए, आक्सजीन आपूर्ति की पर्याप्तता होनी चाहिए. प्रासंगिक दवाओं और अन्य चिकित्सा संसाधनों की पर्याप्त आपूर्ति रहनी चाहिए. हम फिर कहेंगे कि चिकित्सा सुविधाओं का ऐसा विस्तार काफी पहले से हो जाना चाहिए था, और इस महामारी ने इस तैयारी को जल्द से जल्द पूरा कर लेने की जरूरत सामने ला दी है.

3. अगर देश के किसी हिस्से में इस महामारी से आपातकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो यह जरूरी होगा कि तमाम मौजूदा चिकित्सा सुविधाओं को एक केंद्रीकृत जिलास्तरीय प्राधिकार के नियंत्रण में ले लिया जाए, जिनमें तमाम निजी अस्पताल भी शामिल हैं. बाजार तंत्र नहीं, बल्कि यह प्राधिकार ही तमाम चिकित्सा सुविधाओं का आवंटन करेगा. महामारी से निपटने की तैयारी के बतौर ऐसे प्रोटोकाॅल तथा प्रशासकीय व वित्तीय उपाय अत्यंत आवश्यक हैं.

4. ‘समेकित रोग निगरानी कार्यक्रम’ को फौरन मजबूत बनाते हुए इस रोग की जांच की क्षमता में काफी वृद्धि करनी चाहिए; और सार्वजनिक तथा निजी, तमाम जगहों से मौसमी फ्लू व अन्य बुखारों से होने वाली मौतों की रिपोर्ट की जानी चािहए. ऐसे विस्तारीकरण के बिना, हम चेतावनी दे रहे हैं कि, देश में पहचाने बगैर ही यह महामारी फैल जा सकती है और जहां इसकी अत्यंत संभावना है, वहां भी इसका सामूहिक संक्रमण हो जा सकता है.

5. दीर्घकालिक उपाय के बतौर हम अपील करते हैं कि हर जिले में सरकारी रोग नियंत्रण केंद्र बनाया जाना चाहिए और वहां पर्याप्त कर्मी व जांच सुविधा की व्यवस्था करनी चाहिए और सावधानी बरतने के उपायों का भरपूर प्रचार किया जाना चाहिए.

6. सुरक्षित कार्य-स्थितियों तथा स्वास्थ्य-सुविधा से जुड़े पर्याप्त उपकरणों वे स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता की गारंटी हो. ये सुविधाएं सिर्फ अस्पतालों में नहीं, बल्कि घरेलू क्वारंटाइन व आइसोलेशन की देखभाल करने वाले सभी कर्मियों को मिलनी चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि इन अगुवा स्वास्थ्य कर्मियों व मरीजों को कारगर मास्क और सैनिटाइजर मुहैया कराए जाएं.

7. बड़े पैमाने पर फैलाव की हालत में कम मात्रा में मौजूद संसाधनों का वितरण उच्चतम कीमतों पर नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के साफ-सुथरे मूल्यांकन के आधार पर किया जाना चाहिए. दवाओं और वैक्सिन संबंधी वैज्ञानिक विकासों के मामले में अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी आवश्यक है, तथा संभावित इलाज सामग्रियों के उत्पादन को सीमित करने वाले पेटेंट एकाधिकार को रोकने पर भी ध्यान देना होगा.

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सोशल डिस्टेंसिंग और मानवाधिकार

8. सार्वजनिक शिक्षण व अपील के जरिए ही सोशल डिस्टेंसिंग लागू किया जाना चाहिए. इसके लिए उत्पीड़नकारी उपाय अपनाना अनुचित और अनुपयोगी होगा. बड़ी जुटानों तथा सामाजिक, धार्मिक, खेल-कूद संबंधी, सांस्कृतिक या राजनीतिक कार्यक्रमों को कुछ और समय तक रोका जा सकता है; लेकिन इन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए.

9. घरेलू क्वारंटाइन में रहने वाले लोगों के लिए सक्रिय सामुदायिक समर्थन और उन तक जरूरी सेवाओं को पहुंचाने की व्यवस्था जरूरी है. यह उनके लिए भी जरूरी है जिनके सामाजिक सुरक्षा लाभों में कटौतियां हुई हैं या ये बंद हो गए हैं और उन्हें बुनियादी सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं. क्वारंटाइन में रहने वलो लोगों केा अन्य किस्म की भी बीमारियां हो सकती हैं और उनकी देखभाल व इलाज की जरूरत होगीअनेक बच्चों के लिए पूरक पोषाहार कार्यक्रम चलाना भी जरूरी होगा, खासकर उनके बच्चों के लिए जिनकी आजीविका क्षतिग्रस्त हुई है. किसी वैकल्पिक व्यवस्था के बगैर ऐसी सेवाओं को बंद करना अनुचित होगा.

10. अगर बड़े पैमाने पर लोगों को बंदी या क्वारंटाइन का सामना करना पड़ जाए, तो यह सुनिश्चित करना होगा कि मानवीय ढंग से और मानवाधिकारों के हनन के बगैर यह काम पूरा किया जाए. सरकारों को चाहिए कि वे मानवाधिकार संस्थाओं, नागरिक समाज संगठनों और ट्रेड यूनियनों का सक्रिय सहयोग हासिल करे, जो समाज के सबसे कमजोर तबकों की समस्याओं और उनकी देखभाल के स्तर की निगरानी करेंगे और सरकारों को रिपोर्ट देंगे.

11. इस महामारी और इसके नतीजों की रिपोर्टिंग करने के लिए मीडिया की स्वतंत्रता को हर समय सुनिश्चित करना होगा. बहरहाल, रोग के फैलाव की प्रकृति, संक्रमण के स्रोत या इलाज आदि के बारे में संदेश प्रसारित करते वक्त न्यूज मीडिया को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह सरकारी चैनलों, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था चैनलों अथवा विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करे. अगर सूचनाएं किसी अन्य स्रोत से आती हैं तो उनके साथ यह डिस्क्लेमर जरूर संलग्न रहना चाहिए कि इन सूचनाओं की जांच नहीं हुई है और ये झूठी भी हो सकती हैं. मीडिया की स्वतंत्रता पर सीधा-सीधी प्रतिबंद गैर-जरूरी है और इसे रोका जाना चाहिए.

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कारण और नतीजों के बतौर आर्थिक असमानताओं पर ध्यान देना

12. रोजमर्रे की आर्थिक गतिविधियों को बरकरार रखना  – जिसका मुख्य मतलब है बहुसंख्यक आबादी की आजीविका को सुरक्षित करना – निहायत गौरतलब है और इसपर सार्वजनिक शिक्षा को भी प्राथमिकता के बतौर अमल किया जाना चाहिए. ऐसे समयों में सार्वजनिक शिक्षा को भी एकजुटता निर्मित करने की जरूरत पर ध्यान देना चाहिए. आजीविका के नुकसान से वेतनभोगी तबकों और समृद्ध लोगों की बनिस्पत कामगार लोगों व गरीबों को कहीं ज्यादा आर्थिक चोट पहुंचती है, इस बात को समझने की जरूरत है. जो लोग घरेलू क्वारंटाइन में हैं या सार्वजनिक बंदी की चलते जिनकी आजीविका प्रभावित हुई है, उन लोगों के लिए सामुदायिक सहयोग और नियोजकों की ओर से सहायता काफी जरूरी है.

13. सार्वजनिक व्यय में फौरन वृद्धि की जानी चाहिए जिससे मांग पक्ष मजबूत हो सके. इसके लिए सामाजिक सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा उपायों – जैसे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार और नगदी हस्तांतरण आदि – को बढ़ाने की जरूरत है. आर्थिक संचय को तेज करने, लेकिन आजीविकाओं को नष्ट करने वाली एक दशक से चल रही आर्थिक नीतियों का दुष्प्रभाव झेलने वाले बहुसंख्यक अवाम की आजीविका पर इस महामारी के हमले को समझने और इसका समाधान निकालने की भी आवश्यकता है. काॅरपोरेट जगत इस संकट से जूझ रहा है, उससे उबारने के लिए उन्हें और ज्यादा रियायत देने तथा दूसरी ओर कामगार अवाम के लिए कमखर्ची के उपाय लादने से बेहद बुरा नतीजा निकलेगा और विषमता बढ़ेगी.

(जन स्वास्थ्य अभियान और अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क द्वारा जारी)

 

पटना स्टेशन स्थित न्यू मार्केट को कचरा डंपिंग ग्रांउड बनाने का विरोध

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस जनित महामारी की चपेट में है और इस वजह से साफ-सफाई पर खासा ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन, पटना के सबसे व्यस्त व व्यावसायिक गतिविधियों वाले इलाके न्यू मार्केट एरिया को कचड़े के ढेर में बदल दिया गया है. राजधानी पटना में स्मार्ट सिटी परियोजना के नाम पर कुछ दिन पहले यहां सैंकड़ों गरीब दुकानदारों की दुकानों को तोड़ दिया गया था. यह कहा गया था कि उपरोक्त 8 एकड़ जमीन पर स्मार्ट सिटी से संबंधित निर्माण कार्य किया जाएगा.

कई महीने बीत जाने के बाद भी निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने की बात तो दूर उल्टे इसी जगह शहर का कचरा जमा किया जा रहा है. इस वजह से पूरा इलाका दुर्गंध से भर गया है. इसी इलाके में पटना स्टेशन सहित शहर की सबसे पुरानी मस्जिद व हनुमान मंदिर भी है. यहां से होकर प्रतिदिन हजारों लोगों का आना-जाना होता है. कचरा के लगातार सड़ने से कई तरह की बीमारियों के फैलने की पूरी संभावना है. एक ओर तो गंदगी का यह अंबार है, वहीं दूसरी ओर बेरोजगार हो चुके दूकानदारों व फूटपाथी दुकानदारों का सर्वेक्षण कर उनको रोजगार देने की चर्चा ही बंद है. उल्टे, जीपीओ चौराहे से लेकर स्टेशन चौराहे तक दुकानदारों से पार्किंग के नाम पर अवैध वसूली भी की जा रही है.

भाकपा(माले) विधायक दल नेता का. महबूब आलम ने विगत 19 मार्च 2020 को जिलाधिकारी से मुलाकात कर यू मार्केट इलाके को कचरा डंपिंग ग्राडंड में बदलने पर रोक लगाने हेतु नगर विकास आयुक्त को आवश्यक निर्देश देने की मांग की. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व विधानसभा अध्यक्ष को भी इस मामले से अवगत कराया है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.