वर्ष - 29
अंक - 1
30-12-2019

दोस्तो,

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कई जगहों पर इन्टरनेट बंद कर दिया गया है, सड़कों पर आना जाना तक सरकार रोक रही है, मेट्रो बंद कर दी जा रही है, देश भर में धारा 144 थोपी जा रही है, छात्रों एवं सभी प्रदर्शनकारियों पर बर्बर दमन ढाया जा रहा है, गोलियां चलाई जा रही हैं, कितनों को अंधा और अपंग बना दिया गया है, यहां तक कि बहुत सी जानें जा चुकी हैं.

आखिर चल क्या रहा है ?

क्या कहीं ‘दंगा’ हुआ था ? किसी ने कुछ ‘बबाल’ किया था, या कुछ फसाद हुआ था ?

ऐसा कुछ नहीं हुआ था. प्रदर्शनकारी पूरी तरह शांतिपूर्वक थे. कहीं भी समुदायों की बीच आपसी तनाव नहीं हुआ था. ये केवल मोदी सरकार और कई राज्यों की भाजपा सरकारें हैं जो लोगों पर हमला कर रही हैं और आम जनजीवन को अस्तव्यस्त कर रही हैं.

जो प्रदर्शन चल रहे हैं उनके माध्यम से प्रदर्शनकारी हमारे देश, हमारी नागरिकता, और डा. भीमराव अम्बेडकर के संविधान को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. भाजपा देश, नागरिकता और संविधान की भी नोटबन्दी करना चाहती है.

‘आपका वोट, नागरिकता और भारत के संविधान पर नोटबंदी जैसा खतरा मंडरा रहा है’. मोदी-शाह की सरकार राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) तैयार कर रही है जो हरेक को दस्तावेज दिखा कर नागरिकता साबित करने के लिए लाइन में खड़ा कर देगा.

एनआरसी का मतलब हैः कि प्रत्येक पुरूष, महिला व बच्चा व्यक्तिगत तौर पर अपनी नागरिकता का सबूत दे.

कैसे साबित करेंगे कि आप नागरिक हैं? और क्यों साबित करें? क्या वोटर आई कार्ड या आधार कार्ड से काम चल जायेगा?

नहीं. आपको ऐसे दस्तावेज दिखाने होंगे जिनसे यह साबित हो कि –

1. आपके पूर्वज 1951 से पहले भारत में थे.
2. आप उनके वंशज हैं.

हमारे देश में गरीबों के पास इतने कागजात नहीं होते कि वे अपनी गरीबी का सबूत दे सकें और बीपीएल कार्ड पा सकें – इसीलिए बहुतों को राशन कार्ड नहीं मिल पाते. बहुत से गरीब लोग आधार कार्ड तक नहीं पा सके, जिसके कारण कईयों की राशन और पेंशन के अभाव में मौतें तक हो चुकी हैं.

हमारी नागरिकता संकट में

यह सरकार हमारे देश में हमारी नागरिकता को संकट में डाल रही है.

एनआरसी की ऐसी ही कवायद में असम में 19 लाख से ज्यादा लोग लिस्ट से बाहर कर दिये गये. ये लाखों लोग ‘गैरकानूनी घुसपैठिये’ नहीं थे, बल्कि इसलिये बाहर हो गये क्योंकि वे गरीब थे और उनके पास दिखाने के लिए कोई दस्तावेज नहीं था. कई मामलों में पत्नियां एनआरसी से बाहर कर दी गयीं जबकि उनके पतियों का नाम लिस्ट में आ गया था, या बच्चों की नागरिकता नहीं मानी गयी जबकि माता-पिता का नाम लिस्ट में था. अब जो नाम एनआरसी की लिस्ट में नहीं आ पाये हैं उनका भविष्य अंधकारमय है. जो एनआरसी से बाहर रह गये हैं उनमें बड़ी संख्या में हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी, आदिवासी, महिलायें, और अन्य राज्यों से आये प्रवासी मजदूर भी हैं. समाज के हर तबके के लोग इसमें शामिल हैं.

मोदी और अमित शाह इसी कवायद को अब पूरे देश में करवाना चाहते हैं. उन्होंने राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर (एनपीआर) बनवाने का काम शुरु भी करवा दिया है, यह एनआरसी बनाने की दिशा में पहला कदम है.

अमित शाह अपने भाषणों में बार बार बोल रहे हैं कि वे एनआरसी से बाहर रह गये लोगों में से मुसलमानों और गैरमुसलमानों को नागरिकता संशोधन कानून द्वारा छान कर अलग अलग कर देंगे.

अगर आप मुसलमान हैं और दस्तावेज न होने के कारण एनआरसी की सूची से बाहर रह गये हैं तो आप हमेशा के लिए वोट करने का अपना अधिकार खो देंगे और आपको किसी डिटेन्शन केन्द्र में, जो जेल से भी बदतर होगा, में डाल दिया जायेगा.

अगर आप गैरमुसलमान हैं और दस्तावेज न होने के कारण आपका नाम एनआरसी लिस्ट से बाहर कर दिया गया है तो नागरिकता संशोधन कानून के तहत आपके पास पाकिस्तान, बंगलादेश या अफगानिस्तान से आये – ‘शरणार्थी’ के रूप में अपना दावा पेश करने का अधिकार होगा –. और अपने देश में ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के बाद सरकार आपके बारे में फैसला करेगी कि 6 साल बाद आपको नागरिकता मिलेगी अथवा नहीं.

अब आप कहेंगे कि नागरिकता संशोधन कानून तो भारत के नागरिकों के लिए नहीं बनाया गया, यह तो पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आये गैरमुस्लिम आप्रवासियों जो 31 दिसंबर से पहले भारत आये थे, को नागरिकता देने के लिए बनाया गया है? क्या हमें पड़ोसी देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की मदद नहीं करनी चाहिए? इस सवाल के दो जवाब है, जरा ध्यान दीजिए –

1. सभी शरणार्थियों की मदद करनी चाहिए. शरणार्थियों को धर्म और राष्ट्र के आधार पर बांटने की क्या जरूरत है? श्रीलंका के तमिल हिन्दुओं, मुसलमानों और ईसाइयों – जो भारत में सन 1984 से रह रहे हैं – के लिए भी यही प्रावधान क्यों लागू नहीं होने चाहिए? म्यांमार में उत्पीड़न झेल कर भागने को मजबूर रोहिंग्या मुसलमानों पर भी यह लागू हो.

2. नागरिकता संशोधन कानून में जो 31 दिसंबर 2014 की कट-आॅफ तारीख तय की गई है उसके अनुसार ’केवल 31,313 लोग इस कानून से लाभान्वित होंगे’. आईबी (इंटेलिजेन्स ब्यूरो) ने खुद 2016 में एक संसदीय समिति की सुनवाई में इस संख्या को बताया है. अगर सरकार 31,313 लोगों को नागरिकता देना चाहती है तो वह बिना नागरिकता कानून में संशोधन किये भी यह कर सकती है.

एनआरसी-नागरिकता संशोधन कानून (एनआरसी-सीएए) के पीछे की असल मंशा यह है कि मुसलमानों को उनके अपने ही देश की नागरिकता से वंचित कर दिया जाय, और गरीब गैर-मुसलमान अपने ही देश में शरणार्थी बन कर रह जायें.

याद रखिये ये वे मुसलमान हैं जिन्होंने 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान जाने से अच्छा भारत को समझा और वे यहीं के बन कर रहे. कितनी शर्म की बात है कि आज मोदी-शाह की सरकार उन्हें ‘दीमक’ और ‘घुसपैठिया’ कह रही है!

डा. अम्बेडकर ने संविधान बनाते समय मुसलमान, हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्घ, यहूदी और अन्य सभी को बराबर का अधिकार दिया’. ’आरएसएस हमेशा देश के संविधान से नफरत करता रहा है’. भाजपा चाहती है कि हमारे दिमागों में जहर भर दिया जाय और भारत को हिन्दू और मुसलमान में बांट दिया जाय. ऐसे बंटवारे से देश कमजोर हो जायेगा और हर देशवासी का नुकसान होगा. अगर कोई हमारे पड़ोसी का घर जलायेगा तो जाहिर है कि आग हमारे घर में भी पहुंचेगी ही. हमें हर हाल में एकजुट होकर अपने घर को बचाना है.

मोदी की नोटबंदी ने हमारे रोजगार और अर्थव्यवस्था को तबाह किया था. अब यह सरकार संविधान को नष्ट करके देश को बांटना चाहती है. देश को एक और तबाही की ओर ले जाया जा रहा है. हम सब मिल कर इस सरकार को ऐसा करने से हर हाल में रोकेंगे.

असम में एनआरसी की कवायद में 1600 करोड़ रुपये खर्च हुये, पूरे दस साल लगे और 52000 कर्मचारी इस काम में लगाये गए थे. लाखों बेगुनाहों और गरीबों को जो पीड़ा और कष्ट हुआ उसका हिसाब लगा पाना तो सम्भव नहीं है. अगर पूरे देश में एनआरसी कराई जाये तो उसमें कम से कम 50000 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है. और कम से कम दस सालों तक भारत की जनता को अपने दस्तावेज खोजने, बनाने और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने की अफरा-तफरी में बरबाद करने होंगे. यह बेहद अनावश्यक और क्रूरतापूर्ण काम होगा.

एनआरसी-नागरिकता संशोधन कानून पर इतना धन बर्बाद करने की क्या जरूरत है? अगर इतनी भली सरकार है तो एनआरसी की जगह वह बेरोजगारों का रजिस्टर क्यों नहीं बना देती – और बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता या नौकरी क्यों नहीं दे देती?

सरकार नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रही जनता पर भयानक दमन ढा रही है. अभी तक पुलिस की हिंसा में 20 लोग मारे जा चुके हैं. इनमें से 15 लोग, जिनमें एक 8 साल का बच्चा भी शामिल है, तो केवल उत्तर प्रदेश में मारे गये हैं. ’आखिर क्यों सरकार भारत में एनआरसी-सीएए लागू करने के लिए इतने लोगों की जानें तक लेने पर आमादा है’?

भाजपा का प्रचार हो रहा है कि प्रदर्शनकारी हिंसा कर रहे हैं – जबकि ऐसे वीडियो और फोटो सामने आ रहे हैं जिनमें पुलिस वाले वाहनों में आग लगा रहे हैं और पत्थर फेंक रहे हैं, ताकि प्रदर्शनकारियों को बदनाम किया जा सके.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि ‘उपद्रवियों को उनके कपड़ों से पहचानिये’ – उनका इशारा मुसलमानों की ओर था. असलियत क्या है? पश्चिम बंगाल में लुंगी और टोपी पहन मुसलमानों जैसा वेश बना भाजपा के सदस्य ट्रेन पर पत्थर फेंकते पकड़े गये.

सच्चाई यह है कि पूरे देश की जनता सरकार का विरोध कर रही है, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, सभी भाषाओं और सभी धर्मों के लोग विरोध में खड़े हैं. भारत के लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए वे सभी एकजुट हैं.

देश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हो रहा है. इससे डर कर अब भाजपा यह कह कर कि नागरिकता संशोधन कानून का एनआरसी के साथ कोई संबंध नहीं है, जनता को भ्रमित करने की कोशिश कर रही है. वे यह भी कह रहे हैं कि अखिल भारतीय स्तर पर एनआरसी कराने के लिए आपसे 1951 के दस्तावेज नहीं मांगे जायेंगे, बल्कि वोटर आई कार्ड जैसे दस्तावेजों से काम चला लिया जायेगा. अगर यही बात है तो एनआरसी की इतनी बड़ी कवायद करने की जरूरत ही नहीं है! अरे भई, मतदाता सूची और आधार का पूरा का पूरा डाटाबेस तो सरकार के पास पहले से ही मौजूद है!

याद रखिये, हमारे ऊपर जबरदस्ती थोपा गया नागरिकता संशोधन कानून अपने आप में असंवैधानिक है और इसीलिए इसका विरोध हो रहा है. राष्घ्ट्रव्यापी विरोध के आगे अब भाजपा इस कानून को बचाने के लिए बहाना बना रही है कि इसका एनआरसी के साथ कोई संबंध नहीं है. सच यह है कि नागरिकता संशोधन कानून की कोई जरूरत ही नहीं है. भारत में पहले से ही नागरिकता कानून है जिसके तहत किसी भी शरणार्थी या आप्रवासी को नागरिकता दी जा सकती है. यह संशोधन हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान में साम्प्रदायिक नफरत का छेद बनाने के लिए किया गया है. और इसीलिए यह हमें मंजूर नहीं.

आप क्या कर सकते हैं?

तथ्यों को जानिये, और सच को पहचानिये. अपने परिवार और दोस्तों समेत शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो जाइये.

हर गली, कूचे, मुहल्ला, कालोनी, गांव, शहर और महानगर में लोगों को संगठित करिये और –

1. नागरिकता संशोधन कानून को रद्द करने की मांग उठाइये.

2. मांग कीजिए कि आपकी राज्य सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की कार्यवाही तत्काल रोक दे और एनआरसी न होने दे.

3. मांग कीजिए कि केन्द्र एवं राज्यों की सरकारें डिटेन्शन केंद्रों के निर्माण को तत्काल रोके.

4. एनपीआर का बहिष्कार करें. क्योंकि वे ऐसी जानकारी हमें कोई सुविधा, घर या नौकरी देने के लिए नहीं, बल्कि हमारी नागरिकता छीनने के लिए मांगेंगे.

5. सबसे बड़ी बात कि संगठित रहें, एकजुट रहें. अगर कोई आपको किसी अन्य समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने और हिंसा करने के लिए भड़काता है तो उसे साफ-साफ बता दीजिए कि हमारी शक्ति एकता में है, आपस में बंट जाने में हमारा ही नुकसान होगा. हम सब संविधान की रक्षा करने के लिए संगठित हों. और पुलिस या साम्प्रदायिक ताकतों की हिंसा का शिकार अगर हमारे मुसलमान पड़ोसी बन रहे हों तो उनकी मदद करने में कोई कोताही न बरतें और उनकी सुरक्षा करें.

6. मांग करें कि सरकार शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर दमन बंद करे, इंटरनेट को बैन करना, सार्वजनिक परिवहन पर रोक लगाना और धारा 144 लगाना बंद करे. शांतिपूर्ण प्रदर्शन हमारा संवैधानिक अधिकार है.

व्यापक देशव्यापी जनप्रतिरोधों और अंतर्राष्ट्रीय जगत में हो रही आलोचनाओं से डर कर मोदी सरकार अखिल भारतीय एनआरसी से कुछ पीछे हटती दिख रही है. अमित शाह और भाजपा-आरएसएस के अनेकों नेता लगातार यह कहते रहे हैं कि 1951 को कट-आॅफ ईयर (बेस ईयर) के साथ अखिल भारतीय एनआरसी कराई जायेगी और उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून लागू होगा. अब यदि सरकार के लोग बोल रहे हैं कि एनआरसी के बारे में अभी तक पूरी योजना ही नहीं बनी है, तो इसका एक ही मतलब है कि सरकार जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है ताकि लोगों का ध्यान बंटे व उनका गुस्सा कम हो जाय. हम फिर से कहना चाहते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी एक ही पैकेज के दो पहलू हैं, और एनआरसी को अलग कर देने के बाद भी नागरिकता संशोधन कानून स्वीकार्य नहीं हो सकता. ऐसा कानून पूरी तरह से साम्प्रदायिक और असंवैधानिक है जो धर्म देख कर तय करे कि किसे शरणार्थी बनाया जाय और किसे घुसपैठिया कहा जाय. इस प्रकार नागरिकता के मामले में किसी धर्म विशेष के साथ भेदभाव करे. यह आजादी के आन्दोलन से तप कर बने आज के हिन्दुस्तान के विरुद्ध भाजपा का हमला है. यह उस भारत के खिलाफ हमला है जिसकी गारंटी हमारा संविधान करता है. यह हमारी बहुलता, हमारी विविधता और हम सबके भाईचारे की संस्कृति और विरासत पर हमला है. इसलिए भारत, हमारा देश नागरिकता कानून में लाये गये भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी संशोधन को कभी स्वीकार नहीं करेगा. सरकार अब जो भी बोले नागरिकता कानून-एनआरसी-एनपीआर के इस पैकेज के खिलाफ जनता का आन्दोलन तब तक चलता रहेगा जब तक सरकार इस विभाजनकारी साजिश को पूरी तरह से वापस नहीं ले लेती.

–  भाकपा(माले) द्वारा जारी