वर्ष - 29
अंक - 4
18-01-2020

12 जनवरी स्वामी विवेकानंद की जन्मवार्षिकी है. सन् 1984 से इसी दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.  हताशा से बेताब नरेन्द्र मोदी ने इस दिन को भी हथियाने की कोशिश में कोलकाता के नजदीक स्थित बेलूर मठ का दौरा किया, जहां रामकृष्ण मठ और मिशन का मुख्यालय स्थित है. वहां जाकर मोदी ने भारतीय नागरिकता कानून में किये गये सम्पूर्णतः असंवैधानिक और विभाजनकारी संशोधन के पक्ष में भाषण दिया. उनके भाषण में वह सारी ड्रामेबाजी और जुमलेबाजी मौजूद थी जिसका इस्तेमाल आम तौर पर मोदी अपनी चुनावी रैलियों में करते हैं, हालांकि यहां उसका पैमाना थोड़ा घटा हुआ था. यह ऐतिहासिक बेलूर मठ, जिसकी स्थापना स्वयं स्वामी विवेकानंद ने एक सौ बीस वर्ष से भी ज्यादा अरसे पहले की थी, शायद इससे पहले कभी इतनी अधिक निर्लज्जतापूर्ण विडम्बना का साक्षी नहीं रहा होगा.

मोदी ने अपनी पिछली रात बेलूर मठ के परिसर में ही बिताई थी और श्रोताओं को सम्बोधित करने से पहले उन्होंने थोड़ा समय स्वामी विवेकानंद के अपने कक्ष में “साधना” करने में बिताये. उनके श्रोताओं में अधिकांशतः रामकृष्ण मिशन के ही छात्र थे. विवेकानंद ने अपने ऐतिहासिक शिकागो भाषण में जो गुरु-गंभीर घोषणा की थी वह आज भी समूचे भारत में गूंज रही है: “मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश का निवासी हूं जिसने सभी युगों में दुनिया के सभी धर्मों और राष्ट्रों के सताये हुए लोगों को शरण दी है.” और यहीं मोदी विवेकानंद का नाम केवल इसलिये ले रहे थे कि उनको अपने अड़ियलपन के साथ एक ऐसे कानून का बचाव करना था जो पड़ोसी देशों में सताये गये शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात करते वक्त उसमें मुसलमानों को स्पष्ट रूप से बाहर कर देता है! कोई आश्चर्य नहीं कि रामकृष्ण मिशन के अधिकारियों को अब अपने सम्माननीय “अतिथि” द्वारा दिये गये भाषण से अपनी दूरी बनाने को मजबूर कर दिया है.

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के द्वारा भी नागरिकता संशोधन कानून की कड़ी आलोचना की गई है क्योंकि इसके जरिये भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान में स्पष्ट रूप से धार्मिक भेदभाव को घुसा दिया गया है. भारत में हिंसक भीड़-गिरोहों द्वारा, जिनको शासक राजनीतिक प्रतिष्ठान और राजसत्ता, दोनों का आशीर्वाद मिला हुआ है, चुन-चुनकर प्रणालीबद्ध ढंग से मुसलमानों को निशाना बनाये जाने पर भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बढ़ती चिंता जाहिर की है. और ठीक इसी वक्त लोगों को नागरिकता संशोधन कानून की आवश्यकता के बारे में “समझाने-बुझाने” के नाम पर भाजपा के नेतागण उनको सबक सिखाने की धमकियां दे रहे हैं –  कि भारत अब गांधी और नेहरू का देश नहीं रहा, अब यह मोदी और शाह का देश है, जहां अगर नेतृत्व की ओर से कभी हरी झंडी दिखा दी गई तो सिर्फ एक रात में पलक झपकते ही समूचे मुसलमानों को खत्म कर दिया जा सकता है. पश्चिम बंगाल की भाजपा राज्य इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने घोषणा की है कि प्रतिवादकारियों को “गली के कुत्तों की तरह गोली मार देनी चाहिये”, जैसा कि वे गर्व से कहते हैं कि भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में अमल में किया भी जा रहा है. और यहां मोदी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का यह कहकर बचाव कर रहे हैं कि यह एक ऐसी कानूनी पहलकदमी है जिसने पाकिस्तान को अपने यहां अल्पसंख्यकों के प्रति दुर्व्य़वहार के लिये जवाबदेह ठहरा दिया है!

पश्चिम बंगाल का दौरा करने से पहले मोदी को कार्यक्रम के मुताबिक असम का दौरा करना था, वहां “खेलो इंडिया” युवा खेलकूद कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिये. मगर वहां लगातार जारी सीएए-विरोधी व्यापक जन-प्रतिवादों को देखते हुए मोदी को अपना दौरा रद्द करना पड़ा. एक ऐसे राज्य में, जहां खुद उनकी अपनी पार्टी की सरकार है, मोदी को दूसरी बार अपना महत्वपूर्ण दौरा रद्द करना पड़ा है –  पहला मौका तब था जब दिसम्बर के मध्य में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के साथ उनको शिखर वार्ता में भाग लेना था. पश्चिम बंगाल में भी मोदी का स्वागत “मोदी गो बैक” के गरजते नारों के साथ हुआ और जब तक मोदी बंगाल में रहे, समूचे राज्य में उनके खिलाफ प्रतिरोध कार्यक्रम चलते रहे, जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आश्चर्यजनक रूप से “राजनीतिक भद्रता” के नाम पर ‘राज भवन’ जाकर राज्यपाल के कार्यालय में मोदी से व्यक्तिगत मुलाकात करने का फैसला किया. और मोदी ने सोचा कि बेलूर मठ में दिया गया उनका भाषण पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों के “भटकाये गये युवकों” को सही संदेश देगा!

नागरिकता संशोधन कानून से परे, मोदी ने अपने भाषणों में और किसी भी विषय पर बात ही नहीं की. एक ऐसे समय, जब भारत में बेरोजगारी ने अपने पिछले पचास वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है, मोदी ने अपने भाषण में बेरोजगारी शब्द का कत्तई कोई नाम तक नहीं लिया. एक ऐसे समय में जब उच्च शिक्षा एवं शोध के लगभग हर सुप्रसिद्ध संस्थान में छात्र समूह, जामिया, अलीगढ़ और जेएनयू पर किये जा रहे बर्बर हमलों का मुकाबला करते हुए संविधान की रक्षा में उठ खड़े हुए हैं, मोदी ने विश्वविद्यालयों पर किये जा रहे इन हमलों के खिलाफ निंदा का एक शब्द भी नहीं बोला. उन्होंने चारों ओर से घेरे में फंसे छात्रों एवं शैक्षणिक समुदाय के अपने सपनों को साकार करने के अधिकार के बारे में आश्वासन का एक शब्द तक नहीं कहा. और उन्होंने “डिजिटल इंडिया” के लक्ष्य को हासिल करने के लिये भारत के युवाओं को “बधाई” देने के लिये ऐसा वक्त चुना जब समूची दुनिया भारत के इंटरनेट शटडाउनों (बंदी) की वैश्विक राजधानी बन जाने के बारे में बातें कर रही है!

अब भारत में बर्बर राजकीय दमन, शासक निजाम के सशस्त्र गुंडा गिरोहों द्वारा किये जा रहे तूफानी हमलों और मुख्यतः विरोधी प्रतिक्रिया जाहिर करने वाले मीडिया का मुकाबला करते हुए लगातार जारी और क्रमशः बढ़ते प्रतिवादों का एक महीने से भी ज्यादा अरसा गुजर चुका है. जहां लगता है कि मोदी-शाह सरकार और संघ ब्रिगेड देश के बंटवारे के दिनों की प्रचंड साम्प्रदायिक हिंसा और विशाल जन-समूह के स्थानांतरण के दर्दभरे घावों को फिर से ताजा करने पर तुले हुए हैं, वहीं प्रतीत होता है कि नागरिकता संशोधन कानून ने समाज के विविध किस्म के तबकों के दिलों में लोकतंत्र और आजादी की असली आग को धधका दिया है. यही वह आग है जिसने ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत 8 जनवरी की आम हड़ताल को वस्तुतः भारत बंद में तब्दील कर दिया; यही आग है जो इस निष्ठुर जाड़े में भी शाहीन बाग की औरतों को गर्मजोशी से भरपूर बनाये हुए है और जो समूचे भारत में कई और शाहीन बागों को जन्म दे रही है; इसी आग ने भारत के संविधान की प्रस्तावना के भूले-बिसरे शब्दों को हमारे जमाने के नये घोषणापत्र में बदल दिया और “आजादी” के नारों को “हम भारत के लोगों” के लिये सच्ची लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिये नये रणघोष में तब्दील कर दिया है. स्पष्ट है कि वर्ष 2020 भारत के लिये 1947 के बाद अब तक का सबसे विशाल महत्व का वर्ष होने का वादा कर रहा है. अगर भारत ने 1947 में एक खंडित स्वतंत्रता हासिल की थी, तो आइये 2020 को एक ऐसा वर्ष बना दें जिसमें भारत अपने संविधान और अपनी जनता पर हो रहे फासिस्ट हमले को शिकस्त देने के लिये निर्णायक रूप से लोकतंत्र को बुलंदी पर पहुंचा दे.