वर्ष - 29
अंक - 3
11-01-2020

पार्टी की दिल्ली राज्य कमेटी और ऐक्टू के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य व दिल्ली राज्य उपाध्यक्ष का. मथुरा पासवान (9.7.1953–8.1.2020) का 8 जनवरी 2020 को सुबह 5 बजे हृदय गति रुक जाने से अपने पैतृक गांव सिंघाड़ा कोपा (दुल्हिन बाजार, पटना) में निधन हो गया.

गरीब परिवार में जन्मे का. मथुरा पासवान 1981 में पार्टी से जुड़े थे. उस समय मध्य बिहार के गांव-गांव में जन कल्याण समिति के बैनर से सामंती उत्पीड़न के खिलाफ और गरीबों के मान-सम्मान के लिए संघर्ष चल रहा था. कामरेड मथुरा जी उन संघर्षों में कूद पड़े और जल्द ही जन कल्याण समिति के प्रखंड प्रभारी और जब 1982 में बिहार प्रदेश किसान सभा का गठन हुआ, तो किसान सभा के प्रखंड अध्यक्ष बनाए गए. उन्होंने अपने इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय पर सामंती-सांप्रदायिक हमले के खिलाफ जनता को लामबंद किया और कब्रिस्तान के लिए आरक्षित सार्वजनिक जमीन पर सामंती ताकतों के कब्जे के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने आम जन को भी अल्पसंख्यकों के समर्थन में गोलबंद किया.

आजीविका की तलाश में वे 1984-85 में दिल्ली चले गए और वहां आजादपुर सब्जी मंडी में मुंशी के बतौर काम करने लगे. जल्द ही वे वहां पार्टी से जुड़ गए और मंडी मजदूरों के संघर्ष का नेतृत्व करने लगे. वे आॅल इंडिया जेनरल कामगार यूनियन के मंडी ब्रांच के अध्यक्ष बने और अंत समय तक वे इस पद पर बने रहे. 2007 में मथुराजी को दंडित किया गया और उन्हें काम से निकाल दिया गया. लेकिन उन्होंने दिलेरी से अपना यूनियन कार्य जारी रखा. जल्द ही वह इलाका मतदूर वर्ग आन्दोलन का प्रमुख केंद्र बन गया. वे 2009 के लोकसभा चुनाव में बाहरी दिल्ली क्षेत्र से भाकपा(माले) उम्मीदवार के बतौर चुनाव भी लड़े.

अपने कठिन कठोर कार्य और हंसमुख स्वभाव के चलते पार्टी के अंदर और बाहर के लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय थे. उन्होंने अनेक लोगों को पार्टी सदस्य बनाया जिनमें कई तो आज उस इलाके के पार्टी नेता की भूमिका अदा कर रहे हैं. जनता औा पार्टी के लिए उनकी प्रतिबद्धता हम सब के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी.

वजीरपुर इलाके के हजारों मजदूरों ने एक साथ खड़े होकर और दिल्ली के शहीद चैक पर 8 जनवरी को एकत्रा तमाम ट्रेड यूनियनों के लोगों ने उन्हें दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि दी. भाकपा(माले) के बिहार राज्य सचिव का. कुणाल और पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य अमर सैकड़ों कार्यकर्ताओं व समर्थकों के साथ 8 जनवरी को उनके गांव में उनकी अंतिम यात्रा में शामिल थे. दो भाइयों में बड़े का. मथुरा जी अपने पीछे तीन बेटियों व दो बेटों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं.

का. मथुरा जी की संघर्षशील विरासत जिंदाबाद!