वर्ष - 29
अंक - 2
04-01-2020

हमारे संविधान में इस बात की गारंटी की गई है कि भारत के लोग वोट देकर अपनी सरकार चुनें और उसे अपने हिसाब से चलायें. संविधान इस बात की इजाजत नहीं देता कि सरकार तय करे कि देश में किन्हें वोट का हकदार माना जायेगा और किन्हें नहीं. हमारे संविधान की सर्वप्रथम लाइन है ‘हम भारत के लोग’ – ना कि ‘हम भारत के लोग जिनके पास ऐसे दस्तावेज हैं जिनसे साबित होता है कि हम भारत के हैं’ या कि ‘हम भारत की सरकारें जो कि यह तय करती हैं कि कौन लोग भारत के हैं’!

डा. अम्बेडकर द्वारा 1950 में बनाया गया भारत का संविधान भारतीय नागरिकों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है. संविधान के अनुसार भारत की नागरिकता को ‘हिन्दू’ या ‘मुसलमान’ के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है. भारत में कोई चाहे पश्चिमी पाकिस्तान से प्रवेश करे, या पूर्वी पाकिस्तान (आज का बंगलादेश) से, संविधान किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता. हमारा संविधान, अथवा देश का 1955 में बना मूल नागरिकता कानून, किसी को भी ‘गैरकानूनी आप्रवासी’ नहीं कहता.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कभी भी भारत का संविधान और उसकी धर्मनिरपेक्ष भावना का समर्थन नहीं किया. वे तो ‘मनुस्मृति’ को भारत का संविधान बना देना चाहते थे. आजादी के आंदोलन के दौरान, और आजादी मिलने के बाद भी, वे केवल धर्म के आधार पर लोगों और देश को बांटने की कोशिशें लगातार करते रहे हैं.

चुनी हुई सरकारों को संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है. लेकिन भाजपा-राजग सरकारें हमेशा इसी में लगी रहती हैं कि कैसे संविधान के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक स्वरूप को खत्म कर दिया जाए!

2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी राजग सरकार ने संविधान को कमजोर करने के उद्देश्य से नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन कर उसमें ‘गैर-कानूनी प्रवासी’ तथा ऐसे लोगों, जिनके माता-पिता में से कोई एक ‘गैर-कानूनी प्रवासी’ हो, को नागरिकता से वंचित करने का प्रावधान डलवा दिया. इसमें ‘गैरकानूनी प्रवासी’ की परिभाषा को जानबूझकर अस्पष्ट रखा गया है, जिससे सरकार के पास मनमाने तरीके से किसी को भी ‘गैरकानूनी प्रवासी’ घोषित करने का अधिकार मिल गया है. 2003 के उसी संशोधन के जरिये वाजपेयी सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) बनवाने का प्रावधान भी करवा दिया, इसी रजिस्टर में से ‘संदिग्ध’ नागरिकों को अलग छांटा जायेगा और फिर उनसे कहा जायेगा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में अपना नाम शामिल करवाने के लिए कागजात दिखायें. कागजात/दस्तावेज न दिखा पाने की स्थिति में उन्हें ‘गैरकानूनी प्रवासी’ (या घुसपैठिया) घोषित किया जा सकता है. वाजपेयी काल में कानून में हुए इस बदलाव से एक ‘स्थानीय रजिस्ट्रार’ अब किसी भी नागरिक को ‘संदिग्ध’ घोषित कर सकता है, जिसके बाद सरकार के पास यह अधिकार है कि कागजात दिखाने में असमर्थ होने पर ऐसे ‘संदिग्ध’ नागरिकों को वह परेशान कर सकती है, यहां तक कि उन्हें ‘गैरकानूनी प्रवासी’ घोषित कर सकती है. नागरिकता कानून में तब हुए इस संशोधन के कारण स्थानीय प्रशासन और राष्ट्रीय सरकार (भ्रष्ट, गरीब-विरोधी या साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों के कारण) संविधान के मौलिक सिद्धांतों के विरुद्ध मनमाने नियम बना कर किन्हीं व्यक्तियों या समुदायों को ‘संदिग्ध’ नागरिक अथवा ‘गैरकानूनी प्रवासी’ घोषित कर सकते हैं.

वाजपेयी सरकार ने तब जो क्षति पहुंचायी थी, उसे नागरिकता संशोधन कानून 2019 ने कई गुना गहरा कर संविधान की मूल भावना को पूरी तरह नष्ट कर दिया है. इसमें आवेदक की धार्मिक पहचान के आधार पर भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान लाया गया है. मोदी-शाह सरकार का सीएए-एनपीआर-एनआरसी प्रोजेक्ट उसी संविधान विरोधी एजेंडा को आगे बढ़ा रहा है जिसकी नींव वाजपेयी सरकार ने रखी थी. इससे भारतीयों की नागरिकता और वोट देने का अधिकार भ्रष्ट, गरीब-विरोधी या साम्प्रदायिक सरकार व उसके अधिकारियों की दया पर निर्भर हो गया है.

इस तबाही को रोकने तथा देश व संविधान को बचाने के लिये हम क्या कर सकते हैं?

तथ्य जानिए, तैयार रहिए, अपने दोस्तों और परिवार के लोगों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में शामिल कराइए.

हर सड़क, गली, गांव, मोहल्ले, चैराहे, नगर, शहर में लोगों को संगठित करिए कि –

(1) नागरिकता संशोधन कानून को खत्म करने की मांग करें.

(2) अपनी राज्य सरकार से मांग करें कि वह एनपीआर की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाए और एनआरसी लागू करने से इंकार कर दे. अपने स्थानीय विधायक से सम्पर्क करिए और गारंटी करिए कि राज्य विधान सभा इस सिलसिले में प्रस्ताव पारित करे. याद रखिए, एनआरसी के खिलाफ बयान देना कापफी नहीं है. राज्य सरकारों को एनपीआर की चल रही प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगानी होगी.

(3) मांग करिए कि केंद्र व राज्य सरकारें बन रहे डिटेंशन कैम्पों का काम तुरंत रोक दें.

(4) ‘दरवाजा बंद’ अभियान चलाइए. यह एक सामूहिक सत्याग्रह है. जब कर्मचारी एनपीआर के लिए सूचना इकठ्ठी करने आएं तो अपने घर का दरवाजा बंद कर लें. याद रखिए कि वे आपको नौकरी, घर या कोई सुविधा देने के लिए जानकारी इकठ्ठी नहीं कर रहे हैं बल्कि वे आपकी नागरिकता छीनने और देश को धर्म के आधार पर बांटने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं. आजादी की लड़ाई के दौरान जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया था, उसी तरह आज हम भारतवासियों को अपना देश और संविधान बचाने के लिए सत्याग्रह करना होगा. एनपीआर के लिए अपना दरवाजा बंद करके हम फासीवाद और तानाशाही के लिए दरवाजा बंद कर रहे हैं.

(5) अगर आप मुसलमान नहीं हैं, तो साम्प्रदायिक गुंडों और पुलिस की हिंसा झेल रहे अपने पड़ोसी मुसलमान भाइयों की मदद कीजिए. सार्वजनिक जगहों पर मुसलमान पड़ोसियों के साथ जाइए. हिंसा और उत्पीड़न का सामना करने की हालत में आपातकालीन सम्पर्क के लिए उन्हें अपना फोन नम्बर दीजिए. घृणा फैलाने की हर घटना के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से अपनी आवाज उठाइए. चुप मत बैठिए. हिंसक मत होइए. प्यार और सच्चाई के पक्ष में खड़े होइए.