वर्ष - 29
अंक - 11
07-03-2020

[एआईसीसीटीयू के 10वें अखिल भारतीय सम्मेलन में भाकपा(माले) महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य का भाषण]

यह मेरे लिये बड़े हर्ष और सम्मान की बात है कि आज मैं एआईसीसीटीयू के दसवें अखिल भारतीय सम्मेलन में आप सभी का अभिनन्दन कर रहा हूं. इस सम्मेलन के जरिये हम भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के एक सौ वर्षोें तथा एआईसीसीटीयू के तीस वर्षों के गौरवमय इतिहास का भी समारोह मना रहे हैं. आप सभी लोगों के साथ मैं भी उन अनगिनत शहीदों को, जिन्होंने आत्मबलिदान के सर्वोच्च मानदंड कायम करके इस आंदोलन को शक्तिशाली किया है, श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. हम उन नेताओं का आदरपूर्वक स्मरण करते हैं जिनकी स्मृति में आपने इस सम्मेलन स्थल का नाम रखा है – संतोष कुमारी देवी, जो संभवतः भारत की पहली ऐसी महिला ट्रेड यूनियन नेता थीं जिन्होंने 1920 के दशक में बंगाल के जूट मिल मजदूरों को संगठित किया था और उनका नेतृत्व दिया था, और हमारे प्रिय नेतागण कामरेड स्वपन मुखर्जी, डीपी बख्शी, सुदर्शन बोस, और हरी सिंह, जिनका हाल के अरसे में देहांत हुआ है. मैं वामपंथी ट्रेड यूनियन आंदोलन के वरिष्ठ नेता कामरेड गुरुदास दासगुप्ता और क्षिति गोस्वामी की स्मृति को भी सलाम करता हूं, जिन्हें हमने 2019 के वर्ष में खोया है. इस अवसर मैं हमारे उन तमाम कामरेडों को, जो जेल की तकलीपफें भोग रहे हैं, मारुति और प्रिकोल के बहादुर कामरेडों को, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली है, और छत्तीसगढ़ के मजदूरों की नेता अधिवक्ता कामरेड सुधा भारद्वाज को, जिन पर तानाशाही कानून यूएपीए थोप दिया गया है, तथा उनके साथ गिरफ्तार किये गए अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सलाम पेश करता हूं और उन सभी की बिना शर्त पफौरन रिहा करने की मांग करता हूं.

hall

 

एआईसीसीटीयू के भूतपूर्व महासचिव होने के नाते मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि हाल में इस संगठन ने अपने कामकाज का विभिन्न राज्यों में तथा विभिन्न सेक्टरों में विस्तार किया है. यह खास तौर पर उत्साहवर्धक है कि एआईसीसीटीयू का रेलवे और प्रतिरक्षा श्रमिकों के साथ एकीकरण बढ़ रहा है. 1960 और 1970 के दशकों में मैं अपने पिताजी, जो भारतीय रेल के एक कर्मचारी थे, से सुना करता था कि रेलवे संगठित मजदूरों का सबसे बड़ा सेक्टर है जिसमें मजदूरों की तादाद लगभग तीस लाख है. यहां तक कि 1990 के दशक में जब मैं ट्रेड यूनियन कामकाज से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा था, रेलवे मजदूरों की संख्या बीस लाख के ऊपर थी. और अब लगातार नई ट्रेनों को तथा नये रूटों को चालू किये जाने के बावजूद, निजीकरण पर जोर दिये जाने के चलते उनकी तादाद घटकर चिंताजनक स्तर पर गिर चुकी है. मैं उम्मीद करता हूं कि एआईसीसीटीयू के रेलवे एवं प्रतिरक्षा मजदूरों के बढ़ते एकीकरण के परिणामस्वरूप हमें निजीकरण के खिलाफ और भी सशक्त एवं संकल्पबद्ध प्रतिरोध देखने को मिलेगा. यह देखना भी उत्साहवर्धक है कि भारतीय मजदूर वर्ग के एक संघर्षशील जत्थे के रूप में स्कीम वर्कर्स के बीच उल्लेखनीय अग्रगति के चलते एआईसीसीटीयू की कतारों और उसके नेतृत्व में महिला मजदूरों की उपस्थिति बढ़ी है. ऐसे वक्त में, जब जम्मू-कश्मीर से उसका संवैधानिक दर्जा और यहां तक कि राज्य का दर्जा भी छीन लिया गया है और वहां जनसमुदाय को अपने रोजमर्रे के जीवन में लोकतंत्र से सम्पूर्णतयः वंचित किया जा रहा है, यह जानकारी उत्साहजनक है कि हाल में ही जम्मू-कश्मीर में एआईसीसीटीयू की राज्य इकाई का गठन हुआ है.

gs

 

हमने यह सम्मेलन नैहाटी में आयोजित किया है, जो मजदूर वर्ग के आंदोलन का लम्बे अरसे से सक्रिय इलाका है. हमने संतोष कुमारी देवी की पथप्रदर्शक नेतृत्व की भूमिका के बारे में सुना है, जिन्होंने मजदूरों को मजदूरों के बतौर अपने अधिकारों को हासिल करने के लिये संगठित किया और साथ ही ब्रिटिश शासन की बेड़ियों से देश को आजाद कराने के संघर्ष में भी गोलबंद किया. हमारे देश में मजदूर वर्ग का आंदोलन आजादी के आंदोलन के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ता रहा और मजदूरों ने समाज के अन्य तबकों को गोलबंद करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई. उपनिवेशवाद विरोधी राष्ट्रवाद के उत्थान का अर्थ था धार्मिक एवं भाषाई विभाजनों से परे जनता की एकता, और उत्पादक संसाधनों एवं उत्पादन के बढ़ते राष्ट्रीयकरण की नीति. आज भाजपा राष्ट्रवाद की बातें कर रही है, मगर उसके राष्ट्रवाद का अर्थ है धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंखकों का बढ़ता हाशियाकरण और बढ़ते केन्द्रीकरण के मातहत विविधता का दमन, उसके राष्ट्रवाद का अर्थ है हमारे सार्वजनिक क्षेत्र का सुनियोजित ढंग से अ-राष्ट्रीयकरण या निजीकरण और उसका विनाश, ताकि अर्थतंत्र की बागडोर को निजी पूंजीपतियों के हाथों सौंपा जा सके. वास्तव में, इस सरकार को तो “आजादी” शब्द से ही एलर्जी है. दिल्ली में हमने अभी अभी देखा है कि किस तरह पुलिसवालों ने बड़े उल्लास से एक निहत्थे मुसलमान युवक को यातनाएं देकर उसकी हत्या कर डाली, यह कहते हुए कि यही उस आजादी की खुराक है जिसे तुम पाना चाहते हो. जाहिर है कि हमारा मुकाबला एक ऐसी सरकार से है जो गुलामी का महिमामंडन करती है, जब समूचा देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था उन्होंने ब्रिटिश शासकों के साथ सांठगांठ की थी, और आज जब वे सत्ता में आये हैं तो वे हमें तमाम मोर्चों पर नये सिरे से गुलाम बना देने की कोशिश कर रहे हैं.

rally

 

आज हम अपने संविधान पर, अपनी नागरिकता पर, तथा नागरिकों के लिये हमारे संविधान में जिन तमाम किस्म के अधिकारों की गारंटी दी गई है, उन अधिकारों पर अभूतपूर्व हमला होते देख रहे हैं. मगर इस अभूतपूर्व हमले ने जनता के अभूतपूर्व किस्म के प्रतिवादों को भी जन्म दिया है, जिन्हें छात्रों और महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय की विशाल संख्या में भागीदारी तथा संकल्प से बल मिला है. मजदूर वर्ग को अपनी सारी जड़ता तो तोड़ना होगा और अपनी समूची शक्ति के साथ इस प्रतिवाद आंदोलन में शामिल होना होगा. जब सरकार एनसीआर या एनपीआर की शक्ल में हमारी नागरिकता को चुनौती दे रही है, और नागरिकता कानून में संशोधन करने के जरिये हमारी नागरिकता को धर्म के साथ जोड़ रही है, तो वास्तव में वह हमारे उन तमाम अधिकारों के खिलाफ साजिश रच रही है, जिन अधिकारों का हम एक नागरिक के बतौर उपभोग करते हैं – मतदान करने का अधिकार, भाषण करने और सभाएं करने की स्वतंत्रता का अधिकार, संगठित होने और बेहतर जीवन-स्थितियों को एवं बेहतर मजदूरी को पाने का अधिकार, इत्यादि. श्रम अधिकारों एवं श्रम कानूनों पर हमला और नागरिकता पर हमला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, वे एक ही परियोजना के अभिन्न अंग हैं. जब आप उनको “देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को” के जोरदार नारे लगाते हुए सीएए-विरोधी प्रतिवादकारियों पर हमला करते देख रहे हैं, तो कृपया समझ लीजिये कि हम सब पर भी गद्दार का ठप्पा लगाया जा सकता है और गोलियों से हम पर भी हमला किया जा सकता है. यह नारा और हिंसा का अभियान महज सीएए-विरोधियों, एनआरसी-विरोधियों, एनपीआर-विरोधियों तक सीमित नहीं रहेगा, यह हर वैध आंदोलन को कुचल देने की रूपरेखा है. जब हम अपने रोजगार के लिये, मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा के लिये लड़ेंगे, जब हम निजीकरण, आउटसोर्सिंग या श्रमिकों की संख्या में कटौती का प्रतिरोध करेंगे, तो इसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ भी किया जाएगा.

भारतीय मजदूर वर्ग आंदोलन की गौरवशाली परम्परा के वारिस होने के नाते हमें संकट की इस घड़ी में अपनी उपयुक्त भूमिका को निभाना होगा. हमारी शक्ति हमारी एकता में निहित है. हमें अवश्य ही ऐसी हर साजिश को नाकाम करना होगा जो हमें धर्म या भाषा या जाति के आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है. हमारी शक्ति हमारी चेतना और संघर्ष के समृद्ध अनुभव में निहित है. हमारी ताकत हमारी ऐतिहासिक विरासत में और अपने लक्ष्यों को पूर्ण रूप से हासिल करने के लिये तमाम प्रतिकूलताओं के खिलाफ लड़ने के मिशन में निहित है. हमें अपनी एकता का विस्तार करने के लिये, अपने संगठन को सुदृढ़ बनाने के लिये और अपने संघर्षों को तीखा करने के लिये अपनी समूची ऊर्जा ढाल देनी होगी. ठीक जैसे भारत में मजदूर वर्ग आंदोलन का जन्म और विकास स्वतंत्रता आंदोलन के एक नेतृत्वकारी जत्थे के रूप में हुआ था, उसी तरह आज उसकी अग्रगति फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध के दुर्जय गढ़ के रूप में, लोकतंत्र और समाजवाद के लड़ाकू किले के बतौर होगी.

मैं आपके सम्मेलन की पूर्ण सफलता की कामना करता हूं.

song