वर्ष - 29
अंक - 11
07-03-2020

यंग इंडिया के आह्वान पर 3 मार्च 2020 को सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में तथा सांप्रदायिक हिंसा और संविधान पर हमले के खिलाफ न्याय और शांति मार्च का आयोजन किया गया था. यह मार्च रामलीला मैदान में आयोजित था. मार्च के जरिए पिछले दिनों देश की राजधानी में भाजपा-संघ ब्रिगेड द्वारा सत्ता की सरपरस्ती और पुलिसिया देख-रेख में मुस्लिम समुदाय पर अंजाम दी गई बर्बरतापूर्ण हिंसा का विरोध भी शामिल था.

यंग इंडिया मार्च के आयोजकों ने कार्यक्रम के लिए 27 फरवरी को ही प्रशासन को आवेदन दिया था. लेकिन ऐन वक्त पर उन्हें बताया गया कि उनको रामलीला मैदान में यह कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसके साथ ही उनको जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने से भी मना कर दिया गया.

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फिर भी देश के कई राज्यों व राजधानी दिल्ली से इस मार्च हिस्सा लेने के लिए भारी तादाद में छात्र-नौजवान पहुंच गए. पुलिस ने दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंचे कई छात्रों को हिरासत में ले लिया. ‘दिल्ली पुलिस’ नहीं बल्कि ‘पूरी दिल्ली की पुलिस’ ने मिलकर यंग इंडिया के मार्च पर हमला किया. रामलीला मैदान से सैकड़ों युवाओं को गिरफ्तार किया गया. यूपी से निकलने वाली 20 से ज्यादा बसों को रोक दिया गया. इनके बस ड्राइवरों तक को गिरफ्तार किया गया. इंद्रलोक से आने वाली महिला प्रदर्शनकारियों के साथ मारपीट की गई और स्टेडियम में रोक रखा गया. दिल्ली के बाहर से आए युवाओं को भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से आते वक्त रोका गया. दिल्ली में जहां से भी मार्च के लिए लोग निकल रहे थे, वहां पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की. गौर तलब है कि पुलिस ने दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के समय इतनी मुस्तैदी नहीं दिखाई जितनी कि इन दंगों के लिए जिम्मेदार अमित शाह का इस्तीफा मांगने निकले यंग इंडिया को सड़क पर उतरने से रोकने में दिखाई. इस हिंसा के एक और मास्टर माइंड कपिल मिश्रा के ‘गोली मारो’ मार्का शांति रैली को अभी 4 दिन पहले ही इजाजत दी गई थी. लेकिन, ‘अमन और न्याय’ के लिये मार्च करने वाले युवाओं को रोकने की हर संभव कोशिश की गई. पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद भी सैकड़ों की संख्या में लोग जंतर मंतर पर एकत्रित हुए और अपना प्रतिरोध दर्ज कराया और अमित शाह के इस्तीफे की मांग की. इस मार्च में विभिन्न छात्र संगठनों के छात्र, युवा, शिक्षक और समाजिक संगठन के लोग शामिल थे.

जंतर मंतर पर आयोजित सभा को पूर्व आइएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन, आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व यंग इंडिया के नेता एनसाईं बालाजी, सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद, जेएनएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष, जामिया में बजरंग दल समर्थक की गोलियों से घायल हुए छात्र शादाब, भाकपा(माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण, आरवाइए के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन, सांसद ईटी बशीर अहमद, जामिया की छात्र नेता सफूरा जागर, जेएनएसयू की पूर्व अध्यक्ष सुचेता डे और शाहीन बाग की दादी ने छात्रों को संबोधित किया.

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सभा को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने ऐलान किया कि हमें पूरे देश में कहीं भी एनआरसी नहीं चाहिये. बिहार की जदयू-भाजपा सरकार ने आंदोलन के दबाव में हमारे विधायकों द्वारा लाए गए कार्यस्थगन को मंजूर कर बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करना पड़ा कि बिहार को एनआरसी नहीं चाहिये. यहां तक कि जगह-जगह एनआरसीकी रट लगा रहे भाजपा के लोगों को भी यह मानना पड़ा. अगर भाजपा भी मान रही है कि बिहार को एनआरसी नहीं चाहिये तो यह आंदोलन का दबाव ही है. लेकिन सवाल उठता है कि अगर बिहार एनआरसी नहीं चाहिए तो बंगाल को क्यों चाहिये? और बिहार-बंगाल को नहीं चाहिये तो पूरे हिंदुस्तान को एनआरसी नहीं चाहिये.  इसीलिए हम किसी एक राज्य की बात करने नहीं आए हैं. एनआरसी को पूरी तरह से वापस करना होगा. अगर वे कह रहे हैं कि एनआरसी अभी नहीं लागू होगा, अभी तक इसकी कोई योजना नहीं बनी है तो इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि ये अपने हिसाब से समय चुनकर एनआरसी हमारे ऊपर थोपना चाहते हैं. हम यह ऐलान करने आए हैं कि न केवल अभी बल्कि कभी भी एनआरसी हमें मंजूर नहीं है और हम इसे लागू नहीं होने देंगे.

का. दीपंकर ने कहा कि एनपीआर दरअसल एनआरसी का ही दूसरा नाम है. इसलिए अगर आपको एनआरसी नहीं करना है तो एनपीआर क्यों करना है? एनपीआर की सूची में कुछ लोगों को ‘डाउटफुल’ करार देकर उनपर एनआरसी थोपने की कोशिश होगी. हमारे संविधान से मिले सारे अधिकार तभी तक हैं जब तक हम इस देश के नागरिक हैं. अगर हमारी नागरिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया जाएगा तो हमारे सारे अधिकार – शिक्षा, स्वास्थ्य, बोलने, वोट डालने के अधिकार – हमसे छीन लिए जाएंगे. इसीलिए आज पूरे देश में एकता बनाते हुए सीसीए, एनपीआर, एनआरसी का विरोध हो रहा है.

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ऐपवा की सचिव का. कविता कृष्णन ने कहा कि दिल्ली पुलिस जंतर-मंतर पर आने वाले हर शख्स का वीडियो बना रही है. यहां कैमरा लगा है और हर व्यक्ति से पूछा जा रहा है कि आप कहां और किस प्रदर्शन में जा रहे हैं? इसी दिल्ली में जब दंगे, हत्याएं और आगजनी हो रही थी तो पुलिस ने वहां जगह-जगह लगे कैमरे तोड़ दिए ताकि पहचान न हो पाए कि कौन लोग गुनहगार हैं और दंगाईयों को बचा लिया जाए. दिल्ली पुलिस ने घायल लोगों तक को लातें मारी और उन्हें अस्पताल पहुंचने से रोका. यहां शांति के सवाल पर सरकार से सवाल पूछने और संविधान-लोकतंत्र की रक्षा के लिए जो लोग जुट रहे हैं उनका वीडियो बनाया जा रहा है और धमकाते हुए कहा जा रहा है कि आपमें से एक-एक को हम याद रखेंगे.

का. कविता ने कहा कि सरकार से सवाल करना लोकतंत्र की परिभाषा है. ये सरकार की तरफ से दिया जाने वाला कोई तोहफा नहीं है बल्कि हमारा संवैधानिक अधिकार है. इससे अमितशाह के दिल्ली पुलिस की क्या मंशा स्पष्ट हो रही है. वे सोचते हैं कि छात्र-युवाओं को सिर्फ अपने कैरियर की चिंता होनी चाहिए कि हमारे बीच कनन गोपीनाथन जैसे लोग भी हैं जिन्होंने आईएएस जैसे पद छोड़े हैं. उनको लगा कि देश की सेवा और सरकार की सेवा में फर्क है और ऐसी सरकार की सेवा मैं नहीं करूंगा जो कश्मीर को बंदी बना रहे हैं और पूरे देश में फासीवादी कानून को लागू कर रहे हैं तो वे देश की सेवा में उतर पड़े. यंग इंडिया सी भावना के साथ देश को बचाने का काम करेगा. इन लोगों में अभी भी भगत सिंह, अंबेडकर और फातिमा का भारत जिंदा है.

का. कविता ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा इस मार्च को रोकने की भरपूर चेष्टा के बावजूद  देश भर से इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां आए हैं. इससे साफ पता चलता है कि सरकार किस चीज से डरती है. यहां से महज 10 कदम दूर स्थित राजीव चौक मैट्रो के आसपास ‘गोली मारो’ का नारा लग रहा था. पुलिस से जब पूछा गया कि उसने उनका क्या किया? तो उसने बताया कि उन्हें दो मिनट तक रोका गया और फिर चले जाने दिया गया. जब उनसे यह पूछा गया कि उनको छोड़ दिया गया तो हमें क्यों परेशान किया जा रहा है तो उन्होंने कहा कि आप लोग तो सरकार की नजर में ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ हैं जबकि वे ‘राष्ट्र भक्त’ हैं. यह बात गृह मंत्रालय की ओर से हमें बताया जा रहा है.

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उमर खालिद ने कहा कि 17 फरवरी को महाराष्ट्र में दिए एक भाषण के लिए मुझे दोषी बनाया जा रहा है. वहां मैंने बोला था कि जब डोनाल्ड ट्रंप भारत आएंगे तो हम उन्हें ये बताएंगे कि भारत के अंदर महात्मा गांधी के उसूलों की धज्ज्यिां उड़ाई जा रही हैं. मैं फिर से बोलता हूं कि आज हमारे देश के अंदर जब चिल्ला-चिल्लाकर ‘गोली मारो’ बोला जा रहा है, जिस दिल्ली में महात्मा गांधी ने अपना हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अपना आखिरी उपवास रखा उस दिल्ली को जलाया जा रहा है तो आज मैं फिर से बोलता हूं इस देश की सरकार महात्मा गांधी के उसूलों की धज्जियां उड़ा रही है. सरकार देश को बांटने का काम करेगी तो हम महात्मा गांधी के उसूलों को बचाने का और इस देश को जोड़ने का काम करेंगे. हम सड़कों पर तो संविधान को बचाने आते हैं. संविधान का दायरा वो पार करते हैं जो खुलेआम ‘गोली मारो’ चिल्ला रहे हैं.

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण ने कहा कि आज देश के हालात बहुत दुःखी करने वाले हैं. आजादी की लड़ाई ऐसे दिनों को देखने के लिए नहीं लड़ी गई थी. 23 तारीख को दिल्ली में जो भी दंगा हुआ वह कपिल मिश्रा के भाषण के बाद हुआ और जब वह भाषण दे रहा था तब उस इलाके के डीसीपी वहीं खड़े थे. इतने हथियार और पत्थर सब हमने देखे वे वहां कैसे पहुंचे? यह सब सरकार ने किया है और यह राज्य प्रायोजित दंगा है. उन्होंने दिल्ली में दंगा करने वालों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए कहा कि एक साजिश के तहत दिल्ली को जलाया गया है. पुलिस कहती है कि हमारे सड़क पर आने से कानून व व्यवस्था का संकट पैदा हो सकता है. लेकिन, दंगाई खुलेआम दिल्ली में रैली करते हैं. अगर आज हम सड़क पर आकर अपना विरोध दर्ज नहीं कर सकते तो फिर यह कैसा लोकतंत्र है? अंतिम जीत हमारी होगी और अब हम पीछे नहीं हटेंगे.

सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय ने भी पुलिस के रैवये पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस आजकल भाजपा कार्यकर्ता की तरह काम कर रही है. लेकिन लोगों में भी कम जज्बा नहीं है. यह आंदोलन तबतक चलेगा जबतक कि सीएए, एनआरसी व एनपीआर वापस नहीं लिया जाता है.

फिल्मकार आनन्द पटवर्धन ने कहा कि दिल्ली पुलिस निष्पक्ष नहीं थी. कई जगह तो वह खुद दंगा में शामिल हुई. अब जो कहानियां आ रही हैं उनसे पता चल रहा है कि कहीं मुसलमानों ने हिन्दुओं को बचाया तो कहीं हिन्दुओं ने मुसलमान को. लेकिन, सरकार ने किसी को नहीं बचाया.

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कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए ऐसेे कानून ला रही है. वह चाहती है कि लोग इसमें उलझ जायें और बेरोजगारी जैसे सवालों पर बात न करे. जबकि मोदी सरकार ही बेरोजगारी के लिए है और हम उसको इस जिम्मेदारी से भागने नहीं देंगे.

उमर खालिद ने कहा कि आज जिस तरह से पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को मार्च से रोका उससे लगता है कि वह पुलिस नहीं बल्कि गुंडों की तरह काम कर रही है. जामिया में कोई गुंडा गोली चला जाता है, जेएनयू में गुंडे हमला करते हैं, दिल्ली में कई दिनों तक दंगा होता है लेकिन पुलिस कुछ नहीं करती है. अगर कुछ करती है तो दंगाइयों की मदद करती है. उन्होंने कहा कि आज के इस मार्च का संदेश साफ था कि देश का नौजवान अमन, इंसाफ, न्याय, शिक्षा, रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार चाहते हैं न कि एनआरसी व एनपीआर. वे हिंसा और दंगे नहीं चाहते हैं. पिछले कई महीनों से देश में जिसतरह से हिंसा हो रही है उसका प्रतिरोध करने के लिए ही नौजवान सड़कों पर उतर रहे हैं.

जंतर मंतर पर इस प्रदर्शन के जरिए यंग इंडिया ने कपिल मिश्रा की गिरफ्तारी, अमित शाह का इस्तीफा, मारे गए लोगों के लिए न्याय और शांति सुनिश्चित करने और सीएए, एनआरसी व एनपीआर को रद्द करने की मांग व मुद्दे पर छात्र-युवाओं की देशव्यापी एकता व ताकत का प्रदर्शन किया. साथ ही, राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करके एनपीआर और एनआरसी को तुरंत खारिज करने की मांग की.

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